दान की महिमा

लेखक- संजय दुबे

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मकर सक्रांति को भारतीय संस्कृति में दान का पर्व माना जाता है। सूर्य के उत्तरायण होने के प्रारंभ को भीष्म के इस दुनिया से विदा होने का दिन भी माना जाता है। इसी दिन से द्वापर की विदाई और कलयुग के आगमन का भी माना जाता है।

कलयुग को महाभारत के घर, परिवार, समाज, राज्य, देश मे स्थाई भाव से निवास करने का भी श्राप भी माना जाता है इस कारण इसके निदान के लिए समर्थ को असमर्थ के प्रति दया भाव रखने के लिए "दान संस्कृति" को बराबर से रखा गया है। मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ के दान से दान परंपरा जीवित रहने की भी परिकल्पना की जाती है।

 हमारे देश मे हर उत्कृष्ट कार्य के लिए उदाहरण उपलब्ध है। दान के मामले में भी आज भी सर्वश्रेष्ठ उदाहरण के रूप में दधीचि का नाम लिया जाता है। ऋषि दधीचि ने मानव कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया था ताकि उनके अस्थि से वज्र बनाया जाकर व्रतासुर का वध किया जाना संभव हुआ था। राजा बलि ने वामन अवतार लिए ईश्वर को दान के रुप मे अपना सर्वस्व देने के साथ साथ अपने को भी समर्पित कर दिया था। राजा शिवि को एक कबूतर के मांग पर अपना सारा शरीर दान करना पड़ गया था। राजा हरिश्चंद्र ने दान की प्रतिज्ञा पूर्ण करने के लिए खुद को डोम राजा के यहां बेच दिया था। अंगराज कर्ण का दान भी श्रेष्ठ दान माना जाता है। जीवन से लेकर मृत्यु तक उनसे दान लेने की परीक्षा होते रही। कर्ण इन परीक्षाओं में कभी भी असफल नही रहे।

 भारतीय संस्कृति में हर व्यवस्था को लिखित रूप से रखा गया है दुख की बात ये है कि इनका प्रचार प्रसार बेहतर ढंग से नही हुआ है। हम लोग केवल दान जानते है लेकिन दान के प्रकार, और उनके परिणाम को नही जानते है।

दान तीन प्रकार के होते है- शुक्ल, मिश्रित,औऱ कृष्ण। शुक्ल दान में शास्त्र,ज्ञान,योग,परंपरा और पराक्रम दिया जाता है। इस दान के कारण सुख की प्राप्ति होती है मिश्रीत दान में कुसीद कृषि, वाणिज्य दिया जाता है। इसमे सुख -दुःख की प्राप्ति होती है। कृष्ण दान सेवा, धूत और चौर्य से प्राप्त संपत्ति का दान होता है जिससे केवल दुःख प्राप्त होते है।

  द्रव्य के रूप में जो दान दिया जाता है उसकी तीन स्वरूपहोती है 1 दान 2 भोग 3 नाश के रूप मे होती है।दान का स्वरूप सात्विक, राजस ऒर तमस का होता है

 दान , महादान,लघुदान और सामान्य दान होता है जिसमे सामर्थ्य के साथ साथ भाव भी जुड़ा होता है।

 वेद के अनुसार दान 16 प्रकार के होते है जिसमे तुलादान( अपने वजन बराबर का द्रव्य या सामग्री) को सबसे बड़ा दान माना जाता है। इसके लिए पूजा पाठ की दीर्घ प्रक्रिया होती है। विद्या, भू, अन्न,कन्या औऱ गो दान आज के युग मे महत्त्वपूर्ण दान है।

 दान के बारे में मिश्रीत राय भी है पहला ये कि दान गुप्त होना चाहिए। बाये हाथ को भी पता नही चलना चाहिए दूसरा ये की दान का सार्वजनीकरण होना चाहिए इससे अन्य लोग प्रेरित होते है।

अब यक्ष प्रश्न!

 आपने निश्वार्थ दान कब किया?


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