दंगल दंगल बात चली है
लेखक- संजय दुबे
बचपन मे एक कविता पढ़ा करते थे शीर्षक था- नागपंचमी। तब के जमाने मे नागपंचमी के दिनों कुश्ती का आयोजन हुआ करता था। कुश्ती की चर्चा होते ही शारिरिक रूप से गठे हुए व्यक्ति जिन्हें पहलवान कहा जाता था। पढ़ी हुई कविता में पहलवानों के शहर का भी जिक्र था ये पहलवान अम्बाले का ये पहलवान पटियाले का
पहलवानी और पहलवान को महाभारत काल से जाना जा रहा है । भीम औऱ दुर्योधन मुख्यतः पहलवान ही थे। जरासंघ के साथ भीम की कुश्ती का जिक्र होते ही रहता है।
युग बीत गया लेकिन पहलवान अभी है, मिट्टी के अखाड़ों की जगह सिंथेटिक कोर्ट आ गए है। लंगोट की जगह आधुनिक वेशभूषा आ गयी है। निर्णायक भी अब सीटी की जगह इशारे करने लगा है। महिलाएं भी कुश्ती के क्षेत्र में आ गयी है।अच्छी बात है।
अब बात मुद्दे की
देश के पुरूष और महिलाओं के कुश्ती से जुड़े वित्तिय प्रबंधन सहित उनके चयन, प्रशिक्षण सहित अन्य मामलों के लिए संघ भी है। संघ है तो अध्यक्ष भी होगा और अध्यक्ष है तो वो राजनीति से स्वाभाविक से जुड़ा होगा। ये भी तय है कि सत्तारूढ़ पार्टी का ही होगा। भारतीय कुश्ती संघ में भी ऐसा ही है। अध्यक्ष महोदय उत्तरप्रदेश से सांसद है।
राजनीति करने वालो की एक सामान्य खूबी है कि उनमें जीतने का दम्भ होता है कुश्ती संघ में तो जीतने में लिए ज्यादा दांव पेंच लगते है । अब अध्यक्ष खुद ही दांव पेंच में फंस गए है। महिला खिलाड़ियों ने उन्हें ऐसे मामले में धोबी पछाड़ लगाई है जिससे भले ही अध्यक्ष कानूनी तौर पर बच जाए लेकिन सामाजिक तौर पर बचना कठिन सा दिख रहा है।
किसी भी प्रकार के संघ पर ज्यादातर वित्तिय अनियमितता के प्रश्नचिन्ह खड़े होते है लेकिन महिलाओं के साथ उत्पीड़न या शोषण का आरोप लगे तो मुद्दा गम्भीर हो जाता है। अब कुश्ती संघ के सारे क्रिया कलाप स्थगित है। मेरी कॉम की अध्यक्षता में 5 सदस्यों की टीम को एक महीने में रिपोर्ट देनी है। इस अवधि में वर्तमान अध्यक्ष का कार्यकाल भी खत्म होने को हैं। चूंकि मामला सत्तारूढ़ पार्टी से संबंधित है इस कारण हल क्या निकलेगा ये तो रिपोर्ट बताएगी लेकिन ये घटना इशारा कर रही है कि जिम्मेदार लोगों को अपनी सरहद खुद ही तय करना पड़ेगा खासकर महिलाओं के प्रति। पिछले साल अनेक घटनाएं हुई है जिसमे चयन कर्ताओं अथवा कोच ने अपने व्यक्तिगत हित को साधने की कोशिश की है। खेल रत्न टेबल टेनिस खिलाड़ी मोनिका बत्रा, शूटर मनु भाखर, सहित अनेक खिलाड़ी ऐसी घटनाओं को लेकर मुखर हुई है। न जाने कितनी महिला खिलाड़ी होंगी जो सामाजिक अपयश के कारण शोषित हुई होंगी।
एक व्यवस्था को जन्म देने की आवश्यकता प्रतीत होती है पहला कि हर राष्ट्रीय संघ में अध्यक्ष दो हो एक पुरुष और एक महिला, क्योकि सभी खेलो में पुरुष स्त्री आ चुके है। कार्यकारी अध्यक्ष अनिवार्य रूप से निवर्तमान खिलाड़ी हो। इससे संगठन में व्यक्तिवाद हावी नही होगा और महिलाओं के मुद्दों सहित उनके विषयो में महिला अध्यक्ष के होने से महिला खिलाड़ियों को अपनी बात रखने के लिए सशक्त मंच होगा।
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