अनंत राधिका के बहाने
लेखक- संजय दुबे
स्थापित परिवार के हर कार्य के पीछे अनेक लोग जिनकी मानसिकता नकारात्मक है, उनकी की निगाहें भाले की नोंक के समान लगे रहना फितरत होती है। देश मे अम्बानी परिवार एक ऐसा व्यावसायिक परिवार है जिसके रहन सहन की चर्चा हमेशा होती रहती है। चाहे धीरूभाई अम्बानी के कार्यशैली हो या मुकेश अम्बानी के सफलता दर सफलता हो या नीता अंबानी के सौम्यता का हो या उनकी संतानों के पारिवारिक मामले हो, सोशल मीडिया में सुर्खियों में होती है।
हाल ही में उनके परिवार में अनंत और राधिका के वैवाहिक जीवन के प्रथम सौपान के रूप में अंगूठी आदान प्रदान कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। जाहिर है देश का स्थापित प्रथम व्यावसायिक परिवार है तो समाचार बनना ही था। कार्यक्रम के फोटो और वीडियो भी सार्वजनिक होने थे, हुए। नकारात्मक विचारों से ओत प्रोत लोगो सहित किसी के परिवार के व्यक्तिगत कार्यकम में हास्य (उपहास) खोजने वालो ने वीडियो और फोटोज़ के साथ नकारात्मक टिप्पणी करने लगे। आनंद की अनुभूति का ये रवैया हमारे बीच का बहुमत है, हम ऐसे लोग जो हमे जानते तक नहीं है ऐसे लोग मजा लेने देने का काम सोशल मीडिया में शुरू कर देते है। मैं भी यदा कदा इसमे शामिल होता हूँ लेकिन बाद में पश्चात्ताप भी होता है कि स्वयं पर नियंत्रण क्यो न रख सका। भविष्य में सभी के प्रति सकारात्मक विचार रखने की कोशिश होगी।
मुकेश -नीता अंबानी परिवार में उनकी तीन संताने है जिनमे दो पुत्र और एक पुत्री है। सामाजिक दायित्व के रूप मे अम्बानी परिवार में उनके छोटे पुत्र अनंत का विवाह राधिका से निर्धारित हो चुका है अनंत और राधिका की जोड़ी को लेकर सोशल मीडिया में अनेक उपहासिक टिप्पणी लोग ने छद्म नामो से जारी किया है और लोगो ने उसे फारवर्ड कर अपनी नकारात्मक जिम्मेदारी का सार्वजनीकरण कर अपने व्यक्तित्व का भी सार्वजनीकरण किया है।
ये प्रश्न स्वाभाविक है कि जिस प्रकार की नकारात्मक टिप्पणी की गई है यदि ऐसी ही परिस्थिति में स्वयं या स्वयं के परिवार के सदस्य हो तो क्या स्वयं ही ऐसा उपहास झेल पाएंगे?। अम्बानी परिवार के सामर्थ्य के सामने सोशल मीडिया में उपहास उड़ाने वालो को अपनी हैसियत भी देखना चाहिए। विवाह नितांत परिवार का व्यक्तिगत मामला होता है इसमे कोई भी परिवार अपने निकटतम रिश्तेदार और मित्रो को बुलाये या न बुलाये ये उस परिवार पर निर्भर करता है। विवाह के लिए वर वधु की स्वीकार्यता के लिए किसी अन्य व्यक्ति के सहमति अथवा असहमति की आवश्यकता नहीं है। आज के दौर में तो दिखावा संस्कृति भी दम तोड़ते दिख रही है। कोरोना काल ने रिश्ते, मित्रता के नए परिभाषा गढ़े है। अर्थ का महत्व लोगो ने उड़ाने के बजाय सार्थक कार्यो में लगाने की समझ पाई है।
ऐसे में किसी व्यक्ति, परिवार के निजी जिंदगी में तांक झांक करना कहां तक उचित है। राधिका के स्वीकार्यता को अन्य नजरिये से देखा जाना उसकी व्यक्तिगत भावनाओ का अनादर है।
सोशल मीडिया में हँसने हँसाने के लिए अथाह विषय है उन पर चुटीली टिप्पणी हो, हास्य सार्थक होना चाहिए, विषय मर्यादित होने चाहिए। ये भी देखना चाहिए कि जिसका उपहास आप उड़ाने जा रहे हो उसके सामने आपकी हैसियत क्या है। सूरज पर थूकने वालो की थूक खुद पर ही गिरती है। याद रखे।
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