विधिसम्मत शांतिभूषण ॐ शांति

लेखक- संजय दुबे

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97 साल की अवस्था पूर्ण करने की अवधि में देश के पूर्व विधि मंत्री और उच्चतम न्यायालय के प्रख्यात अधिवक्ता शांतिभूषण का कल निधन हो गया। इस दुनियां में जन्म लेने वाले है जीव की मृत्यु निर्धारित है बस साँसों का खेल है कि कितने साल आती जाती है। जिस दिन उपक्रम रुका व्यक्ति का पंचतत्व में विलीन होने का कार्य आरंभ हो जाता हैं। 

देश की140 करोड़ की आबादी में न्याय दिलाने के लिए अनुविभाग से लेकर जिला मुख्यालय में न्यायालय के अलावा उच्च और उच्चतम न्यायालय की अपीलीय व्यवस्था देश के संविधान में है।इन न्यायिक संस्थाओं में कानून के नासमझ आम लोगो को न्याय दिलाने के लिए कानून की डिग्री प्राप्त किये विधिक सलाहकार के रूप में मान्यताप्राप्त अधिवक्ता होते है। जिन लोगो का पाला कोर्ट कचहरी से नही पड़ता है उनके लिए काले कोट वाले साहब वकील साहब भर होते है लेकिन जिन्हें अन्याय के खिलाफ या न्याय के लिए कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है उनके लिए अधिवक्ता भी डॉक्टर के समान ही होता है।

 न्यायालय में विषय विशेषज्ञ अधिवक्ता होते है जिनमे सबसे प्रभावशाली अधिवक्ता संवैधानिक अधिकार की सुरक्षा करने वाले अधिवक्ता होते है क्योंकि इनकी सफल पैरवी से देश के आम व्यक्तियों के साथ साथ संवैधानिक संस्थाओं भी उनकी लक्ष्मण रेखा दिखाई जाती है। 

 शांतिभूषण, ऐसे ही अधिवक्ता रहे। उन्होंने विभिन्न प्रकरणों के अलावा जनहित याचिकाओं के माध्यम से देश को दिशा देने वाले संवैधानिक संस्थाओं और पदों पर आसीन व्यक्तियों को न्यायिक तौर पर सुधरने पर मजबूर कर दिया।

 शांतिभूषण के जीवनकाल में सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुकदमें के रूप में 1975 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद( प्रयागराज) में रायबरेली से जीते लोकसभा चुनाव को लेकर था। राजनारायण , इंदिरा गांधी से चुनाव हार गए थे उनकी तरफ से शांतिभूषण ने पैरवी किया और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश जगमोहन सिन्हा के समक्ष ये प्रमाणित कर दिया कि चुनाव में सरकारी कर्मचारियों को चुनाव एजेंट के रूप में कार्य करवाया गया था । फैसला इंदिरा गांधी के विपक्ष में गया 12 जून 1975 कोउच्च न्यायालय के आदेश में 20 दिन के भीतर इंदिरा गांधी का विकल्प खोजने का निर्णय था।

 इस निर्णय के 13 दिन बाद देश मे इमरजेंसी लग गयी और कालांतर में 1977 का लोकसभा चुनाव देश के लोकतंत्र में विपक्ष की सरकार बनने का रास्ता शुरू हुआ। शांतिभूषण इस सरकार में केंद्रीय विधि मंत्री बनाये गए। 1980 के बाद शांतिभूषण पुनः सर्वोच्च न्यायालय में अपने पेशे में लौट आये । लोकपाल विधेयक को लेकर अन्ना हजारे के आंदोलन में शांति भूषण पुनः चर्चित हुए और आम आदमी पार्टी की स्थापना के लिए एक करोड़ रुपये की धनराशि देकर लोकतंत्र के मुख्यालय नई दिल्ली में सरकार बनाने की प्रमुख भूमिका में रहे।

आप मान सकते है कि सत्ता से न्यायालय में लड़ना दुरूह कार्य नहीं है बशर्ते आपमे राजनारायण जैसा जुनून हो और आपके पास शांतिभूषण जैसा कुशाग्र अधिवक्ता हो। ॐ शांति शांति शांतिभूषण


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