मोहब्बत का विदेशी त्यौहार

लेखक- संजय दुबे

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कहते है कि सूरज पूर्व से निकलता है और पश्चिम में डूबता है। हमारा देश पूर्व में सो जाहिर है कि ये देश सूरज को उगाने वाला देश है। भारतीय संस्कृति में भी चढ़ते सूरज को नमन करने का रिवाज है। इस देश की रीत में प्रीत है । संस्कारों के देश मे वात्सलय से प्रारंभ होता है स्नेह से बचपन बढ़ता है, संबंधों में प्रेम होता है। सबसे बड़ी बात ये है कि इन सब संबंधो में आत्मीयता होती है क्योंकि हर बंधन में प्रगाढ़ता के लिए संस्कारों की प्रतिबद्धता है।पश्चिम में संबंध संस्कार नहीं है करार है। संबंध में स्थायित्व कितना है ये वहां से संस्कार पर नहीं बल्कि समझौते पर निर्भर करता है।

 अब बात आती है त्यौहार की।पश्चिमी देशों में बामुश्किल उंगलियों में गिनने लायक त्यौहार है। हमारे देश मे त्यौहार अनगिनत है। पश्चिमी देशों में अधिकांश बातें व्यावसायिक है इस कारण उन्होंने प्रेम का भी पर्व मनाने के लिए एक संत खोजा जो एक निश्चित आयु के लोगो के लिए इजहार ए मोहब्बत के पैरवीकार रहे थे। एक अंजान से एकतरफा मोहब्बत को जाहिर करना कहां तक बुद्धिमानी है ये पश्चिम के देश वाले जाने लेकिन एक दिन से सप्ताह भर का आयोजन जिसमे गुलाब, चॉकलेट आदि का केवल प्रदान किस प्रकार के रूहानी मोहब्बत का इजहार है?

 स्कूल कालेजो में वे लोग जिन्हें परीक्षा की महत्वाकांक्षा कमोबेश कम है और वे लोग जो धनिक परिवारों के बिगड़ैल लोग है उनके लिए ये त्यौहार मायने रखता है। समाज का अभिजात्य वर्ग जो अपने से नीचे के समाज को केवल वैभव दिखाने के लिए आतुर है वे लोग भी संत वेलेंटाइन के अनुयायी हो सकते है। सीधे सीधे नकल परंपरा का निर्वाह है 14 फरवरी का इजहार ए मोहब्बत का विदेशी पर्व।

 ये देश कृष्ण औऱ राधा के आदर्श प्रेम का देश है जिसकी स्वीकार्यता सदियों बीत जाने के बाद भी है। कृष्ण और मीरा के आध्यात्मिक प्रेम का देश है जिसमे आसक्ति के कारण जहर भी अमृत बनता है।पश्चिम के देशों में प्रेम का पहला पड़ाव शारीरिक संबंध का निर्माण है। विवाह एक संस्था नहीं है बल्कि अनुबंध है। जिस देश मे कृष्ण जैसा प्रेम करने वाला ईश्वर हो जिसने प्रेम किया तो निभाय इसलिए ऐसे विदेशी संत जो नासमझ उम्र के बच्चों को विदेशी प्रेम का व्यवसाय देने का कोशिश करे उससे दूर रहने में ही भलाई है


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