बाअदब बामुलाहिजा सानिया मिर्ज़ा जा रही है..!
लेखक- संजय दुबे
6साल की उम्र में टेनिस का रैकेट पकड़ना भले ही आसान काम हो सकता है लेकिन एक लड़की वो भी कट्टर समाज की जहां बुर्के के पीछे जीने का मशवरा हो उसके लिए कम कपड़े( टेनिस खेल की अनिवार्यता जो ठहरी) पहन कर देश विदेश में सफर करना आसान नहीं था। दोहरे बंदिश के बावजूद सानिया मिर्जा ने 22 साल तक खुद का, परिवार का, शहर का राज्य का देश का और सबसे बड़ी बात महिलाओं का मान बढ़ाने का काम किया जिसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है।
देश दुनियां में महिलाओं के प्रति दोयम दर्जे के सोंच की शुरुआत घर से होकर परिवार, समाज, गली मोहल्ले शहर, राज्य, देश दुनियां तक फैली हुई है। शारीरिक बनावट के चलते दैहिक आकर्षण की बुनियादी अधिकार का सोंच रखने वाले जाहिल पुरुष इस बात को जताते बताते रहते है कि स्त्री घर के चार दीवारों के भीतर ही रहे, पढ़ उतना ले जितने में जोड़ घटा ले, उम्र आने पर शादी कर ले, बच्चे पैदा करे और परिवार के लिए खुद सहित खुद के पसंदगी को दफ्न कर दे और अंत मे मर जाये
ऐसे विचार की दुनिया के लिए शायद सानिया मिर्जा ने जनम नहीं लिया था और न ही उनके माता पिता ने ऐसी घटिया सोंच रखी थी। पाबंदी पसंद सम्प्रदाय के घेरे से सानिया मिर्जा को उनके परिवार ने निकाला और एक ऐसे वातावरण में परवरिश दी जहाँ से देश का रोशन नुमाया के रूप में सानिया निखरी। कट्टरपंथियों को उनका खेलना नहीं अखरता था ऐसा कहना गलत होगा उनको टेनिस खेल के साथ साथ पहनावे पर भी सख्त एतराज रहा। जो दुनियां बदलने की सोंच रखते है ख़ासकर महिलाएं उनको पारंपरिक अड़चनों से दो (बैक हैंड) चार हाथ तो करना ही पड़ता है। सानिया ने भी किया और कुछ सालों में जब टेनिस सर्किट में भारत का नाम गूंजने लगा तो सब कुछ ठीक भी होने लगा।
भारत मे खेल के नाम पर पुरुषो के पास क्रिकेट है हॉकी है बैडमिंटन है महिलाओं के पास क्या रहा? 1996 में कर्णम मल्लेश्वरी ने ओलंपिक मे पहला पदक जीता था। एशियाई खेलों में पी टी उषा ने नाम रोशन किया था। सायना नेहवाल और पी वी सिंधु ने बैडमिंटन खेल में देश को अंतरास्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित किया। टेनिस एक ऐसा खेल था जिसमे पुरुषो के नाम थे रामनाथ कृष्णन, अमृतराज बंधु, रमेश कृष्णन, लिएंडर पेस, महिलाओं में एक ही नाम था निरुपमा मांकड़ का। जो केवल राष्ट्रीय स्तर तक ही प्रसिद्ध थी। सानिया मिर्जा टेनिस खेलमे एक खुशबू थी जो समय के साथ विदेश में भी महक के रूप में महसूस किया गया। महिला एकल टेनिस में पश्चिम का दबदबा रहा जिसके सामने भले ही सानिया मिर्जा सफल नही रही लेकिन युगल और मिश्रित युगल में उनके हिस्से में 6 ग्रेंड स्लेम विजेता होने का गौरव जुड़ा हुआ है। 2009 से लेकर 2016 तक सालो में सानिया मिर्जा की उपलब्धि सर चढ़ कर बोली। ऑस्ट्रेलिया ओपन(2009) फ्रेंच ओपन(2012) और यू एस ओपन(2014) में मिश्रीत युगल की विजेता रही। 2015 में विम्बलडन और यू एस ओपन का युगल खिताब उनके हिस्से में आया तो 2016 में आखिरी बार ऑस्ट्रेलिया ओपन की विजेता रही।
एक ऐसे देश और संप्रदाय जहां महिला के आगे बढ़ने में बाधाएं ही बाधाएं हो, जहाँ का पुरुष वर्ग महिला के आगे बढ़ने पर उसके चरित्र के प्रति शंका के अवरोध खड़ा करता हो उस वातावरण से महिलाओं के आगे बढ़ने के लिए स्वयं को उदाहरण बनाना कठिन काम है। देश को खासकर महिलाओं को गर्व महसूस होना चाहिए कि उनके सशक्तिकरण के लिए सानिया मिर्जा ने खुद को खड़ा किया। कल दुबई में सानिया मिर्जा ने टेनिस के रैकेट को टांग दिया । देश की सरकार ने उन्हें पहले ही खेल रत्न घोषित कर दिया है जो जन भावना ही है। वे सही में एक प्रेरणास्रोत है उन महिलाओं के लिए, पुरुषो के लिए भी जो आगे बढ़ना चाहती या परिवार जो बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक है। सानिया मिर्ज़ा के बारे में एक बात और जो उनको खिलाड़ी होने से ऊपर एक अच्छा इंसान बनाता है वह यह कि वे मददगार है। हैदराबाद में उनके दानी होने की चर्चा आम लोग करते है। खेल से खिलाड़ी भावना तो स्वयमेव आ जाती है लेकिन अच्छा इंसान बनने के लिए नेक काम करना होता है। सानिया मिर्जा को दोनो रूप में देश याद रखेगा। उनके महिला होने, खिलाड़ी होने के अलावा उनके प्रेरणा को देश के 140 करोड़ लोग सम्मान करते है तालियां देते है।
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