आज़ादी के जश्न के पीछे के आज़ाद

लेखक- संजय दुबे

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देश की आज़ादी में यू तो अनेक महान योद्धाओं ने अपना सर्वस्व लुटा दिया उनमें से सुभाषचंद्र बोस, चन्द्र शेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव का नाम से प्रमुखता से लिया जाता है। सुभाषचंद्र बोस का रास्ता अलग था लेकिन उद्देश्य सभी के समान थे। चंद्रशेखर आजाद दूसरे समूह के सबसे बड़े नाम थे जिनके साथ देश भर क्रांतिकारी लोग जुड़े हुए थे। पंडित परिवार में जन्म लिए आज़ाद तुलसीदास के एक दोहे में अपना समग्र बना कर चले कि "भय बिन प्रीत न होय गोसाई" उनका भय इतना हुआ करता था कि अगर धोखे से कोई अंग्रेज सिपाही उनसे नाम पूछ लें और आज़ाद सच बता दे तो पेंट गीली हो जाती थी। उनके जीवित होने पर डर की बात छोड़ दे उनके द्वारा खुद को गोली मार लेने के बाद भी डरपोक अंग्रेजो ने 40 गोली अतिरिक्त रूप से चलाई थी। 

इस देश का बच्चा बच्चा आज़ाद को आज़ाद विचारों के धनी क्रांतिकारी के रूप में जानता है मानता है।। ये बात अलग है कि आजादी के बाद देश के लिए जान गवाने वालो को सुनियोजित ढंग से गर्त में धकेलने का काम हुआ लेकिन हस्ती कुछ लोगो की ऐसी हुआ करती है कि मिटती नही है। 15 साल की उम्र में 15 कोड़े खाते हुए भारत माँ को याद करने वाले आज़ाद ने अपने जीवन के बाद के 11 सालो में अंग्रेजो के नाक में दम करने का जो बीड़ा उठाया था उसे प्रयागराज के आज़ाद पार्क में मरते तक कायम रखे। 

       शिवाजी के समान गोरिल्ला युद्ध मे आज़ाद माहिर थे ।शिवाजी के समान वेशभूषा बदलने का गुर उनके पास था। इस कला को उन्होंने भगतसिंह को भी सिखाया था जिसके चलते भगतसिंह अंग्रेज बन कर स्थान बदल लिए थे। खुद भी झांसी में पंडित हरिशंकर शास्त्री बन कर अध्यापन करते और अंग्रेजों से भिड़ने की योजना बनाते। इस भिड़ंत के लिए पैसे जोड़ने के लिए पहले अमीरों को लुटे बाद में काकोरी में अंग्रेजो की राशि लूटने का काम किया। ऐसे योद्धा को अंग्रेज पकड़ ही नही पा रहे थे। कहते है जयचंद हर युग मे रहते है उस युग मे भी हुआ जिसने मुखबिरी की। आज़ाद, प्रयागराज के आज़ाद पार्क में आगामी योजना बना रहे थे कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया। अपने रिवाल्वर से तीन पुलिस वालों को मारने के बाद बची एक गोली से स्वयं को खत्म कर लिया ताकि आज़ाद आज़ाद जिंदा था आज़ाद ही मरे। आज की ही दिन था उनके शहीद होने का। इस आक्रामक योद्धा के मूछ के ताव को हर कोई देश का स्वाभिमान मानता है।

 पंक्तियां ही उनको बयां करती है

चंद्रशेखर नाम, सूरज का प्रखर उत्ताप हूं मैं

फूटते ज्वालामुखी सा,क्रांति का उद्घोष हूं मैं

चीखते प्रतिरोध का जलता हुआ आक्रोश हूँ मैं

विवश अधरों पर सुलगता गीत हूं विद्रोह का मैं

नाश के मन पर नशे जैसा चढ़ा उन्माद हूं मैं

नाम से आज़ाद हर संकल्प से फौलाद हूं मैं


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