हार शर्मनाक कैसी?

लेखक- संजय दुबे

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भारत ने अपने जमी पर अपने अनुकूल वातावरण के साथ साथ अपने दर्शकों के बीच ऑस्ट्रेलिया को 4 टेस्ट के सीरीज के पहले दो टेस्ट में हराया तो जीत से उत्साहित होना स्वाभाविक था। युद्ध हो या खेल जीत सभी को उत्साह देती ही देती है उन्माद भी देती है। ये उन्माद होता है विजयी होने का औऱ गाहे बगाहे हार हो जाये तो उसे न सहने का भी।

 इंदौर में ऑस्ट्रेलिया ने पहले दो टेस्ट के समान सवा दो दिन में ही भारतीय टीम को दो बार आउट करके ये तो बता दिया है कि दो हार ने उन्हें परेशान भले ही किया था लेकिन वे विचलित नहीं हुए थे। उनके भी स्पिनर ने इंदौर में वही काम किया जो पहले दो टेस्ट में भारत के स्पिनरों ने किया था।

 आज कल एक ट्रेंड चल रहा है क्रिकेट में ,कोई भी देश अपने देश मे अपने अनुकूल विकेट में जीतने का काम करती है। उनकी टीम जैसी रहती है वैसी पिच बनती है। बांग्ला देश और श्रीलंका को भी उनके देश मे हराना टेढ़ी खीर है ।

 भारत मे कोई भी टीम आती है तो स्पिनर्स जरूर आते है। ऑस्ट्रेलिया ने भी नाथन लियांन को लेकर आये साथ मे मैथ्यू कुहनमेंन को भी लाये। इंदौर में दोनो ने भारतीय टीम के बल्लेबाज़ों को अपनी घूमती हुई बाल के साथ फ्लाइट में भी गच्चा दिया। लियांन ने दोनो पारी में 11 विकेट लिए। सीमित ओवर के क्रिकेट की अधिकता ने बल्लेबाज़ों को विकेट पर टिकने का माद्दा कमजोर कर दिया है। संयम जैसे चेतेश्वर पुजारा ने दूसरे पारी में दिखाया वैसा किसी अन्य भारतीय बल्लेबाज़ नही दिखा पाए। परिणाम ये रहा कि हार हो गयी। ये हार शर्मनाक क्यो हो गयी क्योकि मीडिया ने तुरंत जो खबरे फेंकी उसमे हार शर्मनाक थी 

 खेल में एक प्रसिद्ध वाक्य है जीतो तो गर्व नहीं हारो तो शर्म नहीं। खेल में ,टेस्ट क्रिकेट में तो ड्रा की भी संभावना है लेकिन इसी खेल के सीमित ओवर में अगर एक टीम 5 ओवर खेल ले और अपरिहार्य कारणों से आगे खेल हो सके तो फिर डकवर्थ लुइस के नियम से हार जीत का फैसला हो जाता है। बहरहाल टेस्ट में अगर ड्राZ है लेकिन एक टेस्ट में हार से नाउम्मीदी करना अच्छा नहीं है।


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