स्थाई लोक अदालत ने पाया बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने की सेवा में कमी

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स्थाई लोक अदालत बिलासपुर ने बैंकिंग सेवा से संबंधित एक‌ मामले‌ की‌ सुनवाई करते हुए पाया कि‌ बैंक ऑफ महाराष्ट्र मध्य नगरी चौक ने सेवा में कमी की है। विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 की धारा 22-ए के तहत प्रस्तुत आवेदन पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि बैंक ने बैंकिंग तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं की सेवा और छत्तीसगढ़ शासन की अधिसूचना के खिलाफ काम‌ करते हुए सेवा में कमी की है। अदालत ने बैंक द्वारा वसूल किए गए एसएमएस प्रभार की राशि और शारीरिक व मानसिक पीड़ा के लिए 2000 रुपए क्षतिपूर्ति 15 दिन के भीतर देने का आदेश दिया है। मामले की सुनवाई स्थाई लोक अदालत के अध्यक्ष पंक कुमार जैन, सदस्य सुरेश सिंह गौतम व शालिनी मिरी की पीठ में हुई। 

सुभाष नगर गोंड़पारा निवासी विमल मिश्रा ने स्थाई लोक अदालत में आवेदन प्रस्तुत कर बताया कि उनका खाता बैंक ऑफ महाराष्ट्र के मध्य नगरी चौक ब्रांच में है। जिसमें उनका मोबाइल नंबर पंजीकृत कराया गया है। इस खाते में 18 अप्रैल 2022 को नगर निगम के द्वारा एनईएफटी के माध्यम से 93359 रुपए जमा कराया गया था। जिसकी जानकारी आवेदक के मेल पर प्रेषित की गई। उसके बाद आवेदक ने 20 अप्रैल 2022 को 90000 रुपए का सेल्फ अकाउंट पेई चेक जमा किया। जिसे बैंक ने डिसऑनर कर दिया। इस संबंध में 590 रुपए और अन्य कटौतियों के बारे में मौखिक जानकारी के आधार पर आपत्ति दर्ज कराए जाने पर इस संबंध में बैंक द्वारा कोई सूचना आवेदक को किसी भी माध्यम से नहीं दी गई। इस प्रकरण इस प्रकार स्टेटमेंट प्राप्त होने पर मिनिमम बैलेंस चार्ज सहित अन्य राशि 8359 रुपए कटौती किए जाने का उल्लेख करते हुए बैंक शाखा ने संस्था के संबंध में बैंकिंग नियमों के अनुसार कार्य नहीं करने के कारण उत्पन्न आर्थिक एवं मानसिक परेशानी के आधार पर कटौती की गई राशि और अन्य क्षतिपूर्ति के संबंध में अनुतोष दिलाए जाने की मांग की गई। बैंक की ओर से कहा गया है कि आवेदक का खाता उनके बैंक में है, मोबाइल नंबर की जानकारी को स्वीकार किया गया। साथ ही कहा गया कि प्रत्येक लेन देन की जानकारी आवेदक को पंजीकृत मोबाइल पर भेजी गई। इस प्रकार खाते में पर्याप्त बैलेंस ना होने की स्थिति को दर्शित करते हुए कहा गया कि इस संबंध में आवेदन 4 मई 2022 को शिकायत किया था, इस पर उचित कटौती किए जाने की स्थिति दर्शित करते हुए 9 मई 2022 को बिंदुवार जानकारी दी गई थी। आवेदक बैंक का संपूर्ण कार्य सिस्टम जेनरेटेड होता है बैंकिंग सर्कुलर के अनुसार खुद से कटौती हो जाती है। इसलिए आवेदन निरस्त किया जाए। मामले को सुनने के बाद अदालत ने पाया की एसएम‌एस सेवा के संबंध में अनावेदक बैंक प्रत्येक 3 माह में 15 रुपए प्रभार लिया जाता है। ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट है कि अनावेदक बैंक ने आवेदक के पंजीकृत मोबाइल नंबर पर प्रत्येक लेन-देन की जानकारी देना आवश्यक है। बैंक ने एसएमएस जानकारी के संबंध में कोई विवरण प्रस्तुत नहीं किया है। 

बैंक ने नहीं किया दायित्व का पालन

 बैंक का यह दायित्व है कि वह अपने ग्राहकों को प्रत्येक लेन-देन के संबंध में पंजीकृत मोबाइल पर एसएमएस जानकारी देकर उसे अवगत कराए। साथ ही बैंक एसएम‌एस जानकारी भेज कर सुनिश्चित करने के आधार पर ही प्रत्येक 3 माह के संबंध में नियमानुसार 15 रुपए शुल्क कटौती कर सकता है। आवेदक बैंक के सर्वर में किसी तकनीकी त्रुटि या लोड बढ़ने संबंधी किसी भी कारण को दुरुस्त करने का कर्तव्य बैंक का ही है। अन्यथा वह एसएमएस जानकारी के संबंध में शुल्क प्राप्त नहीं कर सकता। ऐसे में इसकी सेवा कमी प्रमाणित होने के आधार पर आवेदक का मामला आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए अदालत ने बैंक को निर्देशित किया कि वह आवेदन तथा अन्य ग्राहकों के संबंध में समस्त लेन देन की सूचना और पूर्व आवश्यक सूचना के लिए एसएमएस सर्विस प्रणाली को प्रभावी रूप से क्रियान्वित करें। आवेदक अपने बैंक खाते के संबंध में एसएम‌एस सेवा में कमी के आधार पर उसके खाते के प्रारंभ से लेकर प्रकरण प्रस्तुति दिनांक तक वसूल किए गए एसएमएस प्रभार को वापस प्राप्त करने का अधिकारी है। आवेदन को निर्देशित किया गया कि वह आवेदक के बैंक खाते में 15 दिवस के भीतर कटौती किए गए इस प्रभार को उपरोक्त अवधि के भीतर वापस करते हुए आवेदक के बैंक खाते में जमा करे। अदालत ने बैंक को निर्देशित किया कि वह एसएम‌एस‌ सेवा की कमी के आधार पर आवेदक को हुई शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा के संबंध में ₹2000 क्षतिपूर्ति राशि 15 दिवस के अंदर अदा करें अथवा उसके बैंक खाते में जमा करें।


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