अमर की जीत होगी औऱ नए भगत की ताजपोशी
सत्ता अपने साथ शासक को उन गुणों से परिपूर्ण करातीहै जिसकी आवश्यकता दूरगामी संभावनाओं को परिणाम देने का सामर्थ्य हो। लोकतंत्र में सत्ता देने लेने का काम मतदाता करता है इस कारण जब चुनाव आसन्न हो तो राजनीति के बिसात पर जाहिर है राजा, वजीर ऐसा रखता है जो राजा के हिसाब से मोहरे चले । सत्ता औऱ संगठन के कदमताल के बिना किसी भी चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को सफलता मिल जाये ये विपक्षी पार्टी की तुलना में आसान होता है क्योंकि खुफियातंत्र उनके साथ होता है। इसके बावजूद जनमत के बहुमत के लिए चुनाव में संगठन की महत्ता महत्वपूर्ण होती है।
छत्तीसगढ़, राज्य में पांचवे विधानसभा चुनाव का शंखनाद होने में आठ माह शेष है ।ऐसे में राज्य के ताकतवर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने पत्ते खोलने का उपक्रम शुरू कर दिया है।
प्रदेश में भूपेश बघेल ने कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन करा कर गांधी परिवार सहित नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भी अपने पक्ष में कर लिया था राष्ट्रीय संगठन का विश्वास अर्जित करने के बाद अब प्रदेश संगठन में भी उनको अपने विश्वास प्राप्त अध्यक्ष की आवश्यकता आगामी विधानसभा चुनाव के नजरिये से जरूरी भी है सो प्रदेश कांग्रेस में अब बदलाव के संकेत
मिलने प्रारम्भ हो गए है।
आगामी विधानसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए भूपेश बघेल ने प्रदेश के विधायकों को ये चेता दिया था कि वे अकेले ही कांग्रेस की नैया पार कराने का सामर्थ्य रखते है इस कारण 90 विधानसभा क्षेत्र को नाप चुके है। इस यात्रा को भेंट मुलाकात का नाम देकर उन्होंने विधायकों के हालात को भी समझ लिया है। इसी कारण पार्श्व से 30 विधायको के पत्ता साफ होने के भी संकेत मिल रहे है। अब बात आती है संगठन की।
हर आसन्न चुनाव में हर पार्टी में अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि हर विधानसभा क्षेत्र के लिए विजयी होने वाले प्रत्याशी के चयन की बात होती है। 2018 में कांग्रेस छत्तीसगढ़ में विपक्ष में थी इस कारण सत्ता के बिना प्रत्याशियों का चुनाव संगठन के लिए कठिन था। भूपेश बघेल खुद ही अध्यक्ष थे । उनके चयन में विवाद भी हुआ और दिल्ली में बैठे मोतीलाल वोरा ने एकल चलो रे के नीति के ऊपर कमेटी बनवा कर खेल बिगाड़ने की सफल कोशिश की ही थी लेकिन तब के भूपेश बघेल और अब के भूपेश बघेल में कद और काठी का लहरक आ चुका है। वे दिल्ली में दमदार है। गांधी परिवार के तीनों सदस्य का विश्वास वे बीते आसाम और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ही जीत चुके है। राष्ट्रीय अधिवेशन करा कर राष्ट्रीय अध्यक्ष को भी अपने पक्ष में कर लेना उनके लिए टेढ़ी खीर नही रही।
सत्ता के साथ साथ संगठन में वर्चस्व भूपेश बघेल को अगले चुनाव में कांग्रेस को प्रदेश में दोबारा काबिज़ होने का बल देगा इसलिये उन्होंने संकेत दे दिया है। प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कौन सी जाति का होगा और किस क्षेत्र से होगा। सभी जानते औऱ मानते है कि प्रदेश की सत्ता में आदिवासी बहुल इलाकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। बस्तर और सरगुजा के जरिये ही प्रदेश में सत्ता निर्धारित होगी। अभी के अध्यक्ष मोहन मरकाम, बस्तर से है सो अगला अध्यक्ष सरगुजा से होना तय है। मुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है तो स्वाभाविक है कि अध्यक्ष अनुसूचित जनजाति से ही होगा।
कांग्रेस के लिए बस्तर से ज्यादा चिंता का विषय सरगुजा है। टी एस सिंहदेव के क्रियाकलापों के चलते ये संशय कांग्रेस में चल रहा है कि एन चुनाव के वक़्त सिंहदेव कौन सी चाल चलेंगे? उनको निस्तेज करना भूपेश बघेल के लिए एक चुनौती भी है इसलिये एक तीर से दो शिकार की रणनीति बनते दिख रही है। सरगुजा से सिंहदेव के घुर विरोधी अमरजीत भगत वो तीर है जो दो निशाने पर लग सकता है। अमरजीत भगत आदिवासी भी है, सरगुजा के आदिवासी है और विरोध जग जाहिर है। कांग्रेस में ये बात बीते कई समय से हवाओ में है अब जब संकेत मिल रहे है तो निर्णय भी हो जाएगा। कांग्रेस के आने वाले अध्यक्ष इस बात से बेखबर नही हो सकते है कि केवल आदिवासी क्षेत्रों से बढ़त सत्ता का द्वार खोल देगी। आदिवासी क्षेत्रों में उनकी अपनी भी जातीय पार्टी जन्म ले चुकी है।
शहरी क्षेत्र में विकास का अभाव चुनौती रहेगी क्योकि ग्रामीण क्षेत्र से परे मतदाता का निर्णय फिलहाल तटस्थ है। इसके अलावा मुख्य विपक्षी दल के साथ साथ वोट काटू पार्टियां भी शामिल होंगी। ऐसे में 46 सीट का न्यूनतम लक्ष्य को साधना ही नए संगठन का मुद्दा होगा सो मान कर चल सकते है अमर की जीत के साथ भूपेश बघेल को नया भगत मिलना तय है
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