सर्वोच्च न्यायालय : राजनीतिज्ञ "व्यक्ति विशेष" नहीं
किसी भी देश के संवैधानिक संस्था चाहे वह न्यायालय हो अथवा जांच एजेंसी के सामने कोई भी पदेन व्यक्ति चाहे वह मंत्री हो या अधिकारी या समृद्ध व्यापारी विशेष नहीं होता है बल्कि अन्य व्यक्ति के समान साधारण होता है। कानून की धाराओं में कृत्य औऱ उसके दंड के साथ साथ जांच एजेंसियों को जांच करने के लिए सक्षम बनाती है। हर विभाग के अधिकारी जो लोक सेवक होते है उन्हें स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करने के लिए किसी स्थान में प्रवेश करने, तलाशी लेने और जप्त करने का अधिकार सौपती है। यह माना जाता हैं कि व्यवस्था को बनाये रखने और अनियमितता को रोकने के लिए अधिकारी सद्भावना पूर्वक कार्य करते है।
सर्वोच्च न्यायालय में देश के 14 राजनैतिक दलों के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लगाई गई थी कि देश की तीन केंद्रीय जांच एजेंसी, सीबीआई औऱ ईडी के द्वारा विपक्षी दलों के नेताओ को टारगेट किया जा रहा है। ये भी मांग की गई थी कि राजनीतिज्ञों को ट्रिपल टेस्ट 1 जब तक उनके फरार होने,2 साक्ष्य को नष्ट करने और 3 गवाहों को प्रभावित करने का अंदेशा न हो गिफ्तार न किया जाए। याचिका बीते समय मे की गई केवल राजनीतिज्ञों के आंकड़ों के आधार पर लगाई गई थी।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का संतोषप्रद उत्तर नही मिलने पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के द्वारा याचिका वापस ले ली गयी।
ये जगजाहिर है कि व्यवस्थापिका से जुड़े लोग चाहे वे प्रत्यक्ष हो अप्रत्यक्ष हो कार्यपालिका के अधिकारियों के सहयोग से ही मजे लेने का काम करते है। सत्ता के इर्दगिर्द ऐसे लोगो की फौज होती है जो एजेंट, दलाल, आजकल नए शब्द भी आये है मिडिलमैन औऱ लाईसनर कहलाते है ये लोग बड़े व्यापारियों को लाभ पहुँचाने के लिए सकारात्मक योजनाएं बना कर लाभ लेते है और देते है।यही लोग माध्यम बनते है और खेल चलते रहता है। सत्ता के मद में व्यवस्थापिका औऱ कार्यपालिका भूल जाती है कि उनके दुरभि संधि की जानकारी आम लोगो को नही होती है जबकि सबसे पहले दोनो पक्ष के उपेक्षित लोग ही बात को बता देते है।
अच्छाई आज के जमाने मे कछुआ है और बुराई खरगोश गति है। ऐसे वातावरण में जयचंद, मीरजाफर स्वमेव जन्मे होते है। आयकर, सीबीआई, ईडी तक खबरे बिना चाहे पहुँचती है। सारा देश जान रहा है कि केंद्र और राज्य स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर बिकते है, पद बिकते है। देश मे खनिज माफिया है, शराब ,लोहा,कोयला, रेत, मुरूम, गैस , सड़क, राशन, मीडिया माफिया है कितना कमीशन किसे मिलता है सब जानते है। आम जनता सब जानती है।
ये व्यवस्था कब तक औऱ कहां तक चलेगी इसे रोकने के लिए कोई अधिकृत एजेंसी होना तो चाहिए। शुक्र है कि व्यवस्थापिका ने ही सीबीआई, ईडी, आयकर विभाग को जन्म दिया है। ये भी माना जाता है कि केन्द्र में सत्ता सम्हालने वाली पार्टी अपने विपक्षी दलों को निपटाने के लिए जांच एजेंसी का दुरुपयोग करती है लेकिन पिछले चार सालों में पश्चिम बंगाल, और झारखंड में जिस तरह से पैसे का अंबार निकला है उससे आम आदमी की आंख चकाचौंध हो गयी है। प्रतियोगी परीक्षाओं में घोटाले के चलते मेहनत करने वाले हतोत्साहित होते जा रहे है। ये अगर नही रुका तो कार्यपालिका में लुटेरों की जमात खड़ी हो जायेगी।
14 दलों ने जो याचिका लगाई थी उसका उद्देश्य निर्वाचित प्रतिनिधियों को जांच एजेंसियों के शिकंजे से बचाने की कवायद थी।आम जनता का निर्वाचित प्रतिनिधि विशेष कैसे हो सकता है। उस पर ट्रिपल टेस्ट से छूट आखिर क्यों मिले। अपने क्रियाकलापों को साफ सुथरा रखे तो भला कोई जांच एंजेंसी सुबह 5 बजे क्यो दरवाजा खटखटाएगी। देश मे 520 मंत्री4हज़ार विधायक है। इनमें से पांच दस भी जांच एजेंसी के घेरे में आ रहे है तो शुक्र मनाना चाहिए कि 1-2 प्रतिशत जनप्रतिनिधि ही आचरण से हटे है।
कार्यपालिका से जुड़े लोगों के लिए ये याचिका आंख खोलने वाली है क्योंकि आपकी रोजी रोटी तो आपकी सरकारी सेवा ही है। आपका जिक्र याचिका में किया ही नही गया। आप अच्छा बनने के लिए भले ही सारे जुगाड़ करवा दे। जब केंद्रीय जांच एजेंसी के फेर में पड़ेंगे तो व्यवस्थापिका से जुड़े लोग आपकी मदद नही जर पाएंगे।
सर्वोच्च न्यायालय के जांच एजेंसियों के पक्ष में निर्णय से निचले अदालतों में अब ऐसे मामलों में जमानत भी खटाई में पड़ गयी है। सत्येंद्र जैन पहले विक्टिम है।
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