मदर इंडिया या खुशनुदा

लेखक- संजय दुबे

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उत्तर प्रदेश में गोलियों का मौसम है। दो दिनों में चार जिंदा कुख्यात व्यक्ति गोली के शिकार हुए है। दो को कानून के रखवालों ने मुठभेड़ में मारा तो दो को गैर कानूनी रूप से मार दिया गया। चार में से तीन व्यक्ति एक ही परिवार के थे और राजनैतिक रूप से रसूखदार थे। अतीक औऱ असरफ दोनो अतीत में व्यवस्थापिका ( जनकल्याणकारी नीतियों की बनाने वाली संस्था - लोकसभा या विधानसभा!) के सदस्य भी थे। चौथा व्यक्ति इस परिवार का हिस्सा नहीं था लेकिन कौम एक ही थी। जाति से भी औऱ कर्म से भी। 

              दुनियां में जितने भी धर्म है उनमें अधर्म की खिलाफत है और वह भी सख्ती से।संभवतः हर व्यक्ति की अच्छे बुरे का फर्क सिखाने वाली पहली संस्था घर होती है। माँ को सबसे बड़ा गुरु माना जाता है जिसके गर्भ से ही सीखने की परंपरा शुरू होती है। अभिमन्यु उदाहरण है। गर्भ धारण करने वाली महिला को गर्भावस्था में अच्छी बातें सुनने और पढ़ने की ताकीद दी जाती है। इसके बावजूद वंशानुगत गुण पीढ़ियों में तब्दील होते है ऐसा विज्ञान भी प्रमाणित करता है।

       बहरहाल बात चौथे मृतक मो गुलाम की है जो अपराध की दुनियां में कब शामिल हुआ था इसका अंदाज़ा उसके परिवार को नही था लेकिन जब असलियत सामने आई तो समझ मे आने लगा था कि सब कुछ हाथ से फिसलता जा रहा है। अपराध की सज़ा आरोपी को अपराध प्रमाणित होने के बाद मिलती है लेकिन मानसिक त्रासदी परिवार भुगतता है। गुलाम का भाई राहिल को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। अतिक्रमण के कारण मकान टूट गया। परिवार सड़क पर आ गया ।इसके बावजूद राहिल ने अपराध का रास्ता नहीं चुना।

 भाई से बड़ा रिश्ता माँ का होता है। गुलाम की माँ खुशनुदा सचमुच मदर इंडिया है।अपने बच्चे की गलती को उन्होंने स्वीकार किया किया। उन्होंने माना कि अपराध से जुड़े व्यक्ति का अंत तो होता ही है ये वह व्यक्ति जानता है। गुलाम भी अपना अंत जानता था ।जब सरे आम किसी व्यक्ति की हत्या के लिए आप जिम्मेदार है तो आपके अंत का भी ऐसा ही रिप्ले होगा। गुलाम के साथ भी ऐसा हुआ तो उसकी माँ ने शव को लेने से इंकार कर दिया। जीते जी जिस व्यक्ति के कारण पूरा परिवार परेशानी में जाते गया उसके मौत के बाद औऱ कितनी परेशानी उठाता? 

    एक अपराधी, दुनियां के लिए कुछ भी हो सकता है लेकिन पारिवारिक रिश्ता तो केवल माँ बेटे का ही होता है। मृत्यु हमेशा त्रासदीदायक होती है। माँ के लिए पुत्र की मृत्यु असहनीय होता है क्योंकि शरीर का ही हिस्सा होता है। गुलाम तो खुदा के दिये जिंदगी पर अतिक्रमण कर रहा था सो उसे एनकाउंटर होना पड़ा। इस घटना पर धर्म का रंग चढ़ रहा है, सम्प्रदाय की बात हो रही है, राजनीति तो अनिवार्य तत्व है लेकिन इन सबसे परे सबसे महत्वपूर्ण है परिवार के सदस्यों की बेबाकी जिन्होंने गुलाम की लाश लेने से मना कर सभी धार्मिक साम्प्रदायिक औऱ राजनैतिक लाभ की संभावनाओं पर सच का पूर्णविराम लगा दिया है। ऐसी माँ, समाज मे मिसाल है। आपने रील लाइफ में नरगिस औऱ निरूपा रॉय को मदर इंडिया और दीवार फिल्म में ऐसी माँ के रूप में देखा होगा रियल लाइफ में खुशनुदा को देख सकते है


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