अर्जुन,"सचिन"तेंदुलकर

लेखक- संजय दुबे

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Infamous son of famous father" अंग्रेजी भाषा मे एक कहावत है। इसका हिंदीकरण करे तो "नामवर पिता का गुमनाम बेटा" होता है।दुनियां में हर पिता चाहता है कि वह अपने बेटे के कारण जाना जाए। अगर चाहत घोड़ा होता तो हर कोई सवार होता लेकिन ऐसा होता नही है। क्रिकेट की दुनियां में कल एक घटना घटी। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के बेटे अर्जुन तेंदुलकर(गूगल टाइपिंग में एक नाम डालो तो उसके पूरक शब्द दिखते है। जैसे सचिन लिखो तो पहला शब्द तेंदुलकर औऱ पायलट शब्द दिखता है, स्वाभाविक है सचिन का नाम ही बड़ा है लेकिन अर्जुन टाइप करो तो सिंह दिखता है तेंदुलकर नहीं) को कल मुम्बई इंडियन की तरफ से दो साल बाद खेलने का मौका दिया गया। अर्जुन के पिता सचिन तेंदुलकर लगभग 17 साल की उम्र में भरतीय क्रिकेट टीम के हिस्सा बन चुके थे। उनका बेटा वैसी संभावना का फिलहाल एक प्रतिशत भी प्रदर्शन नही कर पाया है।

 मुंबई इंडियन तो अंबानी का क्रिकेट के कैसिनो में दांव लगाने वाले खरीददार है। उनकी टीम में वो हर व्यक्ति खेल सकता है जो खरीदा गया है। असली क्रिकेटर तो उसे माना जाता है जो कम से कम अपने राज्य की रणजी टीम से कम से कम दो तीन साल खेल ले।मुम्बई, को क्रिकेट की नर्सरी कहा जाता था। इस राज्य ने 46 बार रणजी फाइनल में जगह बनाई है और 41 बार जीता है। भारतीय टीम में जितने "कर" है - हिनदेकर, रंगनेकर, पाटणकर,मांजरेकर, हार्डिकर, पारकर, कानिटकर, वाडेकर, गावस्कर सोलकर, वेंसरकर, तेंदुलकर सब मुंबई रणजी टीम के हीरो रहे है। ऐसे राज्य की टीम में सचिन के बेटे अर्जुन को अब तक जगह न मिलना ये तो बताता है कि उनसे बेहतर खिलाड़ी मुम्बई में है। यही वजह है कि अर्जुन को मुम्बई के लिस्टेड खिलाड़ी से मुक्त होकर गोवा की टीम में खेलने की मजबूरी आन पड़ी है।

एक तरफ 200 टेस्ट, 100 शतक, जैसे उपलब्धियों से परिपूर्ण महज 17 साल की उम्र में टेस्ट खेलने वाले सचिन तेंदुलकर है तो दूसरी तरफ उनका23 साल का बेटा अर्जुन है। आईपीएल में खेलने वाली 10 टीम में मुंबई इंडियन ने अर्जुन को लिया है तो ये उपलब्धि की खरीदी न होकर सचिन को दी जाने वाली परोक्ष मदद है। दो साल तक टीम से नही खिलाना औऱ इम्पेक्ट सुविधा मिलने पर अर्जुन को खिलाया जाना कुछ तो तय करते दिखता है। अर्जुन, को ऑलराउंडर के बजाय गेंदबाज के रूप में लिया गया है। 5 विकेट गिरने के बाद भी अर्जुन को बल्लेबाज़ी के नही उतारा गया था।

 किसी भी क्षेत्र में उम्र मायने नही रखती है।इस देश मे अनेक क्रिकेट खिलाड़ियों ने 27-28 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में प्रवेश किया है। इस आधार पर अर्जुन के लिये उम्मीद की जा सकती है लेकिन गोवा की टीम जो बामुश्किल रणजी के नाकआउट में भी नही आ पाती वहां से देश की टीम में जगह बना पाना आसान नही दिखता है।गोवा, केरल, राजस्थान, सेवाएं सहित झारखंड के साथ एलीट ग्रुप में है। जहां से पहले दो स्थान में आना ही कठिन है ऐसे मेंअर्जुन का राष्ट्रीय भरतीय टीम में जगह बनाना फिलहाल आसान नहीँ है।

 यद्यपि सचिन तेंदुलकर ने अर्जुन को एक ऑलराउंडर के रूप में बनाने के लिये बहुत पापड़ बेले है लेकिन बरगद के पेड़ के नीचे कोई औऱ पेड़ पनपता नही है।

 क्रिकेट की दुनियां में भारत के सुनील गावस्कर भी सचिन की तरह ही फेमस फादर रहे है और उनका बेटा रोहन इनफेमस सन। दुनियां में दस हजार रन बनाने वाले सुनील पहले बल्लेबाज रहे है। डॉन ब्रैडमैन के सर्वाधिक शतक संख्या 29 का रिकार्ड सुनील ने ही तोड़ा था। उनके बेटे रोहन भी अर्जुन तेंदुलकर जैसे ही रहे। रोहन भी मुम्बई छोड़ बंगाल से रणजी के खेलने गए थे। उस समय नाम का लिहाज रख लिया जाता था सो 2 एकदिवसीय मैच रोहन ने भारत की तरफ से खेल भी लिया लेकिन like father like son की कहावत चरितार्थ नही कर पाए। संभावना की उम्र नही होती है लेकिन उम्र रहते संभावना न दिखे तो उम्मीद भी नही दिखती है। अर्जुन, को अपने पिता सचिन के छांव से निकलने के लिए अपने को सिद्ध करना पड़ेगा क्योंकि सचिन जैसे खिलाड़ी एकात बार ही जन्म लेते है।


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