दुनियां के मजदूर या मजदूर की दुनियां

लेखक- संजय दुबे

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श्रम को आदिकाल से दो भागों में बांटा गया है। पहला है बौद्धिक श्रम और दूसरा है शारीरिक श्रम। दोनो प्रकार के श्रम से दुनियां वाकिफ है। दोनो ही प्रकार के श्रम का अपना अपना महत्व है।

 मानसिक श्रम करने वालो के पास शारीरिक श्रम करने वालो से काम कराने का हुनर आदिकाल से रहा है। दुनियां में औद्योगिक क्रांति होने से पहले सारे कार्य के पीछे शारीरिक श्रम की ही प्रधानता थी। एक लोकोक्ति तत्समय प्रसिद्ध थी कि व्यक्ति एक मुँह औऱ दो हाथ लेकर जन्म लेता है। इसलिये १९३० के पहले तक सात अजूबे भी खड़े हुए तो इनके पीछे शारीरिक श्रम का ही योगदान था।

  दुनियां के सृजन के साथ ही संपन्नता औऱ विपन्नता की खाई बनने लगी थी।जाहिर तौर पर जो लोग संपन्न हुए उन्होंने शोषण को अपना अधिकार मान लिया। उन्नीसवी शताब्दी के पूर्वोतर काल मे शोषण चरम पर पहुँचा। अति का अंत होता है और ऐसा हुआ भी। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के बाद तक श्रम करने वाले श्रमिको को जब जबर्दस्ती की जाने लगी तो आक्रोश भी फूटा।विद्रोह भी हुआ। जान- माल का नुकसान भी हुआ।सुधार की बयार भी बही। दुनियां भर के विद्रोह ने श्रमिको के काम के अधिकतम घण्टे तय करा लिए। आठ घण्टे की अवधि निर्धारित हुई। संयोग ये रहा कि जिस दिन ये नियम बना उस दिन पहली मई का दिन था। 

दुनियां में अभूतपूर्व कार्य की बुनियाद का दिन था। इसके चलते मानसिक श्रम के लिए भी कार्यावधि निर्धारित हो गयी।

 वर्तमान युग मे भारी भरकम कार्यो के लिए शारीरिक श्रम की आवश्यकता अब न्यूनतम रह गयी है। ये भी मान सकते है कि अधिकतर कार्य इंसान के हाथों से निकलकर मशीनों के पास चले गए है। गावं में जाकर देखते है तो खेत जुताई का कार्य अब बैल से कराने वाले श्रमिक की जगह ट्रेक्टर चालक के पास आ गया है। फसल कटाई अब श्रमिक नही करते बल्कि हार्वेस्टर करने लगा है। बढ़ती आबादी के साथ मशीनों पर आश्रिता ने हाथ को बेकार करते जा रहे हैं। शहर में रिक्शा व्यक्ति चलाता था अब विकल्प में ऑटो आ गया है। कहने का मतलब है कि पसीना बहाने वाले कामो की कमी होते जा रही है।

 अब एक मई श्रमिको खासकर जो असंगठित है उनके अधिकारों की रक्षा का विषय ज्यादा हो गया है। निर्माण कार्य मे लगे श्रमिक अब आठ घण्टे के कार्य मे लंच ब्रेक लेते है ये सजगता है। असंगठित क्षेत्र में भुगतान की विसंगति है जो एक चुनौती है देश और राज्य की सरकारों के लिए। यदि इसपर सुधार हो जाये तो आनेवाले एक मई की सार्थकता औऱ भी बढ़ जाएगी


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