आईपीएल में आइजीएल
लेखक - संजय दुबे
अति किसी भी चीज़ में बुरी होती है।क्रिकेट में भी अति हो रही है खासकर भारत मे। वैसे भी हम लोग साल भर टेस्ट, वनडे, टी 20 अंतरास्ट्रीय स्तर पर कम नही खेलते है ।इसके बावजूद 56 दिन का आईपीएल सिर पर सवार रहता है। मोटामोटी 365 दिन में 130 दिन भारत के खिलाड़ी मैदान में रहते है। आईपीएल याने इंडियन प्रीमियर लीग अब इंडियन गाली लीग(आईजीएल) का भी रूप ले रहा है
आईपीएल की शुरुवात का उद्देश्य देश दुनियां के खिलाड़ियों को आठ दस टीम में विभाजित कर सौहार्द्रता बढ़ाने के अलावा भरपूर मनोरंजन करना था। इसके पीछे का उद्देश्य भी दूसरा था ।सट्टा वालो ने ऐसा जाल बुना कि 500 अरब का सट्टा मैदान के बाहर चलता है। अब ऑनलाइन सट्टा भी बाजार में आ गया है। सारे खिलाड़ी करोड़ो रूपये वसूल कर ड्रीम टीम बनवा रहे है। जैसे सिगरेट के डब्बे में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक लिखा होने के बावजूद कोई फर्क नही पड़ता है वैसे ही अपने टीम बनाने में लत लगने के खतरे की बात कही जा रही है पर फोकट में पैसा पाने की लालच का अंत कहा होता है?
लिखते लिखते मुद्दे से भटकना मेरी आदत होते जा रही है। मुद्दा था मैदान में कहा सुनी का औऱ लेखन की गाड़ी का स्टेयरिंग दूसरी तरफ मुड़ गया था।
खैर, बात 2011 के वनडे विश्वविजेता टीम भारत के दो खिलाड़ियों की है। संयोगवश दोनो दिल्ली से ही है। मुद्दा गौतम गम्भीर औऱ विराट कोहली के बीच नवाबो के शहर लखनऊ में तहजीब को दरकिनार रखने की थी।
गौतम गंभीर अब शुद्ध खिलाड़ी नही है। दिल्ली से सांसद है वो भी भाजपा के याने सत्ता पक्ष के, राजनीति के खिलाड़ी हो गए है। क्रिकेट की व्यावसायिकता में वे पहले केकेआर के कप्तान हुआ करते थे। जैसे जैसे वक़्त बीता केकेआर ने गौतम को गम्भीरता से लेना कम करते गया। अंतिम दौर में वे सुरक्षित खिलाड़ी रह गए थे। बहरहाल क्रिकेट के अनुभवी है इस कारण पूछ परख तो रहती है। सुपर ज्वॉइंट लखनऊ के मेंटर बन गए। मेंटर का काम मैदान के बाहर होता है भीतर नहीं, इस बात को गौतम ने गम्भीरता से लिया होता तो अपने 25 लाख बचा लिए होते। कूद पड़े मैदान में, अच्छी खासी बहसबाजी भी हो गयी। भद्र लोगो का खेल माना जाता है क्रिकेट,लेकिन अभद्रता के किस्से होते रहते है।
विराट और गौतम दोनो नकचढ़े खिलाड़ी माने जाते रहे है। मैदान के भीतर आक्रमकता इनका आभूषण रहा है। अनेक बार उत्साह में इन दोनों ने तहज़ीब को अनदेखा किया है। दो दिन पहले जो हुआ वह खिलाडी औऱ गैर खिलाड़ी का मुद्दा था। खिलाड़ी तो आपस मे कहा सुनी करते रहते है और ये बात मैदान में ही खत्म हो जाती है लेकिन जीत को सहा न जाना और हार को पचा न पाना खेल भावना का कमजोर होना है। कोई भी खिलाड़ी या मेंटर खेल और इसकी भावना से बड़ा नही है।अगर इसकी सीमा रेखा टूटती है तो नुकसान सभी का होता है।
बीसीसीआई ने दो खिलाड़ियों औऱ एक मेंटर पर जुर्माना ठोक कर बाकी लोगो को चेतावनी दी है पर प्रश्न ये भी है क्या क्रिकेट की अधिकता के चलते अब वो सब बातें क्रिकेट में घुस रही है जिससे गेम ऑफ जेंटलमैन अपना मूल स्वभाव खो रहा है।10 टीम एक एक बार खेले समझ मे आता है लेकिन दो दो बार खेलना उत्कट है। उकता गए है लोग इतनी अधिक क्रिकेट देखकर।ऊपर से अब लड़ाई झगड़ा? अब ड्रीम टीम बनाने वालों को अपने एप्लिकेशन में ऐसे खिलाड़ी भी डालने होंगे
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