राजनीति के शरद औऱ उनका पावर बनाम शरद पवार

लेखक- संजय दुबे

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राजनीति के क्षेत्र में एक शब्द प्रचलन में है- क्षत्रप। ये शब्द विशेष राजनीतिज्ञों के लिए प्रयोग किया जाता है। ऐसे लोग भले ही संख्या या संख्या बल में कम होते है लेकिन वजूद ऐसा होता है कि जब राजनीति विषय होती है तो ये लोग चर्चा में होते है।

 भारत सहित महराष्ट्र की राजनीति में एक व्यक्ति की बात पिछले 3-4 दिन से हो रही है। ये व्यक्ति है राजनीति के शरद। जिस प्रकार मुख्य मौसमो में शरद ऋतु का अपना महत्व होता है वैसे ही राजनीति में शरद पवार का महत्व है। जो व्यक्ति महज 27 साल में विधायक और 38 साल में सांसद बन जाये वह भी सत्तर के दशक में तो कोई न कोई विशेष गुण वाला व्यक्ति ही माना जा सकता है।

 आज़ादी के बाद कौन कैसे राजनीति में आएंगे इसके लिए सहकारिता का क्षेत्र महत्वपूर्ण था। ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के विकास के लिए सहभागिता अनिवार्य तत्व था। संयोग ये भी था कि शरद पवार के पिता भी सहकारिता से जुड़े हुए थे। शरद पवार ने ये घुट्टी अपने शैशव काल मे ही पढ़ लिया था जिसका उपयोग वे राजनीति में करते रहे।

  राजनीति में "ट्रबल शूटर" लोगो का बड़ा महत्व होता है। शरद पवार भी ऐसे ही व्यक्ति है। कांग्रेस में रहते रहते शरद पवार ने सत्ता में बने रहने का गुण सीखा। चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। सत्ता में बने रहने के लिए शरद पवार कभी भी परहेजी नही रहे। इसी कारण वे महराष्ट्र में चाणक्य का भी दर्जा पाए। जिस रफ्तार से राजनीति में शरद पवार की गाड़ी टॉप गेयर में दौड़ रही थी ऐसे में प्रधानमंत्री का पद भी उनकी औऱ खिसकते दिख रही थी। संभवतः वे मनमोहन सिंह के स्थान पर उपयुक्त थे भी लेकिन यस मेन नही थे। कॉंग्रेस के अध्यक्ष के देशी होने के मामले में शरद ने पार्टी छोड़ी औऱ एनसीपी पार्टी बना कर महाराष्ट्र की राजनीति में पैठ बनाई रखी।

 जिस शिव सेना के प्रभुत्व को कमजोर करने के लिए शरद पवार केंद्र की सत्ता से राज्य की सत्ता में लौटे उसी शिवसेना के साथ गठबंधन कर उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाना राजनेतिक चातुर्य ही था। इस चाल को कोई समझे तो ये तय माना जा सकता है कि सालो पहले के प्रण को शरद पवार ने निभा दिया ।आज शिवसेना, दो फाड़ हो चुकी है साथ ही ठाकरे परिवार विशुद्ध हिंदुत्व के मुद्दे से भटक गया है। 

 शरद पवार को राजनीति का खेल जितना भाया उतना ही खेल में राजनीति को उपयोग कटना भाया। वे बीसीसीआई सहित आईसीसी के भी अध्यक्ष रहे। 

 अब वे भीष्म की भूमिका में आने के लिए तत्पर है। सक्रिय राजनीति से संन्यास के पीछे पार्टी में कुछ लोगो की बढ़ती महत्वाकांक्षा है। अजित पवार पहले भी फिसल चुके है। सुप्रिया सुले के लिए कई बार भाजपा ने कैबिनेट का दांव लगा चुके है। महाराष्ट्र और केंद्र के बीच सामंजस्य का कौन सा दांव शरद पवार चलेंगे ये प्रश्न अपने उत्तर के लिए भावी एनसीपी के अध्यक्ष के नाम तक तो रुका ही है।


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