एक पाकिस्तान औऱ तीस प्रधानमंत्री

लेखक - संजय दुबे

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एक राष्ट्र के दो टुकड़े हुए, दो देश बने । विभाजन का आधार सम्प्रदाय था एक हिंदुओ का हिंदुस्तान औऱ दूसरा मुश्लिमो का पाकिस्तान। हिन्दू औऱ मुश्लिम विभाजन पूर्व साथ साथ रहते आये थे इस कारण ये भी व्यवस्था रखी गयी कि दोनों सम्प्रदाय के लोग पर राष्ट्र में रह सकते है।

 हिंदुस्तान ने तो दिल बड़ा कर लिया लेकिन पाकिस्तान दिल का छोटा निकला।अपनी आजादी के बाद पाकिस्तान ने मानव अधिकारों का खुले आम उल्लंघन किया। इसका सारा जिम्मा पाकिस्तान की व्यवस्थापिका का था जो पूर्णतः असफल रही। जिस व्यवस्थापिका का सर्वोच्च पद ही अस्थिर हो वह देश की व्यवस्था कैसे स्थिर हो सकती है।

 पाकिस्तान बनने के महज 10 साल बाद ही पता चल गया था कि पाकिस्तान नादानी में बना देश है और कालांतर में ये बात प्रमाणित होते रही।

इस देश मे राष्ट्रपति और सेना का व्यवस्थापिका में इतना अधिक अतिक्रमण है कि वे कभी भी निर्वाचित सरकार को चलने ही नही देते। दोनो संस्थाओं का पहला एजेंडा है कि हिंदुस्तान की आलोचना परम् धरम होगा। दूसरा हिंदुस्तान को अस्थिर करने के लिए आतंकवादी संस्थाओं को सेना सहित दीगर मदद अनिवार्य होगी। इसके अलावा अपना अस्तित्व नही रखा जाएगा। यही वजह है कि 77 साल में देश 25 साल(1958 से लेकर 1973 औऱ 1977 से 85 औऱ 1999 से 2002) तक प्रधानमंत्री पद रिक्त रहा। 6साल (1990 से 1996 ) तक केयर टेकर प्रधानमंत्री रहा। 

 77 साल में 31 साल घटाने के बाद बचे 46 साल में 30 प्रधान मंत्रियों ने देश सम्हालने की कोशिश की। न्यूनतम एक माह से अधिकतम 4 साल 1माह तक प्रधानमंत्री रहे। इतने सालों में कोई भी प्रधानमंत्री 5 साल की कार्य अवधि पूरा नही कर पाया तो इसे नादानी में बना राष्ट्र नही कहेंगे तो क्या कहेंगे?

  पहले तो ये बात थी कि स्वयं जिन्ना अविभाजित हिंदुस्तान के पहले प्रधानमंत्री बनना चाहते थे।उनकी बात अनसुनी की गई तो वे दो राष्ट्र विभाजन पर गए। बौद्धिक शिक्षा के स्थान पर धार्मिक शिक्षा ने पाकिस्तान का बेड़ा गर्क कर दिया।

सिंगल एजेंडा पर पाकिस्तान लड़खड़ाते रहा और परिणाम राजनैतिक अस्थिरता गुण बन गया है।

 30 में से केवल 4 प्रधानमंत्री लियाकत अली( 4 साल 1 माह) भुट्टो (3 साल 4 माह) बेनजीर भुट्टो(3 साल 1 माह) औऱ इमरान खान(3 साल 8 माह) अधिक समय तक प्रधानमंत्री रह पाए। दो प्रधानमंत्री बलम शेख मंजारी औऱ चौधरी शुजाहत हुसैन तो एक - एक माह के प्रधानमंत्री रहे है। इसे बद से बदतर स्थिति न कहेंगे तो क्या कहेंगे।

 इसके पलट हिंदुस्तान को देखे तो पं जवाहरलाल नेहरू 1947 से 1962 तक (15 साल ) मनमोहन सिंह(10 साल) लगातार प्रधानमंत्री रहे। नरेंद्र मोदी 10 वे साल की तरफ बढ़ रहे है।

 पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ़ 3 बार प्रधानमंत्री बने 2 साल 5 माह, 1 साल 7 माह, औऱ 2 माह कुल जमा भी 4 साल 4 माह ही हो पाया। इंदिरा गांधी ने 3 बार प्रधानमंत्री बनी और13 साल प्रधानमंत्री रही। राजीव गांधी और नरसिम्हा राव 5-5 साल के संवैधानिक कार्यकाल पूरा किये। अटलबिहारी वाजपेयी 3 बार प्रधानमंत्री रहे और उनका कार्यकाल भी 5 साल 2 माह रहा। 

 हिंदुस्तान की व्यवस्थापिका में स्थायित्व का गुण रहा वही पाकिस्तान में अस्थायित्व निरंतरता में है। एक प्रधानमंत्री भुट्टो राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते फांसी चढ़ा दिया गया। खो खेलना तो पाकिस्तान के राजीनीति का चरित्र बन गया है। एक दूसरे को निपटाने के लिए सेना की मदद मिलती है। सेना के अध्यक्ष खुद ही राष्ट्रपति बन जाते है और देश, भाड़ में जा रहा है। नागरिकों को केवल सब्जबाग दिखा दिखा कर भारत - पाकिस्तान का खेल खिला रहे है।ऐसा देश नादानी में नही बना तो कैसा बना कह सकते है।


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