क्या डी . शिवकुमार कर्नाटक सम्हालेंगे!
लेखक - संजय दुबे
आमतौर पर किसी मतदाता को किसी राजनैतिक दल के अंदरूनी मामले में दखल देने की जरूरत नही होनी चाहिए लेकिन मत से ही जनमत बनता है तो विचार की अभिव्यक्ति स्वीकार होना चाहिए।
कांग्रेस ने कर्नाटक में अपने करकमलों से अपने पक्ष में अच्छा जनादेश पाया है। स्पष्ट बहुमत दस साल बाद कर्नाटक में आना स्थायित्व औऱ हॉर्स ट्रेडिंग के गोरख धंधे की समाप्ति की दृष्टि से सुखद जनादेश है।
आज संभवतः कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी के लिए नाम की संभावना लगभग तय है। कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों में विपक्ष में रहते वक़्त जो व्यक्ति प्रदेशाध्यक्ष रहता है लगभग ! उसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाये जाने की परम्परा है। कांग्रेस ने अपवादस्वरूप मध्यप्रदेश और राजस्थान सहित हिमांचल प्रदेश में इस परंपरा का निर्वाह नही किया है । भाजपा ने भी उत्तर प्रदेश सहित गुजरात मे इस परंपरा को नही निभाया है अतः ये अनिवार्य मापदंड भी नही है। आज कर्नाटक में विधायक दल की बैठक है। मुख्यमंत्री पद के लिए दो ही व्यक्ति है पहले पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया औऱ दूसरे डी शिवकुमार।
अनुभव के मामले में सिद्धारमैया के पास पुराना अनुभव है और तब के समय मे उन पर तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी का वह्र्दस्त भी रहा है। उनके बराबरी या कहे थोड़ा ज्यादा आगे डी शिवकुमार इसलिए चल रहे है कि विपक्ष के पांच सालों में उन्होंने कांग्रेस को न केवल मजबूत किया बल्कि सशक्त रूप से प्रताड़ित होने के बावजूद भी कर्नाटक भर में भाजपा को 40 परसेंट की सरकार के रूप में प्रमाणित भी करने में सफलता पाई। कर्नाटक में संस्कृति के साथ साथ जातिवादी समीकरण में भी शिवकुमार का संतुलन सधा हुआ था।
केवल राज्य ही नही बल्कि दीगर राज्यो में भी शिवकुमार कांग्रेस के बड़े चेहरे के साथ स्टार भी रहे । मुश्किल वक़्त में दूसरे राज्यों के कठनाई में वे कुशल प्रबंधक भी रहे। इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा और ईडी के जद में आकर तिहाड़ में समय भी काटना पड़ा। इतने कठिनाई के बाद भी शिवकुमार पार्टी के शिव बन संकटमोचन बने।
अब आगे क्या होगा ये अंग्रेजी के इफ बट के बीच है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन इसी राज्य से आते है। राहुल गांधी , मोहब्बत की दुकान खोलने वाले रहे है। सोनिया गांधी वीटो की स्थिति में अब भी है। प्रियंका गांधी कम से कम कर्नाटक में भाई के साथ ही खड़े दिखेंगी। ऐसी स्थिति में पहली बार ऐसा लग रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा के सर्वेसर्वा राहुल गांधी की ही पसंद को वेटेज मिलेगा।
चूंकि अगले छह महीने में 3 राज्यो राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधान सभा चुनाव सहित ठीक एक साल बाद लोकसभा चुनाव आसन्न है तो कर्नाटक के बहाने सही कांग्रेस स्वस्थ परम्परा के निर्वाह की शुरुआत कर सकती है। राजस्थान सिरदर्द बना ही हुआ है। गहलोत औऱ पायलट को कैसे साधा जाये। मध्यप्रदेश में सिंधिया औऱ दिग्विजयसिंह की जोड़ी किस तरह रणनीति के तहत आगे बढ़ाया जाए औऱ छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के स्थानीयकरण के सिद्धांत की सफलता को कैसे आगे बढ़ाया जाए इनका भी मंथन कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद के लिए चुने जाने व्यक्ति के पीछे की रणनीति होगी
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