उप" कृते" मुख्यमंत्री
लेखक - संजय दुबे
राजनीति में संवैधानिक व्यवस्था से परे भी अपनी अलग व्यवस्था बनाने का शगल है। इसे संतुलन का सिद्धांत कहा जाता है। दल के भीतर चाहे जातीय संतुलन हो या बाहुबल का संतुलन हो या फिर व्यक्तित्व का संतुलन हो, बराबर करना पड़ता है। इसे भीतर ही भीतर पनप सकने वाले असंतोष को ढाँकने की सफल कोशिश भी कहा जा सकता है। कर्नाटक अभी सुर्खियों का राज्य है कारण भी है । कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए भाजपा को चारों खाने चित्त की है। अप्रत्यक्ष रूप से बजरंग बली भी भाजपा के लिए सहयोगी न हो पाए। वैसे भी दक्षिण के राज्यो में उनके अपने इष्ट है जो हिंदी भाषी राज्यो से अलग है। कर्नाटक इसलिये भी चर्चित है कि पहली बार बंद कमरे के भीतर के समझौते के रूप में ढाई ढाई साल का फार्मूला सार्वजनिक हुआ है। काश ये साहस साढ़े चार साल पहले दिखा होता तो मध्यप्रदेश में अभी सिंधिया, राजस्थान में सचिन पायलट औऱ छत्तीसगढ़ में टी एस सिंहदेव के नाम के सामने मुख्यमंत्री लिखा होता। खैर, यदि ये सब होता तो काहे ज्योतिरादित्य सिंधिया पलायन करते, सचिन पायलट रैली निकालते औऱ टी एस सिंहदेव आलाकमान के भरोसे रहते।
सत्ता में न आने पर विपक्ष को तो जनमत के जनादेश को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है लेकिन सत्ता में आने के बाद इसे साधने की कोशिश बड़ी दुरूह होती है। मुख्यमंत्री बनने के लिए आजकल निर्विवाद रूप से चेहरा कम होता है। दावेदार दो या दो से अधिक हो ही जाते है। कर्नाटक में भी दो दमदार दावेदार राजस्थान,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के समान ही मिले। पहले भुतुपूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया औऱ दूसरे डी. शिवकुमार। दोनो ही बराबरी के हकदार औऱ दावेदार थे। एक को भी अनदेखा करना महाराष्ट्र का रिप्ले होना संभावित था। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जानते थे कि उनके गृह राज्य में वे निर्णय नहीं कर सकते है इसलिए बेहतर परम्परावादी निर्णय के लिए आलाकमान के भरोसे हो गए। कांग्रेस में इतना अनुशासन तो है कि आलाकमान के आदेश शिरोधार्य होते है।फैसला हो गया। डी.शिवकुमार अगले ढाई साल के लिए अधिकृत "उपमुख्यमंत्री" औऱ बाद के ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री घोषित हो गए।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि संतुलन साधने के लिए कर्नाटक में उपमुख्यमंत्री पद सृजित हुआ है। देश के10 राज्यो में उप मुख्यमंत्री कार्यरत है ही। कर्णाटक 11वां राज्य है। आंध्र प्रदेश में तो उपमुख्यमंत्री पद रेवड़ी के समान 5 लोगो को बांटी गई है। नागालैंड औऱ मेघालय जैसे अति छोटे राज्यो में 2- 2 उपमुख्यमंत्री है। उत्तर प्रदेश के विधानसभा सदस्य संख्या की तुलना में 2 उपमुख्यमंत्री होना समझ मे भी आता है लेकिन नागालैंड औऱ मेघालय? समझ सकते है कि बहुदलीय समझौते का क्या फर्क पड़ता है।
उपमुख्यमंत्री पद कोई संवैधानिक पद नहीं है। भारत के संविधान में अनुच्छेद 163, 164 में राज्यो के लिये केवल मुख्यमंत्री पद का उल्लेख है। संविधान के हिसाब से जो पद उल्लिखित नहीं है उसका संवैधानिक मूल्य भी नहीं है। केवल राजनीति का सृजित पद है जो तुष्टिकरण का पर्याय है। देश मे तीन प्रकार के विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र है ।सामान्य, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति। उपमुख्यमंत्री के चयन की सर्वोच्च प्रक्रिया में इसी फार्मूले को स्वीकार किया जाता है। इसके बाद क्षेत्रीय मुद्दा दम भरता है। दो या तीन दल मिलकर सरकार बनाये तो भी उपमुख्यमंत्री जरूरी ही हो जाते है। महाराष्ट्र उदाहरण है। केवल बाहर से मदद करने का सार्वजनिक उद्घोषणा करने वाले देवेंद्र फडणवीस एक फ़ोन पर वैसे ही उपमुख्यमंत्री बन गए जैसे डी. शिवकुमार।
उपमुख्यमंत्री पद सत्ता में संतुलन का सफल आजमाया तरीका है। उपमुख्यमंत्री ही नहीं उप प्रधानमंत्री भी ऐसी ही व्यवस्था रही है औऱ 6 महानुभाव इस रेवड़ी का बखूबी सदुपयोग कर चुके है।
देश मे आज़ादी से पहले स ये पद सृजित हो चुका था। बिहार पहला राज्य बना जहां 1939 मे अनुराग नारायण सिन्हा पहले पहल उपमुख्यमंत्री बने। स्वतंत्र भारत मे 1959 में आंध्र प्रदेश पहला राज्य बना और कोंडा वेंकट रंगा रेड्डी पहले व्यक्ति बने जो उपमुख्यमंत्री बने। इसके बाद से उपमुख्यमंत्री पद पॉलिटिकल इंजीनियरिंग का समीकरण बन गया। एक दलीय व्यवस्था जिस जिस राज्य चरमराई वहां उप मुख्यमंत्री बने। इसके बाद जाति और शक्ति संतुलन के लिए उप मुख्यमंत्री बने। कर्नाटक शक्ति संतुलन का उदाहरण है। कर्नाटक में एस एम कृष्णा पहले उपमुख्यमंत्री 1989 में बने। कर्नाटक में अब तक 10 उपमुख्यमंत्री बन चुके है। वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया दो बार उपमुख्यमंत्री रहे है। पर दल जनता दल था। यदुररप्पा भी कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री रह चुके है। भाजपा से 5, कांग्रेस और जनता दल से 2-2 औऱ जनता दल सेकुलर से एक उपमुख्यमंत्री कर्नाटक को मिले है।
एस एम कृष्णा, सिद्धारमैया औऱ यदुररप्पा कालांतर में मुख्यमंत्री भी बने। माना जा सकता है कि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो डी शिवकुमार भी इस पद पर आसीन होंगे।।
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