राष्ट्रीय रामायण महोत्सव

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रामायण ऐसा महाकाव्य है जिसने सांस्कृतिक रूप से गहरा प्रभाव दक्षिण पूर्वी एशियाई द्वीपों में छोड़ा है। 

 

भारत का गहरा संबंध इन द्वीपों से रहा है और यह संबंध सांस्कृतिक, व्यापारिक रहा।

 

सैकड़ों बरसों बाद भी आज भी यह सांस्कृतिक संबंध कायम हैं, खूबसूरत बात यह है कि इसकी प्रस्तुति इन देशों की अपनी है।

माधव कंदली असमिया रामायण के लेखक हैं, जिस तरह कृतिवास ने बंगला में अद्भुत रामायण रचा, उसी तरह असमिया रामायण भी असम में लोक परंपरा में गहराई से बसा है। 21 सदस्यीय दल असम से आया है।

 

रामनामी समुदाय का मुख्य मंच के सामने पारंपरिक वेशभूषा में मार्च पास्ट।

 

गोआ से छत्तीसगढ़ आए कलाकार दल ने भी मार्च पास्ट में लिया हिस्सा।

 

झारखंड से आए 25 सदस्यीय दल ने अपने पारंपरिक वाद्ययंत्र और वेशभूषा में मार्च पास्ट किया। उन्होंने विशेष तरह के मुखौटे भी पहने हैं।

केरल से कलाकारों का 12 सदस्यीय दल आया है। 

 

पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश का दल भी मार्च पास्ट में शामिल हुआ। इस दल में 25 सदस्य हैं।

 

कर्नाटक से आए दल एवं महाराष्ट्र से आए 18 सदस्यीय कलाकार दल ने मार्च पास्ट में अद्भुत प्रस्तुति दी है। इनके आगे आगे बजरंगबली चल रहे हैं।

 

उत्तराखंड के दल की अगुवाई रावण करते दिख रहे हैं। यह अद्भुत परंपरा जहां राम भी लक्ष्मण जी को अंतिम समय में रावण से ज्ञान प्राप्त करने भेजते हैं ताकि रावण मृत्यु के वक़्त अपना ज्ञान लक्ष्मण को दे सके। 

 

छत्तीसगढ़ के दलों की भी सुंदर प्रस्तुति हुई। 

 

इस अवसर पर 12 राज्यों के 270 प्रतिभागी ले रहे हिस्सा। प्रदेश के 70 कलाकार और

विदेशों से आए 27 कलाकार शामिल।

 


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