3 साल से एक ही जिले में कार्यरत अधिकारी "नहीं" हटाये जाएंगे!
लेखक - संजय दुबे
चुनाव आयोग का फरमान आया है कि आगामी विधानसभा चुनाव को आसन्न देखते हुए एक ही जिले में 3 साल से अधिक साल तक कार्यरत अधिकारियोंको हटाया जाए। ये फरमान किन अधिकारियो पर लागू होता है ये जानने का विषय है। किन्हें चुनाव आयोग ने हटाने के लिए लिखा है और शासन में रह रहे माहिर अधिकारी इस फरमान का कैसा उपयोग या दुरुपयोग करेंगे ये भी समझने का विषय है।
शासन में चार श्रेणी के कर्मचारी हुए करते है।जिनमे चतुर्थ श्रेणी औऱ तृतीय श्रेणी के लिपिकीय कर्मचारी चुनाव आयोग के फरमान में "नहीं" आते है।अतः ये कितने साल से एक ही जिले में कार्य कर रहे हो फर्क "नहीं" पड़ता है।
मंत्रालय औऱ संचालनालय स्तर के किसी भी श्रेणी के साथ साथ अर्ध शासकीय निगम, मंडल या निकाय क तृतीय वर्ग के कर्मचारी
चुनाव आयोग के फरमान के दायरे में "नही" आते है। इनके अलावा ऐसे विभाग जिनके कार्य का प्रत्यक्ष प्रभाव आम जनमत पर नहीं पड़ता । शिक्षा,वन,कृषि जैसे अनेक विभाग है जिनका आम व्यक्ति से पाला ही नहीं पड़ता है। राजस्व, पुलिस, आबकारी विभाग मुख्यतः ऐसे विभाग है जिनका सरोकार सीधे सीधे व्यक्ति से होता है। अतः बाकी विभाग के अधिकारी प्रभावित "नहीं" होते है। जिले के कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक सहित एक ही स्थान पर कार्य कर रहे अनुविभागीय अधिकारी राजस्व, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, थाना प्रभारी ही चुनाव आयोग के फरमान से प्रभावित होते है।
व्यवस्थापिका के कुछ आकाओं को खुश करने वाले कुछ प्रशासकीय कर्मचारी अवसरवादी होते है। इनको चुनाव में अवसर मिलता है स्वामिभक्ति के चर्मोत्कर्ष को दिखाने का। ये लोग चुनाव आयोग के फरमान का आड़ लेकर स्वार्थसिद्धि का मजा लेते है। प्रकार का जुगाड़ रखते है।
तृतीय एवम चतुर्थ वर्ग के शासकीय कर्मचारी चुनाव आयोग के" एक ही स्थान में 3 साल से कार्यरत होने के नियम से परे है, ये नियम उन पर लागू नही होता है।
सामान्य प्रशासन विभाग ने तृतीय वर्ग के कर्मचारियों के लिए भले ही 3 साल का नियम रखा है लेकिन उठाकर रिकार्ड देखेंगे तो पाएंगे कि 3 साल से दुगुना , तिगुना औऱ चौगुना अवधि तक तृतीय वर्ग के शासकीय कर्मचारी एक ही जिले में कार्य करते है। कैसे करते है? मेरे एक मित्र है बिलासपुर मे है। 22 साल से है राज्य बनने के बाद से लेकर आजतक। कैसे ? ऐसे विभाग में है जो आम व्यक्ति को सीधे प्रभावित करता है। पहले तीन साल में वे चुनाव आयोग के दायरे में नहीं थे। चुनाव के बाद 5 साल उन्हें उनके "हुनर" ने रोक लिया। चुनाव के पहले पदोन्नति मिल गयी फिर 5 साल टिक लिए। 13 साल रह लिए। 13 साल ट्रांसफर लिस्ट में नाम जुड़वा लिए।गए नहीं "हुनर'। चुनाव के बाद ट्रांसफर रद्द। फिर 4 साल रह गए। फिर पदोन्नति पा गए। एक ही विभाग में एक ही जिले में तीन पदोन्नति औऱ 22 साल। चुनाव आयोग के फरमान का शानदार बचाव। ऐसे लोग प्रेरणा होते है जिनसे सभी को सीखना चाहिए।
चुनाव आयोग फरमान जारी करता है, पालन हुआ या नहीं, इससे कोई सरोकार नहीं है।ये जरूर है कि आयोग के पास एक ही जिले में 3 साल से अधिक कार्य कर रहे कार्यपालिक अधिकारियों की शिकायतें पहुँचती है तो कार्यवाही जरूर होती है।
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