लाजवाब कपिलदेव

लेखक - संजय दुबे

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आज से चालीस साल पहले 1983 के विश्व कप क्रिकेट के फाइनल से पहले भी एक फाइनल मैच हुआ था। ये मैच वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड पाकिस्तान या न्यूज़ीलैंड के खिलाफ नहीं हुआ था बल्कि ज़िम्बाब्वे टीम के खिलाफ हुआ था। ज़िम्बाब्वे, ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज को हरा चुकी थी और यही मैच था जो भारत को आगे या पीछे कर सकता था। सीधा प्रसारण करने वालो के हड़ताल के चलते ये मैच टेलीविजन में नहीं देखा जा सकता था हॉ रेडियो पर सुना जरूर गया।

इस मैच को जो देख सके वे ही इस मैच के रोमांच के चश्मदीद गवाह बन पाए। भारतीय टीम के कप्तान कपिलदेव ने इस मैच में बताया था कि कोशिश करने वालो की कैसी हार नहीं होती है। यही वह मैच था जहां से भारतीय क्रिकेट ने परिवर्तन का करवट लिया था।

17रन पर 5 विकेट गिर चुके थे। 62 बॉल खेलकर भारत की आधी टीम पैवेलियन वापस पहुँच गयी थी। 49 ओवर 4 बॉल फेका जाना शेष था।296 बॉल शेष थे औऱ भारत के पास कपिलदेव के अलावा , रोजर बिन्नी,रवि शास्त्री मदनलाल,किरमानी औऱ बलविंदर सिंह शेष थे। याने कुल मिलाकर बॉलर्स औऱ विकेटकीपर।

 कपिलदेव ने एक तरफ से आक्रमण शुरू किया और बिन्नी(22) औऱ किरमानी(24*) की मदद से 249 रन जोड़े।कपिलदेव ने 138 बॉल(23 ओवर) में 175 रन की नाबाद पारी खेली। उस जमाने मे एक दो छक्के लग जाना बड़ी बात होती थी तब 6 छक्के कपिलदेव ने उड़ाये थे जिसमें से एक पैवेलियन का कांच तोड़ने वाला भी था। 16 चौके भी ताबड़तोड़ थे। 175 रन में 110 रन 4,औऱ 6 की मदद से बने थे। 128 रन का स्ट्राइक रेट तब के जमाने मे! सही मायने में उस दिन कपिलदेव ने 20-20 मैच की ही पारी खेली थी।

 जिम्बाव्वे, कपिलदेव की पारी को पार नहीं पा सका। इसी जीत ने भरोसे को स्थापित किया जिसके चलते भारत आगे जा कर सेमीफाइनल में इंग्लैंड और फाइनल में दो बार के विजेता वेस्टइंडीज को हरा कर नया विजेता बना।कपिलदेव, भारत की क्रिकेट टीम को नया स्वरूप देने वाले खिलाड़ी के रूप में आज भी सामयिक है।


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