25 जून:क्रिकेट का एक दिन:एक मैदान औऱ दो युग

लेखक - संजय दुबे

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25 जून 1932 को भारत टेस्ट क्रिकेट की दुनियां में पहला कदम रखा था।25 जून 1983 को जब एकदिवसीय क्रिकेट के फाइनल में पहुँचा था तब भी एकदिवसीय क्रिकेट में महत्वपूर्ण जीत के द्वार पर पहला कदम रखा था। ये संयोग रहा कि 25 जून का ही दिन देश के टेस्ट और एकदिवसीय मैच के सफलता के शुरुआत का गवाह बना। ये भी एक संयोग रहा कि टेस्ट और एकदिवसीय मैच में भारत ने लॉर्ड्स के मैदान जिसे क्रिकेट का "काशी" कहा जाता है, वही से अपने दो युग की आधारशिला रखी। पहला युग टेस्ट का था जिसमें कप्तान सी.के.नायडू औऱ एकदिवसीय मैच के कर्णधार कप्तान कपिलदेव रहे।

      भारत से पहले 5 देश ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, द. अफ्रीका,वेस्टइंडीज औऱ न्यूज़ीलैंड टेस्ट क्रिकेट खेला करते थे।अंग्रेजो के शौक को भारतीय रियासत के राजाओं ने पाला पौसा। जो लोग इंग्लैंड पढ़ने गए उनको क्रिकेट भाया। जिसके चलते क्रिकेट भारत आ गया 1848 में मुंबई में पहला अधिकृत पारसी क्रिकेट क्लब बना । इसके बाद शनै शनै क्रिकेट का खेल पनपते गया। रणजीत सिंह इंग्लैंड की तरफ से 1892 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट खेलने की शुरुआत कर चुके थे लेकिन ये व्यक्तिगत उपलब्धि थी।

 टीम के रूप में भारत को 1932 में इंग्लैंड जाकर 25 जून को पहला टेस्ट खेलने का मौका मिला। सी. के. नायडू पहले कप्तान बने।डगलस जोर्डिन इंग्लैंड के कप्तान थे। इंग्लैंड पहले बल्लेबाजी के लिए उतरा। 19 रन पर 3 विकेट गिरने के बाद डगलस जोर्डिन(79) औऱ एम्स (65) रन के बदौलत इंग्लैंड 259 रन पर सिमट गई। निसार ने 93 रन देकर 5 विकेट चटकाए।

 भारत अपनी पहली पारी सी के नायडू(40) की मदद से 189 रन ही बना सका। इंग्लैंड की दूसरी पारी में भी डगलस जोर्डिन(89) का बल्ला चला । पेंटर ने भी 54 रन बनाए। इंग्लैंड 275 / 8 पर पारी घोषित कर दिया। अनुभवहीन भारत के खिलाड़ियों में अमरसिंह 51 रन की पारी खेले लेकिन सामने से विकेट गिरते गए और 187 रन पर पारी सिमट गई। पहली हार 158 रन की रही। भारत टेस्ट खेलते रहा लेकिन पहली जीत के लिए 20 साल इंतज़ार करना पड़ गया। ओलंपिक में हॉकी की उपलब्धि के चलते क्रिकेट आम लोगो की पसंद नहीं थी

 25 जून 1983 को एक बार फिर लॉर्ड्स का मैदान बदले परिवेश में था। इस बार टेस्ट का इम्तिहान नही था बल्कि 60-60 ओवर्स के एकदिवसीय मैच का एसिड टेस्ट था।पहले खेले गए दो विश्व कप प्रतिस्पर्धा में फिसड्डी रहने के बाद तीसरे विश्वकप में भारत फाइनल में पूर्व के दो आयोजनों का विश्व विजेता वेस्टइंडीज सामने था। वेस्टइंडीज के बॉलर्स ने भारत को 183 रन पर समेट दिया तो लगा कि चलो फाइनल हारेंगे लेकिन कपिलदेव की टीम ने ऐसा अद्भुद प्रदर्शन किया कि वेस्टइंडीज की टीम ले देकर 140 रन ही बना सकी। मदनलाल औऱ मोहिंदर अमरनाथ ने 3-3 विकेट लेकर भारत को एक ऐसे टीम के रूप में खड़ा कर दिया जिससे देश क्रिकेट मय हो गया। इस मैच में कपिलदेव ने विव रिचर्ड्स का जो कैच पकड़ा था वही जीत की तगड़ी पकड़ बनी। दोनो टीम से श्रीकांत सर्वाधिक 38 रन बनाने वाले बल्लेबाज़ रहे ये भी अनोखापन था।भारत के विश्वविजेता बनते ही क्रिकेट ने राष्ट्रीय खेल हॉकी को पीछे कर अघोषित राष्ट्रीय खेल का दर्जा पा गया।

 25 जून औऱ लॉर्ड्स में खेले गए टेस्ट और एकदिवसीय मैच के खेल ने दो कप्तान के रूप में सी के नायडू औऱ कपिलदेव को हमेशा हमेशा के लिए यादगार बना दिया।


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