कुछ बुद्धजीवी मुगालते में क्यो रहते है!

लेखक - संजय दुबे

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हाल ही "आदिपुरुष" फिल्म के संवाद को लेकर देश भर में भारी बखेड़ा खड़ा हुआ। स्तरहीन संवाद को लेकर मामला अदालत तक पहुँचा। फिल्म में संवाद लिखनेवाले मनोज मुंतशिर शुक्ला की राष्ट्रव्यापी आलोचना हुई। क्षमा याचना सहित सवांद सुधारे गए। सेंसर बोर्ड की भी आलोचना हुई कि आखिर अध्यक्ष सहित अनेक सदस्यो ने क्या देखा - सुना। प्रयागराज हाई कोर्ट ने मनोज मुंतशिर शुक्ला को नोटिस थमा दिया है।

 मनोज मुंतशिर शुक्ला को हिन्दू संस्कृति का पैरवीकार माना जाता है। वे सार्वजनिक मंच में हिन्दू संस्कृति का झंडा उठाये घूमते रहे है।आदिपुरुष फिल्म में रामायण जैसे महाग्रन्थ सहित जनमानस के आराध्य धार्मिक चरित्रों से स्तरहीन संवाद बोलवाये गए तो आलोचना के स्वर उग्र हो गए।

आज का युग "ठेस" लगने का युग है।किसकी भावना कब ठेस लग जाये कह नहीं सकते। सोशल प्लेटफार्म सहित अभिव्यक्ति के हर माध्यम पर सही नज़र कम गलत नज़र ज्यादा लगी है। असहिष्णुता की बयार ऐसे बहती है मानो कोई बवंडर उठ खड़ा होता है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है ये तो आजकल न्यायालय के माध्यम से तय होता है

  फिल्में, आम भारतीयों के लिए शिक्षा का कम मनोरंजन का बड़ा माध्यम है। पिछले एक दशक से माहौल जरूरत से ज्यादा बिगड़ा है।सम्प्रदायवाद के बढ़ते अंतर ने माहौल को विद्रूप बना दिया है। जातीय तौर पर समर्थन विरोध ने लोगो के मनोमस्तिष्क में जहर भर दिया है। इन्सानियत को कोने में रख दिया गया है। आपकी क्षमा याचना बेमोल हो गयी है। शाब्दिक बोल या लेखन में त्रुटि मानवीय आचरण है। क्षणिक आवेश, या आवेग में सार्वजनिक उद्बोधन का अर्थ अनर्थ होना सामान्य बात हो गयी है

अब समय ऐसा आ गया है कि मौन रहना और अभिव्यक्त न होना ही बेहतर हो चला है। जो मुद्दे विवादास्पद है उनमें के या की तरफ से बोलना लिखना कानूनी पचड़े को आमंत्रण देंना हो गया है।

 मनोज मुंतशिर शुक्ला इस कड़ी के नए अध्याय है। देश मे मकबूल फिदा हुसैन ने हिन्दू देवी देवताओं के नग्न चित्र बनाकर निर्वासित हो गए थे लेकिन हर का सामर्थ्य कहां होता है कि वह देश छोड़ दे। यहां के लोग जो देश नही छोड़ सकते उन्हें शब्द बोलने या लिखने में हज़ार बार सोचना चाहिए। मनोज मुंतशिर शुक्ला, विवादित संवाद लिख कर ज्ञात औऱ फर्जी अकॉउंट कर माध्यम से सक्रिय फर्जी लोगो से सभी प्रकार के अश्लील गालियों से वाकिफ हो गए है। ऐसे में आज का दौर ऐसा नही है कि आप अपने मन की बात कह दे लिख दें। ठेस लगाने वाले बैठे है।


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