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पुराना मोहन नया दीपक
मोहन, यूं तो भगवान कृष्ण का एक नाम है जिसका अर्थ मन मोहने वाला होता है। माता पिताअपने बच्चे को कृष्ण स्वरूप मान कर नाम रखते है। यही मोहन जब युद्ध मे खड़ा होता है तो कृष्ण बन गीता का सृजन करता है।
माता पिता अपने पुत्र का नाम दीपक भी रखते है। अंधेरे में उजाला करने वाला दीपक नामकरण के पीछे कुल में रोशनी करने वाला होता है।
छत्तीसगढ़ की राजनीति में कांग्रेस पार्टी 1956 के बाद अविभाजित मध्यप्रदेश में 2000 तक के 44 साल में से 1977 से 1980 का समय हटा दें तो सत्तासीन रही है। छतीसगढ़ निर्माण के बाद स्थिति बदली औऱ 23 साल में साढ़े सात साल ही हिस्से में आया। 15 साल तक लगातार भाजपा सत्ता में रही।
2018 के दौर में भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने। उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया और 15 साल पुरानी डॉ रमन सिंह की सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया।
कांग्रेस में एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत लागू है। भूपेश बघेल , जो अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है,मुख्यमंत्री बने । कांग्रेस ने बस्तर औऱ सरगुजा क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया तो स्वाभाविक था कि प्रदेश अध्यक्ष का पद अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति को मिलता औऱ मिला भी। बस्तर के विधायक मोहन मरकाम प्रदेश अध्यक्ष बन गए।
पार्टी अध्यक्ष का मुख्य काम संगठन को मजबूत करना होता है । पंचायत चुनाव से लेकर सांसद चुनाव में प्रत्याशी चयन में अध्यक्ष की प्रमुख भूमिका होती है। इसके अलावा पोलिंग बूथ से लेकर प्रदेश स्तर तक संघटनात्मक ढांचे को मजबूत बनाने की जिमनेदारी होती है।
बीते साढ़े चार सालों में मोहन मरकाम की सफलता इस बात से पुष्ट मानी जा सकती है कि हर उपचुनाव में उन्होंने पार्टी का ऐसा प्रत्याशी चुना जो हारा नहीं। इसका श्रेय मुख्यमंत्री भी ले सकते है कि उनकी योजनाएं ऐसी रही कि मतदाताओ ने कांग्रेस को चुना।
सत्ता और संगठन यद्यपि किसी सरकार की दो धुरी होनी चाहिए लेकिन ऐसा होता नही है। सत्ता, आकर्षण का केंद्र होता है। पार्टी का अदना से भी कार्यकर्ता ये उम्मीद करता है कि किसी अभिकरण में सदस्य तो बन ही जाए। संगठन का काम कठिन होता है क्योंकि आज का दौर आर्थिक संसाधनों का है। ये न हो तो व्यक्ति जोड़ने में कठनाई होती है।
छतीसगढ़ के बात ले तो विधानसभा चुनाव के लगभग पांच माह पहले प्रदेश में दो फेरबदल हुए। टी एस सिंहदेव उप- मुख्यमंत्री बने और आजकांग्रेस के नए अध्यक्ष के रूप में दीपक बेंज, जो बस्तर से सांसद भी है, की ताजपोशी भी हो गयी। मोहन मरकाम को मुक्त कर दिया गया।
ऐसा क्यो हुआ?
राजनीति का अपना एक सिद्धान्त होता है जिसमे हर बात के धनात्मक औऱ ऋणात्मक चिंतन होता है।
मोहन मरकाम की सत्ता से जुड़े मुख्यमंत्री से टीयूनिंग नहीं जम पा रही थी। दबी जुबान में ये माना जा रहा था कि अमरजीत भगत को कैबिनेट मंत्री बनने का जो मौका मिला उसके हकदार मोहन मरकाम थे। यही से धुआं उठना शुरू हुआ। प्रतिपक्ष ने भी अपने दांव खेले औऱ कोशिश यही होती रही कि मोहन मरकाम, स्वतंत्र निर्णय न ले सके।
राजधानी में अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन में लड़ाई खुले आम हो गयी जब अधिवेशन क्षेत्र में लगे होर्डिंग्स बैनर से प्रदेश अध्यक्ष बाहर कर दिए गए। रायपुर के महापौर एजाज ढेबर का कृत्य अनुशासन हीनता की श्रेणी में माना गया। पार्टी की तरफ से आपत्ति होने पर पैबंद लगा लेकिन सिलाई उधड़ चूकी थी।
उम्मीद की जा रही थी कि अधिवेशन खत्म होते ही मोहन मरकाम निपटा दिए जाएंगे। पुनिया के प्रभारी रहते ये संभव नही हुआ। मरकाम दिल्ली में भूपेश बघेल के विरुद्ध काफी कुछ कह चुके थे।अगले घटनाक्रम में कुछ पदाधिकारियों के मनोनयन ने खाई बड़ी कर दी। प्रदेश प्रभारी शैलजा के बनने के बाद मुख्यमंत्री का आत्मविश्वास और बढ़ गया। इसी बीच नाटकीय घटनाक्रम में टी एस सिंह देव उप मुख्यमंत्री बनाये गए तो पर कतरने की बात हुई लेकिन भीतरी मन से आक्रामक स्वभाव के भूपेश बघेल ने बता दिया कि उनकी दिल्ली दरबार मे तूती बोलती है।
प्रदेश अध्यक्ष के लिए 3 नाम अमरजीत भगत, कवासी लखमा औऱ दीपक बेंज का नाम था । साफा बेंज के सिर बंधा है यानी सब कुछ भूपेश बघेल के मन अनुरूप।
अगले चुनाव में 25 विधायकों के टिकट कटने से लेकर नए प्रत्याशी चयन में भूपेश- दीपक की जोड़ी के लिए खुला मैदान है।दिल तो उनका टूट गया होगा जो मरकाम के भरोसे टिकट पाने की उम्मीद लगाए थे l
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