बंडू की प्रेम कहानी
लेखक - संजय दुबे
मोहननगर में हम किराये के मकान में रहने पहुँचे तो मकान मालिक ही हमारे पड़ोसी निकले। छोटा सा परिवार था उनका। एक बेटा था - बंडू। साँवला रंग, स्थूल शरीर, इकलौता होने के कारण ज्यादा ही ख्याल रख लिया गया था। बंडू बारहवी की परीक्षा देकर बेफिक्र था लेकिन मां बाप तनाव में थे क्योकि उनके परिवार में कोई बारहवीं से आगे नही पढ़ा था याने कालेज का मुंह कोई नही देखा था। अंततः परिणाम निकला और बंडू न्यूनतम अंक के साथ बारहवी पास हो गया।
जिस कालेज में मैं एम .ए फाइनल का स्टूडेंट था।बंडू बी. ए फर्स्ट ईयर का स्टूडेंट बन गया।
पांच महीने गुजर चुके थे। शाम के वक़्त मै घर के बाहर टहल रहा था।
बंडू मेरे पास आकर कहा- "भैया, आपसे एक जरुरी बात करना था थोड़ी दूर तक घूम कर आते है।"
मैं साथ हो लिया।घर से थोड़ी दूर जाने के बाद बंडू ने कहा-" आप भगवान की कसम खाइए औऱ जो मैं बता रहा हूं वह किसी से नहीं बताइएगा।"
"मैं भगवान की कसम खाये बगैर तुम्हारी कही बात किसी को नहीं बताऊंगा, क्या बात है।"
दरसअल मुझे कालेज की एक लड़की से प्रेम हो गया है और मैं एक प्रेम पत्र लिखकर रखा हूँ।"
"तुम्हारे क्लास की लड़की है तो दे दो क्या दिक्कत है।"
भैया मेरे क्लास की लड़की नहीं है"
"दूसरे क्लास की है तो जब कही अकेली मिले तब दे दो"
"अरे भैया वो आपके क्लास की है इसीलिए तो आपको बोल रहा हूं।"
"बंडू फिर तो उम्र में तुमसे बड़ी है।"
भैया, प्रेम रंग रूप, जाति उम्र कुछ नही देखता।आखिर मैं ही अपने से बड़ी लड़की से प्रेम कर रहा हूँ कि नहीं। भैया मैंने एक पत्र लिखा है, आपको केवल देना है, बाकी फिर माने या न माने उसकी मर्जी।"
" बंडू, मेरे क्लास में 11 लड़कियां है क्या नाम है बता दो"
" वर्षा"
मुझे हंसी आ गयी।वर्षा, कालेज की शायद सबसे सुंदर लड़की थी।इसके अलावा सभ्रांत भी थी।उसकी अपनी पढ़ाई की दुनियां थी जिसमे वह डूबी रहती। मेरी अच्छी सखी थी।
" बंडू,क्या वर्षा भी तुमसे ?"
यही भर पता लगाने के लिये पत्र लिखा हूँ। ये रहा बंद लिफाफे में मेरा पत्र, अब आपकी जिम्मेदारी। देखिए, ये बात किसी को पता न लगे। मैं सोमवार को सुबह उनके जवाब का इंतज़ार करूंगा"
"क्या वर्षा, तुम्हारे पत्र का जवाब लिख कर देगी?"
वो वर्षा औऱ मेरे बीच का मामला है, आप मेरा काम भर कर दीजिये।"
मैंने भगवान की कसम नहीं खाया था सो घर मे बंडू का पत्र खोल लिया।पता नही क्या लिखा होगा करके। एक भी वाक्य पूर्ण नहीं थे।व्याकरण के हाथ पैर टूट हुए थे। कुल मिलाकर सार ये था कि मोहब्बत है तो सोमवार को नीला सूट पहन कर आ जाना।
शनिवार के दिन तीसरे पीरियड में सर नही आये तो वर्षा क्लास में अकेले बैठी थी।
"वर्षा, यार तुमसे एक काम था"
"नोट्स चाहिए?"
नही, तुम्हे नोट्स देना है।एक स्टूडेंट ने तुम्हारे लिए भेजा है"
" अच्छा, जान सकती हूँ ये जनाब है कौन?"
"फर्स्ट ईयर का स्टूडेंट है। खैर ये बताओ सड़क का हाल क्या है?"
कुछ बढ़ गए है, घर से कालेज और कॉलेज से घर तक छोड़ने वाले, रही बात सड़क के दोनो तरफ के दुकानो की तो उनकी कमाई बढ़िया हो रही है। छोड़ो ये नोट्स का क्या चक्कर है?"
मुझे लगता है तुम बहुत दिनों से खिलखिला कर हंसी नहीं हो, आंख में आंसू आते तक। इसलिए ये प्रेम पत्र है तुम्हारे लिए"
"अब क्या पोस्ट मेन बन गए हो, चिट्ठी इधर उधर करने वाले।"
"क्या करे, मकान मालिक के बेटे का फरमान है।"
"तुम्हारे मकान मालिक का वो मोटू बेटा! उसे मोहब्बत ?
"औऱ वो भी तुमसे"
"उसे मुझसे" कहकर वर्षा खिलखिला कर हंस पड़ी। दिखाओ क्या लिखा है"
"देखो यार मैं इस चिट्ठी को पढ़ चुका हूँ क्योकि बंडू अगर कुछ खराब लिखता तो तुम्हे पढ़ने नही देता ।पढ़ लो।"
जैसे जैसे वर्षा पत्र को पढ़ते गयी हंसी के मारे सचमुच आंखों से आंसू निकल गए
"यार ये तो एक वाक्य ठीक से नही लिख पाता फिर को फीर लिखता है मोहब्बत को मोहबत,वर्षा को भी वरसा लिख रहा है । कितने महीनों में लिखा होगा?"
"सोमवार को तुम्हे जवाब देना है वर्षा"
"नीले रंग का सूट पहनकर!" ठहाका लगाकर दोनो हंस पड़े
सोमवार, सुबह बंडू कालेज के गेट पर खड़ा था
वर्षा लाल रंग का सूट पहन कर कालेज में दाखिल हुईं।
बंडू वापस चला गया।
रात के आठ बज चुके थे।बंडू घर नही आया था। उनके पिता सारे दोस्तो के यहां हो आये थे। बंडू का पता न था।
मैं स्वयं सशंकित हो रहा था। कही बंडू..........। उनके पिता मुझसे पूछे" आज बंडू कालेज में दिखा था क्या?"
मैंने हामी भरी।
दस बजे के आसपास बंडू घर आ गया। मैंने चैन की सांस ली। देर रात बंडू मेरे पास आया
"भैया, आपने वर्षा को पत्र दिया था न"
"हॉ क्यो, क्या हुआ।"
"उन्होंने मेरी मोहब्बत को ठुकरा दिया"
"कैसे"
"ये बात अब मेरे औऱ उनके ही बीच रहने दीजिए। पर एक बात बोलूं भैया अब जिंदगी में किसी लड़की से मोहब्बत नहीं करूंगा। भगवान कसम"
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