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आजादी के 75 साल बाद भाजपा को शहीदों की याद आयीः कांग्रेस
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं सांसद दीपक बैज ने कहा कि भाजपा को आजादी के 75 वर्ष बाद शहीदों की सम्मान की याद आयी है असल मायने में भाजपा शहीदों का सम्मान करके अपने पितृ संगठन के स्वतंत्रता आंदोलन विरोधी कृत्यों के महापाप का प्रायश्चित कर रही है। आजादी के लड़ाई के दौरान भाजपा का पितृ संगठन भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ था लोगों को भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने से रोकता था और अंग्रेजी हुकूमत के सिपाही बनने के लिए प्रेरित करता था। आरएसएस का गठन 1925 में हुआ देश आजाद 1947 में हुआ 22 सालों में देश की आजादी में आरएसएस का क्या योगदान था?
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं सांसद दीपक बैज ने कहा कि भाजपा का पितृ संगठन आरएसएस की आजादी की लड़ाई में कोई भूमिका नहीं थी और आजादी मिलने के बाद जिन्होंने अपने नागपुर के मुख्यालय में 52 वर्षों तक तिरंगा नहीं फहराया था, जिसके चलते भाजपा की पूरी देश में छिछि लेदर होती है भाजपा जिसे पूज्यनीय मानती है उस पर भी अंग्रेजो से 22 बार माफी मांगने और अंग्रेजो से मासिक पेंशन लेने का आरोप हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की मुखबिरी करने के आरोप हैं भाजपा के राजनीतिक पूर्वज डॉक्टर हेडगेवार गुरु गोवलकर सहित कई बड़े नेता उस दौरान आजादी की लड़ाई में शामिल नही हुए। दीनदयाल उपाध्याय जिनकी आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं रहा आज देश की जनता भाजपा से सवाल पूछती है? उन सवालों से बचने के लिए भाजपा शहीदों का सम्मान कर अपने पूर्वजों के काले कारनामों का प्रयाश्चित कर रही है भाजपा कुछ भी कर ले अपने इस संगठन को गुलामी के दौर की कायरता से बाहर नहीं निकाल सकते है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं सांसद दीपक बैज ने कहा कि आरएसएस के लोगों ने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आजाद हिंद फौज के खिलाफ अंग्रेजी सेना में भर्ती होने देश के युवाओं से अपील करते रहे। स्थापना से लेकर आज तक आरएसएस नफरती एजेंडे पर ही काम करते रही है। नफ़रत और हिंसा इनके राजनैतिक हथियार हैं। ऐतिहासिक तथ्य है कि आजादी की लड़ाई के दौरान जब पूरा देश गांधी, नेहरू, सरदार पटेल जैसे नेताओं के नेतृत्व में अंग्रेजो के खिलाफ लड़ रहा था, आरएसएस के लोग मुस्लिम लीग के साथ मिलकर अंग्रेजों के सहयोगी की भूमिका में थे। गांधी जी की हत्या के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था। आर एस एस की स्थापना से लेकर आज तक इनका चरित्र और क्रियाकलाप राजनैतिक लाभ के लिए नफरत और उन्माद फैलाने षड्यंत्र का ही रहा है। ना कोई नियम ना संविधान ना पंजीयन ताकि किसी षड़यंत्र के उजागर होने पर किसी भी व्यक्ति को अपने से संबंधित या पृथक बता सके। सांस्कृतिक संगठन होने का दावा इनका राजनीतिक पाखंड है। असलीयत यह है कि पर्दे के पीछे रहकर षडयंत्र रचना और रिमोट कंट्रोल से सत्ता चलाना है।
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