के.डी.जाधव: स्वतंत्र भारत के पहले ओलंपिक पदक विजेता
लेखक- संजय दुबे
14 अगस्त का दिन यूं तो कलेजे के दो टुकड़े होने की त्रासदी के रूप में जाना जाता है लेकिन ये दिन इसलिए भी इतिहास में सुरक्षित है क्योंकि इसी दिन स्वतंत्रत भारत के लिए ओलंपिक खेलों में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले के डी जाधव का जन्म हुआ था।
जाधव से पहले भारत को केवल हॉकी खेल में पदक मिला करता था इस नाते जाधव का पदक मायने रखता है।
जाधव का खेल जीवन ऐसा रहा जिसमे तत्समय की सरकारों को खेल, क्या खेल होता है ये समझ नही हुआ करती थी। जाधव 1948 ओलंपिक खेलों में भाग ले चुके थे।इस ओलंपिक में फ्री स्टाइल कुश्ती में 6वे नंबर पर रहे थे।1952 में हेलेंसकी ओलंपिक में भाग लेने के लिए मुम्बई के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई से आर्थिक मदद मांगने गए तो टका सा जवाब था।खेल खत्म होने के बाद आना। ऐसी स्थिति में सतारा के जिस कालेज में जाधव पढ़ा करते थे उस कालेज के प्रिंसिपल ने सात हजार रुपये में अपना घर गिरवी रख दिया। इसके अलावा एक अन्य पहलवान निरंजनदास के चयन को लेकर भी महाराज पटियाला को हस्तक्षेप करना पड़ा। निरंजनदास और जाधव आपस मे भिड़े औऱ अंततः जाधव जीत कर हेलेंसकी के लिए चयनित हुए।
जाधव हेलेंसकी ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन किया। पदक के लिए हुए मुकाबले में जापान के मोहासी इशही ने जाधव को हरा दिया। अगली कुश्ती रूस के राशिद मोहम्मदबियाव से हुआ नियमतः दो कुश्ती के बीच आधा घण्टा का विश्राम मिलना था लेकिन इस अवधि में कोई भी भारतीय प्रतिनिधि मौके पर मौजूद नही था। जाधव को तुरंत लड़ा दिया गया। जाधव पहले से थके हुए थे।ऐसी स्थिति में जाधव को कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा।
भारत वापस आने पर जाधव को पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी मिल गयी और आगे के ओलंपिक खेलों में जाधव हिस्सेदार नही बने।
आश्चर्य की बात ये रही कि देश के लिए तब के जमाने मे ओलंपिक खेलों में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले को कोई तवज्जो नहीं दिया गया। जाधव अकेले ओलंपियन है जिन्हें कोई पदम् पुरस्कार नही मिला है। 2000 में उन्हें मरणोपरांत अर्जुन पुरस्कार जरूर देकर सरकार ने अपने भूल को कम करने की कोशिश जरूर की।
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