यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र: देवता
लेखक - संजय दुबे
सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान मुख्य न्यायधीश डी वाई चंद्रचूड़ नए लकीर बनाने वाले व्यक्ति है।इस कारण उनका सम्मान बहुत है। 15 अगस्त को न्यायालयों के निर्णयों को क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराने के निर्णय की लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रचूड़ जी का नमन भी किया था। चंद्रचूड़ जी ने अदालत में स्त्रियों के लिए के उपयोग किये जाने 15 असम्मानजनक शब्दो के स्थान पर विकल्प शब्द की हैंडबुक जारी किया है।
ये देश शक्ति के रूप में दुर्गा, काली, ज्ञान के लिए सरस्वती, मंत्र सिद्धि के लिए गायत्री, को पूजते है। पुरुष देवताओं को अकेले न पूज कर उनकी पत्नियो जैसे विष्णु के साथ लक्ष्मी,शिव के साथ पार्वती, राम के साथ सीता को बराबर का सम्मान देते है।
जहां बात धर्म को छोड़कर सामाजिक दायरे में आती है हमारा दृष्टिकोण संकुचित हो जाता है। पारिवारिक रिश्तों में माँ, बहन, बेटी,पत्नी को सम्मान दिया जाता है ।परिवार से बाहर के पर स्त्रियों के लिए नजरिया व्यापक रूप से बदल जाता है। उनके पहनावे से लेकर उनके भाव अभिव्यक्ति पर अशोभनीय टिप्पणी करने का अधिकार स्वयमेव अर्जित कर लेते है। रिश्तों की गलियां हमारे यहां सार्वजनिक है, मित्रता में गाढ़ापन का चर्मोत्कर्ष गालियों से है। किसी के प्रति अपनी नाराजगी में उनके घर की स्त्री के प्रति गालियां सहित ऐसे शब्द जो अपमान की श्रेणी में आते है उनका उद्बोधन कर दिया जाना आम बात है। न्यायालय में भी 15 ऐसे शब्द का दुरुपयोग स्त्रियों के लिए हुआ करता था उन शब्दों के स्थान पर वैकल्पिक शब्द सुझाये गए है।
मनुस्मृति के संबंध में लोगो की अनेक प्रकार की सही गलत धारणा है लेकिन अच्छी बातें हमेशा अच्छी होती है। मनुस्मृति के 3/56 में "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र: देवता" का उल्लेख है जिसका अर्थ जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते है और जहाँ उनका सम्मान नही होता वहां किये गए अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते है।
मनु स्मृति के श्लोक 3/57 " शोचन्ति जामयो यत्र विना्श्यत्याशु तत्कुलम न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तर्द्धि सर्वदा" का अर्थ है जिस कुल में स्त्रियां कष्ट भोगती है वह कुल शीघ्र नष्ट हो जाता है ।जहां स्त्रियां प्रसन्न रहती है वह कुल सदैव समृद्ध रहता है
अब देश की सर्वोच्च न्यायालय भी मान रहा है कि पुरुष सत्तात्मक समाज मे व्यवस्थापिका औऱ कार्यपालिका में तो स्त्री के सम्मान के प्रति स्वतः ही अपने लिए दायरे निर्धारित किये है लेकिन न्याय पालिका में जिरह के दौरान पक्ष विपक्ष के अधिवक्ता ऐसे शब्दों का उपयोग न्यायलय में करते थे।आरोप के अवस्था मे प्रमाणिकता की ये विसंगति अत्यंत पीड़ाजनक हुआ करती थी जिसे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने महसूस किया। ये उनका स्त्री सम्मान के प्रति चेतना का प्रदर्शन है। इस कार्य के लिए ताली तो बनती है
About Babuaa
Categories
Contact
0771 403 1313
786 9098 330
babuaa.com@gmail.com
Baijnath Para, Raipur
© Copyright 2019 Babuaa.com All Rights Reserved. Design by: TWS