एक राष्ट्र एक चुनाव(one nation one election)
लेखक - संजय दुबे
किसी भी देश मे वन नेशन के साथ अनेक बातों को जोड़ कर नई व्यवस्था का निर्माण किया जा सकता है। संविधान में संघीय ढांचे में राज्यो के स्वतंत्र अस्तित्व को लेकर अनेक बार विवाद की स्थिति आती है। ऐसे में कई बार महसूस होता है कि वन नेशन में सभी बातें समान क्यो नही है।
कुछ समय पहले कोरोना काल मे जब हर व्यक्ति एक जगह पर थम गया था तब भोजन की समस्या सबसे बड़े रूप में उभरी।वन नेशन- वन राशनकार्ड से देश भूख से बेहतर तरीके से लड़ सका।
वन नेशन वन ला की प्रक्रिया प्रगति में है।इसके बाद वन नेशन वन इलेशन की तैयारी राजपत्र में प्रकाशन के साथ शुरू हो गयी है।
इस प्रक्रिया में कितना समय लगेगा ये तो वक़्त के गर्त में छिपी बात है लेकिन एक संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि राष्ट्रीय मितव्ययिता के लिए वन नेशन - वन इलेक्शन एक अनिवार्य प्रक्रिया होना चाहिए।
2023 के अंत से लेकर 2024 के समाप्ति तक लोकसभा चुनाव सहित 12 राज्यो में विधानसभा होना है। 2023 के अंत मे मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना औऱ मिजोरम में विधानसभा चुनाव होना है। 2024 मेंआंध्र प्रदेश,अरुणाचल प्रदेश,उड़ीसा, सिक्किम, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखण्ड की बारी है। यदि वन नेशन वन इलेक्शन के लिए बनी समिति प्रारंभिक रूप से ये प्रस्ताव दे देती है तो 2024 मई में लोकसभा सहित 12 राज्यो के चुनाव सम्पन्न हो सकते है।
ऐसा नही है कि वन नेशन वन इलेक्शन की सोंच नई है। 1952 से लेकर 1967 तक लोकसभा और राज्यो के विधानसभा के चुनाव साथ साथ होते आ रहे थे। 1959 में केरल की कम्युनिस्ट सरकार को भंग किये जाने के बाद केरल वन नेशन वन इलेक्शन की प्रक्रिया से बाहर होने वाला पहला राज्य बना। 1968 औऱ 1969 में कुछ राज्यो के विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बाद से वन नेशन वन इलेक्शन प्रक्रिया बाधित हो गयी।अस्सी के दशक में राष्ट्रपति शासन का इतना उपयोग हुआ कि देश हर पांच साल में दो साल तक चुनाव ही झेलने लगा। 1971 में लोकसभा भी एक साल पहले भंग किये जाने के बाद वन नेशन वन इलेक्शन व्यवस्था तार तार हो गयी। देश के राज्यो में 132 अवसरों पर राष्ट्रपति शासन लगा है। एस. आर बोम्मई बनाम भारत संघ 1994 के निर्णय के बाद राष्ट्रपति शासन का उपयोग/ दुरुपयोग बंद हुआ।
1983 में चुनाव आयोग ने वन नेशन वन इलेक्शन का सुझाव दिया।1999 में विधि आयोग के अध्यक्ष बी. पी. रेड्डी ने इस विचार को आगे बढ़ाया। 2015 में कार्मिक, सार्वजनिक शिकायत, कानून औऱ न्याय की स्थाई समिति ने अनेक कारण बताते हुए वन नेशन वन इलेक्शन का सुझाव दिया था। आठ साल बाद विधिक रूप से पुनः विचार को मूर्त रूप देने की प्रक्रिया शुरू हुई है।
वन नेशन वन इलेक्शन के विचार के पीछे राजनैतिक सोंच जो भी हो लेकिन आम जनता के लिए अनेंक चुनाव सरदर्द ही है। ध्वनि प्रदूषण से लेकर पोस्टर युद्ध के साथ रैलियों के चलते दो महीने तक असामान्य जीवन जीना कठिन होता है। इसके अलावा कानून व्यवस्था, सरकारी कर्मचारी के चुनाव कार्य पर लगने से प्रभावित होते कार्य और केंद्र सहित राज्य सरकार के खर्च के चलते वन नेशन वन इलेक्शन सार्थक पहल है। माना जाता है कि लोकसभा चुनाव में दस हज़ार करोड़ औऱ विंधानसभा चुनाव में चार हज़ार करोड़ रुपये खर्च होते है।
देश तो पहले चार लोकसभा चुनाव सहित विधानसभा चुनाव करा चुका है।इस कारण जब राजनैतिक नफा नुकसान की बात होगी तो इतिहास के पन्ने गवाह बनेंगे।
जहां तक संवैधानिक गतिरोध की बात ले तो संविधान में अनुच्छेद 83 संसद के दोनो सदनों का कार्यकाल निर्धारित करता है। अनुच्छेद 83(2) लोकसभा की पहली बैठक से 5 साल औऱ अनुच्छेद 172(1) विधानसभा की पहली बैठक से 5 साल का कार्यकाल निर्धारित करता है। संविधान केअनुच्छेद 83,85, 172,174, औऱ 356 में संशोधन किए बगैर फिलहाल वन नेशन वन इलेक्शन संभव नहीं है। इसी संदर्भ में सितम्बर के तीसरे सप्ताह में संसद के विशेष सत्र बुलाये जाने पर कयास लग रहे है।
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