राजनीति की बिसात औऱ महिला बनी मोहरा!
लेखक - संजय दुबे
शतरंज के खेल को दुनियां के सबसे दिमागी खेल माना जाता हैं।64 खानों के चौसर में32 मोहरों के साथ खेले जाने इस खेल में चतुरंगी सेना राजा और वजीर के साथ होती है। इन सबका काम प्रतिद्वंद्वी राजा को बेबस करने का होता है। प्रतिद्वंद्वी को कैसे पराजित करे ये सार होता है।योजना बनाना, सामने वाले की चाल समझना, बुद्धिमत्ता पूर्ण चाल चलना शतरंज खेल की खूबी है। आज के दौर में शतरंज का खेल हर क्षेत्र में प्रभावकारी हो गया है। राजनीति में पक्ष - विपक्ष अपने अपने मोहरे औऱ चाल सोंच कर बैठे है ।अपने अपने राजा को स्थापित करने के लिए चाल पर चाल चलना अनिवार्यता है।
देश दुनियां में पुरुषो के बराबर महिलाओं की संख्या हो चली है।समानता का आंदोलन विकसित देशों से विकासशील देशों में पसर गया है। महिलाएं रसोई औऱ बच्चों के पालन पोषण तक सीमित नही रहना चाहती।वे परिस्थियों के कारण बेचारी बनने या फिर पराश्रित होने के भविष्य से सुरक्षित होने के लिए आत्मनिर्भर होने की दिशा में अग्रसर है।साड़ी के पल्लू के बंधन से मुक्त होकर सलवार कुर्ता या पेंट शर्ट में वह आर्थिक स्वालंबन के लिए मन बना चुकी है। विवाह जैसी संस्था भी इसी कारण सशक्त नही हो पा रही है। महिलाओं के रोजगार के क्षेत्र में आने से पुरुषो के वर्चस्व में कमी आते जा रही है।
राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं के आगे आने को संकुचित दृष्टि से आज भी देखा जाता है। केवल पुरुष सत्तात्मक समाज में पुरुषो का ही नजरिया नही बल्कि स्वयं महिलाओं का भी नजरिया राजनीति के प्रति संकुचित ही है। महिलाएं राजनीति के बजाय अन्य क्षेत्र में स्थापित होना बेहतर समझती है। बहुत कम महिलाएं होती है जो स्वयं ही राजनीति में स्थापित होने के लिए अपनी पहल करती है। इसी कारण उन्हें त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली में 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। ये कार्य राजनीति में महिलाओं के प्रवेश का सशक्त माध्यम बना। शासकीय सेवा में 45 साल तक की उम्र का निर्णय पारिवारिक दायित्व से मुक्त होकर रोजगार में आने का बेहतर निर्णय रहा है। महिलाओं के प्रति सकारात्मक निर्णयों ने उन्हें अनेकानेक सुविधाएं दी है। जमीन के रजिस्ट्री में छूट, राशनकार्ड में परिवार के मुखिया के रूप में चयन, गैस कनेक्शन में उनका वर्चस्व, उनकी महत्ता को बढ़ाने वाला रहा है। इन कार्यो से निश्चित रूप से महिला सशक्तिकरण की दिशा में कार्य हर पार्टी की सरकार ने की है।
अब राजनीति के चौसर पर महिलाओं को सामने लाने के चाल के रूप में महिला आरक्षण बिल आगया है। जो परिस्थिति बनी है और जो समय चुना गया है उसमें किसी भी पार्टी की हिम्मत नही है जो विरोध कर सके। भले ही सुधार के नाम पर अनेकानेक सुझाव परोसे जाए लेकिन बिल कानून बनेगा ये तय है।
जिस तरह से इस बिल में प्रावधान है उसके अनुसार आगामी जनगणना औऱ परिसीमन के साथ साथ दो तिहाई राज्यो के विधानसभाओं से पास भी कराना है अतः 2024 के लोकसभा और राज्यो के चुनावों में इसका परिणाम नही दिखेगा।
अब बात आती है कि क्या देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मास्टर स्ट्रोक्स लगाएंगे। वे भी जानते है कि कानून बनते अगले साल के लोकसभा चुनाव सहित 12 राज्यो के विधसनसभा चुनाव निकल जाएंगे।विपक्ष आरोप लगा ही रहा है कि ये बिल चुनावी झुनझुना है। जिसका वर्तमान से कोई लेना नही है। ऐसे में चौकाने वाले निर्णय लेने में माहिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या जोखिम उठाएंगे कि उनकी पार्टी शीघ्र होने वाले मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना विधानसभा सहित अगले लोकसभा चुनाव में 33 फीसदी सीट महिला प्रत्याशियों खड़ा करेंगे। अगर भाजपा ऐसा करती है तो कानून बनने से पहले कानून के पालन करने की चाल की कोई काट नही होगी
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