पाकिस्तान हॉकी का सूर्यास्त
लेखक - संजय दुबे
कल हॉकी जगत में जो हुआ वो अविश्वसनीय औऱ अविस्मरणीय था। चना मुर्रा जैसे गोल वो भी पाकिस्तान के खिलाफ, 4 नही 5 नही 10 गोल, किसे कहते है! सच तो सच होता है और ये सच चीन के एशियाई खेल के हॉकी इवेंट्स में देखने को मिला। पिछले 10 साल में कुल 25 मैच में भारत ने 17 मैच जीते है जो ये भी इशारा करता है कि पाकिस्तान की हॉकी भी पाकिस्तान की राजनीति के समान अस्थिर हो गयी है। अविभाजित भारत के ओलंपिक खेलों में अगर किसी खेल में एकाधिकार था तो वह हॉकी खेल में था। अगले ओलंपिक खेल में जेब मे गोल्ड मेडल लेकर जाते गले मे लटका कर वापस आ जाते। मेजर ध्यानचंद जैसा जादूगर हमारे पास था। 1947 में देश की विभाजन की त्रासदी झेलना पड़ा। नए देश के रूप में पाकिस्तान ने जन्म लिया और बैठे बैठाए एक दुश्मन पड़ोस में मकान मालिक बन बैठा। विभाजन का असर हॉकी खेल पर भी पड़ा। एक दमदार प्रतिद्वंद्वी जो जन्म ले चुका था। पहले इसके चलते भारत का एकाधिकार खत्म हुआ दूसरा एस्ट्रो टर्फ के आने से औऱ तीसरा क्रिकेट की लोकप्रियता ने भारत के राष्ट्रीय खेल के परखच्चे उड़ा दिए।
पाकिस्तान ने ओलंपिक में 1960 औऱ 1968 में विजेता बना तो विभाजन का नुकसान समझ मे आने लगा। एशियाई खेलों में तो पाकिस्तान का मतलब विजेता ही होना होता था। 1958,1962,1970, 1978, 1982, 1990 एशियाड खेलो में विक्ट्री स्टैंड में खड़ा होता रहा। 1971,1978, 1982 और 1994 में विश्वकप विजेता रहा। 1948 से लेकर अगले सात दशक तक अगर पाकिस्तान भारत के सामने प्रतिद्वंद्वी रहता तो दोनो देश के वासियो में तनाव बढ़ जाता। दरअसल विभाजन के बाद पाकिस्तान की आक्रमणकारी नीति और बाद में भारत के भीतर आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता ने संबधो के आग में घी डाल दिया। दोनो देश के जीतने हारने पर राष्ट्रीय खुशी और गम होने लगे। संबंध इतने कटु हो गए कि अब दोनो देशों के बीच खेल के भी संबंध टूट चुके है। केवल अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में ही आमना सामना होता है। एक दूसरे के देश मे कोई खेल रिश्ता नही रहा है। मुझे अच्छे से याद है कि 1980 में हुए करांची चैम्पियंस ट्रॉफी औऱ 1982 के दिल्ली एशियाड में पाकिस्तान ने भारत को 7-1 गोल के अंतर से हराया था। 1982 में भारतीय गोलकीपर नेगी पर प्रश्न चिन्ह लग गए थे।
पाकिस्तान के स्टार खिलाड़ियों में मुनीर दार, हमीद हमीदी, नसीर बुंदा, असर मालिक, तारिक नियाज़ी, हनीफ खान, मंजूर उल हसन, हसन सरदार, ताहिर जमाल, शाहबाज़ अहमद, ताहिर जमाल, सर्वाधिक 348 अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने वाले सोहेल अब्बास, कामरान अशरफ, जुबैर अहमद के रहते पाकिस्तान की हॉकी टीम हौव्वा हुआ करती थी। 2013 से भारतीय हॉकी में परिवर्तन का दौर शुरू हुआ। यहाँ उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का आभार देशवासियों को मानना चाहिए जिन्होंने हॉकी को गोद लिया और एक नवजात को जैसे बड़ा किया जाता है वैसा उंगली पकड़ कर खड़ा कर दिया। इसका परिणाम हम सब चीन में चल रहे हॉकी मैच से देख रहे है। अपने परंपरागत प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान की टीम के खिलाफ 10 गोल दागना आसान काम नही होता है लेकिन भारतीय कप्तान हरमनप्रीत सिंह तो जिद पकड़ने का जो विज्ञापन कई दिन से दिखा रहे थे उसे हकीकत में पकड़ लिए थे।अकेले 4 गोल ठोक दिए।वरुण ने 2 बार पाकिस्तान गोल पोस्ट को खड़का दिया। चार भारतीय खिलाड़ी ललित, शमशेर, मनदीप और सुमित ने एक एक गोल मार कर गोल संख्या को दहाई याने 10 में बदल दिया। 1948 से लेकर अब तक के 75 साल के खेल इतिहास में पड़ोसी इतना गोल नही खाया था। इस बार ये भी हो गया। हरमनप्रीत सिंह को ये गर्व हमेशा होगा कि वे उस टीम के कप्तान रहे जिसने सालो से ऐसी जीत की ख्वाब को हकीकत में बदल दिया। अब ये तो लगभग तय हो गया है कि भारत के कप्तान हरमनप्रीत सिंह की टीम विक्ट्री स्टैंड में खड़ी होने के लिए तैयार है तो प्रतीक्षा करे।
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