दोस्त,दोस्त ना रहा..!
लेखक - संजय दुबे
हम अपने आसपास घटती घटनाओं से बहुत कुछ समझते है और सीखते भी है। दो दिन पहले ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाज ग्लेन मैक्सवेल ने अफगानिस्तान के खिलाफ विपरीत परिस्थितियों में शानदार दोहरा शतक लगाया।इसे लोगो ने जीवन में आने वाले विषम परिस्थिति से जूझने का एक अध्याय माना।
इसी के साथ साथ एक ओवर में 6छक्के लगाने वाले युवराज सिंह का एक वीडियो भी लोगो ने देखा/सुना। इसमें युवराज सिंह ने भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के साथ अपने संबंधों का भी काफी समय बाद खुलासा किया। अपने लाइफ स्टाइल को धोनी से अलग मानते हुए युवराज ने ये स्वीकार किया कि दोनो के बीच दोस्ती न होकर क्रिकेट के कारण टीम के सदस्य के रूप में जुड़ाव था।
आम तौर पर मित्र , सहकर्मी और परिचित के बीच बड़ी ही संकीर्ण विभाजन रेखा होती है। एक टीम में रहने वाले सभी सहकर्मी होते है उनमें आत्मीय संबंध बन जाते है क्योंकि साथ साथ रहते रहते आपसी तालमेल ज्यादा हो जाता है। इस तालमेल के लिए आंग्ल भाषा में एक शब्द है "coulegue" इस शब्द का अर्थ टीम का सदस्य होना है।जिनमे एक समान कार्य के लिए एक समय विशेष के लिए जुड़ाव होता हैं । समय और कार्य खत्म होते ही मंजिले अलग अलग तय हो जाती है। युवराज और धोनी भारतीय टीम के आधार स्तंभ रहे है और धोनी की कप्तानी में युवराज ने टीम को सफलता दिलाने में अनेक अवसरों में महत्वपूर्ण योगदान भी दिया। दोनो के बीच हुई साझेदारी ने टीम को सफलता भी दिलाई ।इसके बावजूद युवराज और धोनी दोस्त नहीं थे।
युवराज बीमारी के चलते टीम से बाहर हुए फिर स्वस्थ होकर टीम में आए।धोनी टेस्ट की कप्तानी छोड़ चुके थे। युवराज मूलतः वनडे और टी 20के बड़े खिलाड़ी थे। उनके पिता योगराज सिंह जो भारत की तरफ से केवल एक टेस्ट खेले वे अक्सर धोनी पर आरोप लगाते रहे है कि धोनी ने युवराज के कैरियर को समय से पहले खत्म कर दिया। ये बात युवराज ने कभी नहीं कहा लेकिन अभी जो बात कही गई है उसमे कही न कही थोड़ी सी तल्खी जरूर दिख रही है।
युवराज और धोनी के कार्मिक संबंध से ये सीख जरूर लेना चाहिए कि साथ में रहने वाला, साथ में काम करने वाला सहकर्मी पहले होता है जिनका व्यक्तिगत स्वार्थ होता हैं । दोस्ती निस्वार्थ होती है और एक व्यक्तित्व अगर सम्पूर्ण रूप से किसी अन्य व्यक्ति में दिखे तो ही दोस्ती शुरू होती है और प्रगाढ़ होती है। देखा जाए तो जो दोस्ती बचपन में होती है वह समझ के साथ दीर्घता धारण करती है। बड़प्पन में दोस्ती बामुश्किल होती है। इस कारण युवराज के बातो के दर्शन को हम सभी को समझते हुए दोस्त,सहकर्मी और परिचित में फर्क करना आना चाहिए।
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