चुनाव है धन बरस रहा ...
लेखक- संजय दुबे
हर शहर में चावड़ी होती है जहां पुरुष महिलाएं मजदूर उपलब्ध होते है। इनमे स्किल्ड और नान स्किल्ड वर्ग के मजदूर होते है। ये लोग दिहाड़ी याने दैनिक मजदूरी पर काम करने के लिए तैयार रहते है।मजदूरी को मेहनताना भी कहा जाता हैं। एक तयशुदा समय होता है इसके बाद अगर काम करवाया जाए तो अलग से राशि देनी पड़ती है।
कुछ साल पहले होने वाले चुनाव में निर्वाचन आयोग द्वारा तीन महीने पहले चुनाव घोषित कर चुनाव प्रचार के लिए ज्यादा समय दे दिया करता था। शेषन के बाद से ये समय बामुश्किल दो माह से कम हो गया है उसमे भी कई चरण में अलग अलग स्थानों में चुनाव होते है तो ये माना जा सकता है कि एक विधान सभा क्षेत्र के लिए प्रत्याशी के पास 21से 25दिन के समय में अपने क्षेत्र में चुनाव प्रचार करने की मजबूरी होती है।
चुनाव प्रचार भले ही कितना मेकेनाइज्ड क्यों न हो जाए, फेसबुक,ट्वीटर,इंस्टाग्राम में वार क्यों न चलता रहे जमीनी प्रचार का अपना वजूद है। इस प्रकार के प्रचार को आप ऑफ लाइन प्रचार भी कह सकते है।
प्रचार में सबसे पहले महत्वपूर्ण स्थान रैली का है। पार्टी का चुनाव चिन्ह ,झंडा प्रत्याशी, बैनर लेकर पैदल चलने की प्रक्रिया रैली कहलाती है। आमतौर से 500से1000लोगो वाली रैली असरदार रैली मानी जाती है इससे ज्यादा संख्या की रैली केवल प्रत्याशी द्वारा फॉर्म भरने के समय निकली जाती है। आजकल पार्टियां जिलेवार विधानसभा के प्रत्याशियों को जुलूस की शक्ल में ले जाकर ये प्रक्रिया करवाते है इस कारण संख्या बल की जरूरत ज्यादा पड़ती है। रैलियों के अलावा घर घर जाकर पार्टी/प्रत्याशी के हैंड बिल सहित देय योग्य प्रचार सामग्री( लिफाफा,साड़ी, लोवर, जूता,बरमूडा,चादर,कम्बल,हेड फोन, आदि छोड़कर), मतदान केंद्र सहित मतदाता के मतदान केन्द्र की जानकारी के लिए 10से15व्यक्ति पर्याप्त होते है। एक विधानसभा क्षेत्र में इस कार्य के लिए एक दो स्थानीय व्यक्तियों की जरूरत होती हैं ।
बात रैली की करे तो आजकल के ट्रेंड में चावड़ी तो सर्वसुविधायुक्त स्थान है । गली मोहल्ले के बेरोजगार युवक और इसके अलावा स्कूल कालेज में पढ़ने वाले विद्यार्थी भी रैली के लिए प्रचुर मात्रा में उपलब्ध मानव संसाधन हैं।
चाहे चावड़ी के मजदूर हो या बेरोजगार युवक या फिर स्कूल कालेज के विद्यार्थी बिना नगद राशि और अन्य सुविधा जैसे दो पहिया वाहन है तो पेट्रोल, नाश्ता,खाना आदि मांग के अनुरूप लेकर एक महीना जेब खर्च निकालते है।
प्रत्याशियों की तरफ से पेट्रोल पंप, होटल आदि निर्धारित है । प्रत्याशी व्यक्ति निर्धारित कर देते है जो ये काम मोहल्ला वार देखते है।
इस बार के चुनाव में विद्यार्थियों को 500रुपए प्रति दिन,2लीटर पेट्रोल सहित चाय नाश्ता, खाना और सबसे महत्वपूर्ण वस्तु शराब उपलब्ध कराई जा रही है।
पुराने समय में बेट बॉल सहित स्टंप दिए जाने का प्रचलन था। अब हेडफोन का युग है। रैली खत्म होने के बाद इसका बटवारा देखा गया है । मजे की बात ये है कि चावड़ी, बेरोजगार और स्कूल कालेज के विद्यार्थी किसी भी पार्टी विशेष के नही है वे केवल नगद राशि और दीगर सुविधा के आकांक्षी लोग है। जो हर दिन अलग अलग पार्टी के रैली में पहचाने जाते है।
क्या रैलियों से आम मतदाता प्रभावित होता है?
हर पार्टी बताती हैं कि उसके सक्रिय कार्यकर्ता है जिन्हे निष्ठावान माना जाता हैं वे इन रैलियों में क्यों नही होते है।
About Babuaa
Categories
Contact
0771 403 1313
786 9098 330
babuaa.com@gmail.com
Baijnath Para, Raipur
© Copyright 2019 Babuaa.com All Rights Reserved. Design by: TWS