किस करवट बैठा है मतदाता..!

लेखक- संजय दुबे

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छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट के लिए दो चरणों का मतदान 17नवंबर 2023को पूर्ण हो गया। लगभग70फीसदी मतदान प्रतिशत रहा है जो मतदाता के सजगता का परिचायक है। अगले 12दिन तक कयास लगाए जाते रहेंगे कि कौन सी पार्टी जीत रही है कौन सी पार्टी हार रही है। कौन सा प्रत्याशी जीत रहा है तो कौन प्रत्याशी हार रहा है। ये भी चर्चा होगी कि अधिक और कम मतदान के मायने क्या है। प्रत्याशियों सहित राजनैतिक दलों के घोषणा पत्र, अच्छे -बुरे काम काज का आंकलन होगा। राजनीति में लुका छिपी के खेल के साथ साथ घात प्रतिघात की चर्चा होगी।  

        राजनैतिक दलों में जयचंद और मीर जाफर की भी निशानदेही होगी।भीतरघात जैसे शब्द के दायरे में पार्टी के पदाधिकारी आयेंगे और उनकी भी चर्चा अगले दो सप्ताह तक होगी।

  छत्तीसगढ़ में कौन पार्टी सरकार बनाएगी! इस प्रश्न का उत्तर तो 3दिसंबर को मतपेटियों की गणना के बाद पता चलेगा लेकिन दोनो प्रमुख पार्टियां कांग्रेस और भाजपा आश्वस्त है कि जनादेश उनके पक्ष में जायेगा। सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के मुख्य मंत्री भूपेश बघेल का दावा है कि कम से कम 75सीट पर उनके पार्टी के प्रत्याशी जीत रहे है दूसरी तरफ भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री डा रमन सिंह अपनी पार्टी की सरकार बनाने के संबंध में दावे कर रहे है। किसके दावे पर मतदाताओं ने बटन दबाया है ये भी 3दिसंबर को ही पता चलेगा।

 राज्य की प्रमुख पार्टियों ने मुख्य रूप से किसान और महिलाओ को केंद्रित कर संकल्प और घोषणा किए थे। बेरोजगारी, शासकीय कर्मचारियों की सुविधा और समस्या, के अलावा कानून व्यवस्था सहित विकास को भी मुद्दा बनाया गया।

क्षेत्रीय जातिगत संतुलन को ध्यान में रख कर प्रत्याशियों का चयन किया गया। कांग्रेस ने 22विधायको को उनके कामकाज के आधार पर चयनित नहीं किया तो भाजपा के पास 77 पराजित

सीट पर दांव खेलने की आजादी मिली।कर्नाटक में नए लोगो के चयन की प्रयोग शाला के परिणाम बुरे निकलने पर पुराने लोगो को वापस लाने की विवशता भाजपा में दिखी। सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारने का नव प्रयोग इस विधान सभा चुनाव की विशेषता रही।दोनो पार्टियों ने अपने सांसदों को चुनाव में इसलिए भी उतारा क्योंकि महज चार माह दूर लोकसभा चुनाव आसन्न है। जीत गए तो लोकसभा में विकल्प खोज लिया जायेगा और हार गए तो संसदीय सीट पर प्रत्याशी तो बन ही सकते है।

दोनो ही प्रमुख पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष चुनाव में प्रत्याशी है एक आदिवासी है तो दूसरे ओबीसी का प्रतिनिधित्व करते है।दोनो का प्रदेश अध्यक्ष बनना राज्य के जातिगत ध्रुवीकरण को पार्टी के पक्ष में लाने की योजना है। ये योजना कितनी कारगर हुई इसका भी निर्णय 3दिसंबर को ही होगा।

 आमतौर पर मतदान के बाद आने वाली सरकार से संबंधित पार्टी के बारे में धुंधली ही सही तस्वीर झलकने लगती है लेकिन इस बार मतदाता ने अपने मत के दान के बाद सच को मौन बना दिया है जिससे ये अंदाजा लगना मुश्किल हो रहा हैं कि जनादेश किसके पक्ष में गया है।

दावे अपनी जगह होते है और निर्णय का अस्तित्व अपनी जगह होता है। इतना जरूर है कि राज्य में मध्यम वर्ग की अपनी पसंद रही है, किसानों का अपना मापदंड रहा है, महिलाओ ने अपने नजरिए से चुनाव किया है युवा वर्ग ने अपने आक्रोश को उजागर किया है। जातिगत समीकरण के चलते ध्रुवीकरण का अंदेशा है। विकास और कानून व्यवस्था शहरी क्षेत्र में मत को प्रभावित कर पाए है अथवा नहीं ये निर्णय भी इलेक्ट्रानिक मत पेटी से ही बाहर आएगा।

 एक पार्टी को जनादेश मिलेगा और दूसरी को जनादेश स्वीकारना होगा। ये 3दिसंबर के दोपहर तक साफ हो जाएगा कि किस पार्टी ने किस पार्टी का पत्ता साफ कर दिया है।


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