पूजा के लिए फूल कैसे चोरी करे...?
लेखक - संजय दुबे
बिना बगीचे के घरों और फ्लेट्स में रहने वालो के घर में भगवान मूर्ति के रूप में रहते ही है।जिन लोगो को वास्तु शास्त्र का कहा सुना ज्ञान है वे इस शास्त्र के अनुसार निर्धारित ऊंचाई 9इंच ऊंची मूर्ति रखते है जिन्हे वास्तु शास्त्र का ज्ञान नहीं है वे मर्जी के उंचाई की मूर्ति रख लेते है। दोनो ही स्थिति में स्थापित मूर्ति की दैनिक पूजा (असामान्य परिस्थितियों को छोड़कर) नियमित किया जाना अनिवार्य है अन्यथा भगवान के कोपभाजन की परिस्थिति बनने का योग होता है।
मूर्ति की पूजा, व्यक्ति अपने नित्य कर्म से बेहतर करता है। व्यक्ति केवल नहाता है, साफ सुथरे कपड़े पहनता है लेकिन भगवान की मूर्ति को स्नान कराना, साफ सुथरे कपड़े पहनाना, फूल चढ़ाना, टीका लगाना आरती करना और अंत में प्रणाम करना।
जिन घरों में फूलो का जुगाड नही होता और होता है भी तो सुंदरता के नाम पर न तोड़ने की वजह के चलते दो विकल्प शेष बचते हैं पहला बाजार से नगद में खरीद कर लाओ या मंगवाओ या फिर अन्य घरों में खिले फूलो को उस घर के मालिक के अनुमति के बगैर तोड़ो । कुछ लोग दूसरे के घरों से फूल तोड़ने के काम को बेहतर मानते है। इस कार्य को स्वास्थ्य से जोड़ा जा कर ये भी सिद्ध किया जाता है कि मुंह अंधेरे में उठना और फूलो के जुगाड़ के लिए ऑल वेदर घूमना स्वास्थ्य की दृष्टि से आसान काम नहीं है । घूमने जाते है तब दूसरे के घर से फूल तोड़े जाते है
अपराध शास्त्र के अनुसार "चोरी"को परिभाषित किया गया है। किसी भी व्यक्ति के आधिपत्य में उसके अनुमति के बगैर किसी वस्तु को प्राप्त किया जाना चोरी माना जाता है ।
बावजूद इसके लोग ये नहीं मानते है और अपने आधिपत्य के भगवान को चोरी से लाए गए फूल को चढ़ा कर अगाध श्रद्धा प्रकट करते है।
दूसरे के घरों के फूल को तोड़ना भी आसान काम नहीं है। जोखिम और प्रतिस्पर्धा दोनो है साथ ही साथ अत्याधिक लगन और मेहनत की भी जरूरत होती है।
हर मोहल्ले में गिने चुने घर होते है जिनमे लगे फूलो के पेड़ पौधे में मौसमवार फूल खिलते है और घर के भीतर और बाहर खिलते है। घर के भीतर लगे फूलो के बजाय बाहर लगे फूलो पर नजर होती है। पहले आओ पहले पाओ की तर्ज में जो बंदा पहले पहुंचता है उसके नसीब में ऐसे फूल आजाते है। इस कारण कुछ लोग ऐसे होते है जो ब्रह्म मुहूर्त में घर से निकल जाते है। जैसे जैसे अंधियारा कम और रोशनी बढ़ती जाती है ।पहुंच तक के फूल टूट चुके होते है। ऊंची टहनियों में लगे फूलो के लिए हाथ के बजाय अतिरिक्त साधन की जरूरत पड़ती है। जो लोग शीघ्रता नहीं कर पाते वे लोग एक डंडा रखते है जिसके ऊपरी हिस्से में लोहे का मुड़ा हुआ तार लगा होता है।इसके सहयोग से ऊंची टहनियों को नीचे खींच कर फूल तोड़ा जाता है।
तोड़े गए फूलो को रखने के लिए प्लास्टिक की झिल्ली अथवा साफ सुथरा कपड़े की छोटी थैली भी रखा जाता है। अगर नसीब में घर के बाहर लगे फूल नहीं मिलते तब लोग चार दीवारी के भीतर के भी फूल तोड़ने के लिए दुस्साहस किया जाता है। अधिकृत फूल तोड़ने वाले ये भली भांति जानते हैं कि मोहल्ले में किस किस घर में फूल लगते है इस कारण उनके घूमने के लक्ष्य निर्धारित होते है।
जिसके घर के फूल तोड़े जाते है उसका स्वभाव भी मायने रखता है। कुछ लोग ये सोच कर संतोष कर लेते है कि चलो, भगवान में ही चढ़ रहा है आखिर फूल भी तो भगवान का ही सृजन है। कुछ लोगो को आपत्ति होती है कि मिट्टी, खाद, पानी, मेहनत हमारी और हमने घर को सुंदर रखने के लिए फूल। लगाए है तो इस पर किसी अन्य का अधिकार नहीं है। ऐसे लोग फूल तोड़ने वालो से बहस,लड़ाई, करते है। कुत्ता छोड़ देना, पानी फेक देने के तरीके अपनाए जाते है। इनका ये भी तर्क होता है कि चोरी के फूलो से भला भगवान कहां खुश होते होंगे।
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