चले गए अमृता के इमरोज
लेखक- संजय दुबे
इमरोज,उर्दू जुबान में सांसारिक सुख को कहा जाता है।समाज शास्त्र में इमरोज का अर्थ अगर पुरुष और स्त्री के संबंध को लेकर देखे तो सीधी सरल परिभाषा है -सुखद वैवाहिक जीवन मगर इस दुनियां में एक इमरोज ऐसा भी था जिसे अपने नाम को परिभाषित करने के लिए सिर्फ एक शब्द ही पर्याप्त था - अमृता प्रीतम।
संकुचित अर्थों में प्यार का अर्थ केवल पुरुष और स्त्री के खास कर पुरुष के दैहिक संतुष्टि से ज्यादा नहीं है लेकिन विस्तार से देखे प्यार अगर रिश्तों से परे है तो ये मानसिक संतुष्टि की सर्वश्रेष्ठ परिणीति है
अमृता प्रीतम हिंदी और पंजाबी भाषा की एक ऐसी। सशक्त हस्ताक्षर है जिनके लेखन का लोहा देश दुनियां मानती है। उनका बेबाक जीवन भी हमे बहुत कुछ समझाता है। तब के जमाने में जब लड़के लड़कियों के स्कूल अलग हुआ करते थे। लड़कियों के घर से अकेले बाहर जाने पर बंदिशे हुआ करती थी। आपस में बात करना तो तथाकथित चार लोगो के लिए किसी के घर की इज्जत उछालने के लिए पर्याप्त हुआ करता था तब के जमाने में अमृता प्रीतम ने 40साल इमरोज के साथ एक छत के दो अलग अलग कमरों में बिताए बिना किसी सामाजिक संबंध के डोर में बंधे। आजकल के दौर में ये रिश्ता live in relationship कहलाता है।
इमरोज, अमृता प्रीतम के जीवन में आने वाले तीसरे और अंतिम पुरुष थे। छः साल उम्र में अमृता शादी प्रीतम सिंह से हुई थी लेकिन रूमानी अमृता के जीवन में क्रांतिकारी गीतकार साहिर लुधियानवी साहित्यिक साथी के रूप में आ चुके थे। इस रिश्ते के चलते अमृता का प्रीतम से साथ छूटा लेकिन साहिर भी उनके नहीं हुए। अमृता के जीवन में तीसरे पुरुष इमरोज थे जो रुचि के मायने से पेंटर और कवि थे।
इमरोज को एक तरह से शांतमना अकेले ही दार्शनिक प्रेम करने वाला किरदार माने तो ज्यादा बेहतर होगा। वे अमृता के साया बन चुके थे। इमरोज ने खुद को अमृता के लिए समर्पित कर दिया और इस रिश्ते को अमृता की मृत्यु और अपने जीवन के अंतिम सांस तक निभाया।
अमृता प्रीतम और इमरोज जैसा होना आसान नहीं होता है। आज जब हम आधुनिक होने का स्वांग रचते है तब भी पुरुष और स्त्री के संबंध में हमारे विचार खोखले होते है। अनजान पुरुष और स्त्री के किसी भी प्रकार के संबंध बनाने की हमारे पास आजादी होती है। इससे परे पुरुष और स्त्री के बीच एक रिश्ता मित्रवत् होता है,दैहिक आकर्षण से जुदा। इस रिश्ते को हर कोई समझ नहीं सकता है।समझना चाहे तो एक बार इमरोज की जिंदगी को जरूर झांकना चाहिए जिसके लिए अमृता प्रीतम ने लिखा है कि अजनबी जिंदगी के शाम में क्यों मिले दोपहर में क्यों नहीं!
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