सौभाग्य अटल जी से मिलने का

लेखक- संजय दुबे

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खाद्य विभाग की नौकरी में एक अतिरिक्त जिम्मेदारी हमेशा रहा करती थी - प्रोटोकॉल की। प्रोटोकॉल में रायपुर आने वाले विशिष्ट अतिथियों के प्रति जिम्मेदारी सौंपी जाती थी। ये कार्य अनेक कारणों से र्रोमांचकारी भी हुआ करता था।

ये सभी जानते है कि हमारे राज्य छत्तीसगढ़ के निर्माण में भारत के तीन बार प्रधान मंत्री रहे महामना अटल बिहारी वाजपेई का योगदान सबसे ज्यादा है।

 अटल बिहारी वाजपेई जी का मेरे रायपुर के कार्यकाल में तीन बार आगमन हुआ। दो बार प्रधान मंत्री के रूप में और एक बार राज्य उत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में। मेरा सौभाग्य रहा कि तीनों बार प्रोटोकॉल में मुझे भी टीम के सदस्य के रूप में दायित्व मिला।

 देश के प्रधान मंत्री के रूप में राज्य निर्माण के बाद पहला आगमन हुआ तो वे पहुना राज्य अथिति गृह में रुके। जिन शासकीय कर्मचारियों को दायित्व मिला था उनको अथिति गृह से एक दिन बाहर आने की इजाजत नहीं थी। दिन भर आगंतुकों की भीड़ लगी रही। देखने की बात दूर रही।दूसरे दिन सुबह खबर आई कि प्रधानमंत्री महोदय जिनकी ड्यूटी लगी है ,उनसे मिलेंगे। हम सभी कतारबद्ध होकर खड़े थे। धोती कुर्ते के साथ नीले रंग की कोटी पहने हुए अटल बिहारी वाजपेई जी आए, बड़ी विनम्रता के साथ सभी से हाथ मिलाते और नाम पूछते। संयोग ये भी था कि उस दिन अधिकांश शर्मा तिवारी ,पांडे, चतुर्वेदी, दुबे की ही ड्यूटी लगी थी। अंत में मुस्कुराते हुए बोले आपके मुख्य मंत्री जोगी जी होशियार है।

 दूसरी बार , अटल बिहारी बाजपेई जी चुनावी दौरे में रायपुर एयरपोर्ट से ट्रांसिट होकर उड़ीसा जाने वाले थे। आनन फानन एयरपोर्ट पहुंचे ।तब माना विमानतल पुराना एयरपोर्ट से संचालित होता था।

 अटल बिहारी बाजपेई जी के साथ वैंकया नायडू भी साथ में थे।

 वीआईपी लाउंज में हम सारे शीतल पेय लेकर गए थे। उस समय लेमन फ्लेवर में "कनाडा ड्राय" आया था जिसे नया है कह कर रख लिए थे। संयोग ये रहा कि प्रधान मंत्री जी ने लेमन फ्लेवर में कोई कोल्ड ड्रिंक है क्या पूछ लिया। संयोग काम आ गया। माना में अटल जी ने प्रेस कांफ्रेंस लिया और जाते समय हाथ हिला कर अभिवादन किया।

 तीसरी बार अटल बिहारी बाजपेई जी साइंस कालेज ग्राउंड में राज्य उत्सव में मुख्य अतिथि बन कर आए तब वे प्रधान मंत्री न हो कर पूर्व प्रधान मंत्री हो गए थे। इस बार वे कवि रूप में थे। काल के कपाल पर गीत लिखता हूं सहित कई कविताएं सुनाई। अंत में मंच से उतरे तो पिछले दो बार की तरफ ऊर्जावान न होकर थके थके से थे, स्वास्थ्य उनका साथ छोड़ रहा था। मंच से नीचे उतरने के लिए उन्होंने हाथ बढ़ाया और दो कदम उनके साथ चलने का अहसास आज भी है। 

मैने 1980में अटल जी को सिवनी में एक सभा में बोलते सुना था। सभा की भीड़ बताती थी कि अटल जी की लोकप्रियता कितनी है। आगे वक्त के साथ अटल जी का विराट व्यक्तित्व से आत्मसात होने का अवसर मिलता रहा। उनके भाषण आज भी सुनो तो लगता है कि हिंदी में कितने अच्छे ढंग से से कहा जा सकता है सुना जा सकता है।नमन अटल जी।


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