सरकारी महिला कर्मी और ट्रांसफर

लेखक- संजय दुबे

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देश के किसी भी उच्च न्यायालय द्वारा दिए निर्णय को अन्य न्यायालयों के द्वारा नजीर के रूप में प्रस्तुत कर समान न्याय की उम्मीद की जाती है। केरल उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में महिला कर्मचारियों के असमय, अकारण ट्रांसफर किए जाने पर आपत्ति करते हुए दो महिलाओ के ट्रांसफर को निरस्त कर दिया। इसके साथ साथ ही बेदिल सरकारों को नसीहत भी दी है कि सरकारें केवल आदेश का बहाना कर अमानवीय न हो विशेष कर महिला कर्मचारियों के प्रति।

 दो महिलाओ जिन्होंने उच्च न्यायालय केरल की शरण ली थी उनमें से एक का बच्चा 11वी में पढ़ता है इस महिला का ट्रांसफर शिक्षा के आधा सत्र बीत जाने के बाद किया गया था और दूसरी महिला का बच्चा महज 6साल का है और अस्थमा रोग से पीड़ित है।

 आज के दौर में शासकीय सेवा में महिलाओ का प्रतिशत लगातार बढ़ते जा रहा है।ये महिला सशक्तिकरण का जागृत स्वरूप है जिसकी प्रशंसा होनी चाहिए। समाज के सामाजिक ढांचे में महिला का विवाह, संतोत्पत्ति, संतान की देखभाल, घर में पति के परिवार के सदस्यों की देखभाल की जिम्मेदारी के अलावा अपने परिवार के भी सदस्यों की जिम्मेदारी होती है। इसके बाद भोजन व्यवस्था को सुबह शाम भी देखना उनके सहज दायित्व में आता है। घर की देख भाल की जिम्मेदारी इन्ही की होती है।किसी पुरुष को एक सप्ताह ये जिम्मेदारी दे दी जाए तो संभवतः वह पुरुष डिप्रेशन में चला जायेगा। इतने के बावजूद अपने सरकारी कामकाज का दायित्व निभाना महिलाओ के लिए एक रस्सी पर नटनी के समान संतुलन स्थापित ही करना है।

इन बातो को केरल के उच्च न्यायालय के न्यायधीश ने न केवल संज्ञान में लिया बल्कि आदेश में उल्लेख भी किया कि महिलाओ के प्रति सरकार को पुरुषो की तुलना में ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण पुरुष के लिए कम कठिन है तुलनात्मक रूप से महिलाओ की जगह।अकेली महिला को किराए का घर देने में भी मकान मालिक सहजता से तैयार नहीं होते है। ट्रांसिट हास्टल हर जगह है नही।महिलाए बेफिक्री से होटल में रुक नहीं सकती। उसके भोजन की तात्कालिक समस्या अपनी जगह है। इसके अलावा उनकी शारीरिक समस्याओं के साथ साथ सुरक्षा की भी बात है।प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अधिकारियों के लिए सरकारी आवास, सर्किट हाउस, रेस्ट हाऊस आदि की सुविधा उपलब्ध रहती है लेकिन देश में तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों में महिलाओ की संख्या अच्छी खासी है। 

सरकार में बैठे उच्च अधिकारी ये बात तो आसानी से जानते है कि सभी जगहों में स्कूल मध्य जून में खुल जाते है। सभी सरकारी कर्मचारी के बच्चो की शिक्षा प्रमुख है, ऐसे में हर साल के मई माह में ट्रांसफर करने में क्या दिक्कत है?जुलाई -अगस्त तक ट्रांसफर होते है। छत्तीसगढ तो पिछले सालो में अनोखा राज्य बन गया था जहां अक्तूबर में ट्रांसफर हुए।

दरअसल ट्रांसफर एक उद्योग का रूप ले चुका है।इसमें विनियोग हो रहा है लाभ हानि को मद्देनजर रख कर। अपना अपना हित सधना चाहिए।इसी कारण अनेक लोग अप्रत्याशित रूप से एक कोने से दूसरे कोने फेंके जाते है। उनकी पहुंच या पकड़ न होने से ऐसे किस्से होते रहते है जो संघर्ष कर उच्च न्यायलय से राहत पा जाते है वे सरकारी अधिकारी की नजर में अपराधी हो जाते है।अधिकारी अवसर तलाशते है और समय आने पर अपनी औकात दिखाकर बताते है और जाओ न्यायालय। ऐसे अधिकारी जन्म लेते रहेंगे लेकिन न्यायालय, अपने अधिकारी को संरक्षित करने का मंदिर है। न्याय के लिए लोगो ने समझौता नहीं किया ये साहस की बात है।

केरल उच्च न्यायालय के निर्णय से सभी राज्य की सरकारें सीख ले, अपनी खामियों को दूर करे और ये माने कि सरकारी महिला कर्मी की अपनी बाध्यताएं है जिस पर मानवीय संवेदना के साथ विचार करना जरूरी है


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