500 वर्ष बाद राम राज्य
लेखक- संजय दुबे
500 वर्ष के वनवास के बाद राम राज्य
जीवन के चार आश्रम को 25-25वर्ष में विभाजित किया गया है। ये आश्रम आज के नहीं है बल्कि उस युग के है जब ईश्वरीय सत्ता इस धरा में विद्यमान थी। राष्ट्र और सम्राट की अवधारणा में हमने ईश्वर को व्यक्ति रूप में राम को जाना जो व्यक्ति के रूप में माता कौशल्या और पिता दशरथ की पहले संतान थे। वे पुत्र के रूप में कैकई, सुमित्रा के भी लाडले पुत्र बने। लक्ष्मण,भारत और शत्रुघ्न के बड़े भाई बने।
बुराई पर अच्छाई की जीत की अवधारणा को लेकर राम से लेकर मर्यादा पुरुषोत्तम राम की यात्रा में राम, वशिष्ठ के शिष्य भी बने, सीता के पति बने। राजा बनने से पहले वनवासी बने। वंचितों के सहयोगी बने। हनुमान स्वयं उनके सेवक बने। सुग्रीव,अंगद, विभीषण सहयोगी बने और अंततः रावण का वध कर राम ने मर्यादित व्यक्ति के रूप में आदर्श स्थापित किया।
मेरे जीवन के बाल्यकाल के सातवे वर्ष में पहला मंदिर जाना तो तो छिंदवाड़ा का राम मंदिर था। हमारे घर के पास मंदिर होने का फायदा ये मिला कि राम, भगवान के रूप में कैसे थे, इसको देखने का अवसर मिल गया।
सम्मोहित करने वाली अधरो पर मुस्कान, राजीव लोचन, वैभव के आभूषण, गरिमापूर्ण वस्त्र, अलौकिक नयनाभिराम दर्शन होते थे।ईश्वरीय राम के, शक्ति साध्य के रूप में धनुष बाण रखे राम का ओज देखते बनता था।
वक्त गुजरते गया, विद्यार्थी जीवन में ठौर बदलते गए लेकिन घर के मंदिर में रामचरित मानस होने के नाते उसके पाठन की लालसा ने राम को थोड़ा और भी जानने में सहयोगी हो गई। राम लीला, अखंड रामायण पाठ, ने राम को और भी अपना बनाया। ऐसे समय में गांव जाने पर राम राम के संबोधन ने ये भी बताया कि राम कितने आम है जो हर व्यक्ति के मन में है, मुख से निरंतर उच्चारित है।
जब समझ आई तो राम के जन्मभूमि के विवादास्पद होने की जानकारी मिली। प्रतियोगी परीक्षाओं में अभ्यार्थी होने का अवसर मिला तो ये जानकारी हुई कि दसवी शताब्दी तक देश में केवल मंदिर हुआ करते थे। ग्यारहवीं शताब्दी के बाद देश के रियासतों में चोर डाकुओ का आगमन हुआ।ये केवल लूटने आते थे। धीरे धीरे इनका साम्राज्य भी हुआ और इनके द्वारा दो लक्ष्य निर्धारित किए गए पहला देश के वैचारिक स्मारक के रूप में मंदिरों का विध्वंस और अपने धार्मिक स्मारकों का निर्माण दूसरा धर्मांतरण। देश की सीमा न हो कर रियासतों की सीमाएं थी इस कारण कमजोर शासकों ने दुरुभि संधि की। इसके चलते अगले नौ दशक देश की रियासते केवल आक्रमण कारियो के हाथो रही। संस्कृति प्रभावित हुई और देश जब आजाद हुआ तो बड़ी बेईमानी हुई राष्ट्र के नए शासकों से जिन्होंने धर्म और संप्रदाय के आधार पर विभाजन को एक तरफ से स्वीकार किया।1977तक देश धर्म सापेक्ष राष्ट्र था। 42वे संशोधन में निरपेक्ष हो गए। इन्ही सालो में देश की धार्मिक संस्कृति के प्रतीक राम का मंदिर विवादो के साए में रहा। मंदिर की जगह बावरी मस्जिद बनी थी ये सर्वोच्च न्यायालय ने प्रमाणित किया और इसके बाद नए युग की शुरुवात हुई जिसका चरम कल पूर्ण हो जायेगा। टेंट में रहने वाले राम, भव्य मंदिर में स्थापित हो जायेंगे। ये देश की धार्मिक चेतना की जीत है क्योंकि जिस व्यक्ति का नाम हर व्यक्ति के आदर संबोधन में है वे निर्वासन के 500साल के बाद घर पधार रहे है।
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