घड़ी घड़ी न देखिए

लेखक - संजय दुबे

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  लोकतंत्र में अनेक राजनैतिक दल जन्म लेते है, जनता के सामने आते है अपनी नीति परोसते है, चुनाव में किस्मत आजमाते है। इसके लिए राजनैतिक दल अपनी पहचान बनाने के लिए मेनिफेस्टो जारी करते है।झंडा चयनित करते है ।चुनाव चिन्ह चुनाव आयोग से प्राप्त करने के लिए प्रयास करते है। जो राजनैतिक दल चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित प्रतिशत में वोट पा जाते है उनके चुनाव चिन्ह पंजीकृत हो जाते है।

 भारत का एक राज्य है महाराष्ट्र, इस राज्य को दो राजनैतिक दलों के जन्म और विभाजन के लिए याद रखा जा सकता है। पहला राजनैतिक दल है शिवसेना और दूसरा दल है एनसीपी याने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी। दोनो दल अपने आंतरिक कलह के चलते दो फाड़ हो चुकी है। 

शिवसेना के उद्धव ठाकरे भले ही मुख्य मंत्री बन गए लेकिन अपनी पार्टी को सम्हाल नहीं पाए और असली नकली शिव सेना की लड़ाई अदालत गलियारे में पहुंच गई और अंततः उद्धव ठाकरे को असली नहीं माना गया। इसका असर ये हुआ कि शिवसेना का ख्याति प्राप्त चुनाव चिन्ह "धनुष बाण"एक नाथ शिंदे के हिस्से में आ गया।

  उद्धव ठाकरे को मुख्य मंत्री बनाने में महाराष्ट्र के राजनीति के चाणक्य शरद पवार की भूमिका। महत्वपूर्ण थी। उनको गठबंधन सरकार का शकुनि माना जाता है लेकिन अपने भतीजे अजीत पवार के चाल के सामने झटका खा गए। उनके हाथ से भी घड़ी (चुनाव चिन्ह) निकल गई है। कहा जाता है कि घड़ी, घड़ी, घड़ी न देखिए वो घड़ी भी आएगी इस घड़ी के बाद।एक राज्य के सरकार में शामिल दो दलों की दुर्गति का ऐसा उदाहरण शायद ही देखने को मिलता है। दोनो दलों से बहुमत लेकर एकनाथ शिंदे और अजीत पवार निकले, दोनो ने उद्धव ठाकरे को न केवल मुख्य मंत्री पद से अपदस्थ कर दिया बल्कि शरद पवार के पावर को भी फुस्स कर दिया। 

आगामी लोक सभा चुनाव में नकली शिव सेना को "मशाल" और शरद पवार की नकली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को "तुरही बजाता युवक" चुनाव चिन्ह मिला है।

अजीत पवार "घड़ी" लेकर और एकनाथ शिंदे" धनुष बाण"लेकर एनडीए के गठबंधन में है तो उद्धव ठाकरे और शरद पवार इंडिया गठबंधन के हिस्से है। महाराष्ट्र के चुनाव में दो गठबंधन में छह राजनैतिक दल भाग्य आजमाएंगे लेकिन दो दल जो पिछले लोकसभा चुनाव में जिस चुनाव चिन्ह को लेकर उतरे थे उस चुनाव चिन्ह सहित अपने बहुमत के विधायको से भी वंचित हो चुके है


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