राम जैसे संयमी को जीवन में युद्ध करना पड़ा..
लेखक- संजय दुबे
संसार के सारी स्थापित संस्कृति में हमारी भारतीय संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है ।इसका प्रमाण भी है। आप उठाकर देख ले दीगर संस्कृति में ईश्वर की संख्या सीमित है, धर्म ग्रंथ की संख्या सीमित है, ज्ञानी व्यक्तियों की संख्या सीमित है लेकिन भारतीय संस्कृति को उठाकर देखे तो हमारे पास दो महाग्रंथ है, चार वेद है, अठारह पुराण है, बीस स्थापित स्मृतियां है। कोई भी दीगर धर्म इतने साहित्यिक रूप से संपुष्ट नहीं है।
दो महाग्रंथ में रामायण और महाभारत है जिसमे दो मनुष्यो के कर्तव्य निर्वाह की संस्कृति ने दुनियां भर के लोगो को अयोध्या और मथुरा आने पर विवश कर दिया है। भौतिक संसाधनों से भरपूर पाश्चात्य संस्कृति के लोग भारत में आकर भारतीय दर्शन के दो प्रवाहक राम और कृष्ण में शांति खोज रहे है। आज राम नवमी है याने राम का जन्म दिन। कौशल्या के राम का ये जन्मदिन इस साल विशेष जन्म दिन है क्योंकि सदियों से लुटेरों आक्रमणकारियों के चलते इस देश के जन प्रतिनिधि भी विदेशी हो चले थे। अनेकता में एकता का झूठा नारा दे, सहिष्णुता का पाठ पढ़ाकर भीरू बनाने की साजिश अंततः खत्म हुई। मैं निसंकोच रूप से स्वीकार करता हूं कि यदि बाला साहेब ठाकरे ने हिंदुत्व को स्थापित नही किया होता तो देश में आज भी अयोध्या का नाम फैजाबाद होता और आज भी एक टेंट में राम निर्वासित होते। बहरहाल सार्वजनिक रूप से तथाकथित बावरी मस्जिद विध्वंस का श्रेय भी बाला साहेब ठाकरे ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया और परिणीति ये रही कि भगवान राम लला के रूप में 22जनवरी 2024को अयोध्या में स्थापित हो गए इस कारण राम का ये जन्मदिन विशेष है।
एक वाक्य है कि हर व्यक्ति में दस बीस आदमी होते है आपके भीतर का कौन सा आदमी सामने वाले के किस आदमी से मिलता है मायने रखता है। राम भी बहुरूपिए है मेरे विचार से, जो अन्य लोगो से मेल खाए जरूरी नहीं है। मैं राम को दशरथ के आदर्श पुत्र, कौशल्या के प्रिय बेटे, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के आदर्श भाई, सीता के लिए कठिन राम, हनुमान के भक्ति के प्रतीक , सुग्रीव के सहयोगी, विभीषण के शरणदाता,और रावण के संहारक से परे एक संयमी व्यक्ति मानता हूं जिसमे संयम का इतना विशाल दायरा रहा कि उनको क्रोध कभी कभी ही आया लेकिन जब आया तो महज प्रत्यंचा चढ़ाने से ही समुद्र में ऐसा ज्वार उठा कि सारा समुद्र मंथित हो उठा। जलचर व्यथित हो गए। सारा संसार अचंभित हो गया और परिणाम ये हुआ कि समुद्र को शरणागत होना पड़ गया। रावण को मारने के लिए भी राम संयमित ही रहे थे क्रोधित नही थे।
अब सार की बात, आपके जीवन में भी अनेक बार हठधर्मी समुद्र आड़े आते है, जिन्हे अपनी शक्ति का गुमान होता है, वे आपके संयम की परीक्षा लेने के लिए आपकी विनती को आपकी कमजोरी मानते है। ऐसे में राम सिखाते है कि विभीषण और लक्ष्मण दोनो के बताए तरीके को स्वीकार करो और विनय शीलता जहां पर दीन हो चले तब शस्त्र उठाओ और निर्णय करो।
राम नवमी की यही शुभकामनाएं होनी चाहिए
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