रायबरेली की राय क्या होगी...!
लेखक- संजय दुबे
दौड़ने और भागने में क्या फर्क होता है?ये प्रश्न अक्सर सेना में भर्ती होने वाले प्रत्याशियों से पूछा जाता है। इसका सीधा सा उत्तर है कि बिना डर के तेज कदम से चलना दौड़ है और डर के तेज चलना भागना है। एक और शब्द है - पलायन, इसका अर्थ होता है किसी विवशता के चलते निश्चित स्थान को छोड़ कर अन्य स्थान पर चले जाना।
भागने और पलायन ,दोनो शब्दो का उपयोग रायबरेली लोकसभा के कांग्रेस के पिछले और अब के प्रत्याशियों को लेकर हो रहा है।
रायबरेली लोकसभा सीट कांग्रेस की जेबी सीट कहा जाता है। 1952से लेकर 2019के सारे लोक सभा चुनाव में केवल 1977, में जनता दल के राज नारायण 1996और 1998 में भाजपा के अशोक सिंह की जीत को छोड़ दे तो गांधी परिवार के फिरोज गांधी, इंदिरा गांधी,और सोनिया गांधी का वर्चस्व ही रहा है। एक परिवार का 72साल में 54 साल राज होना एकाधिकार ही माना जा सकता है। गांधी परिवार को छोड़ कर सतीश शर्मा अन्य कांग्रेसी प्रत्याशी रहे जो राय बरेली से विजयी रहे है।1989
से उत्तर प्रदेश के राजनैतिक परिदृश्य में परिवर्तन की बयार बहना शुरू हुई।35साल से कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सरकार बना नही पाई है। नारायण दत्त तिवारी,आखरी कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे थे।
बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपना जनाधार इतना बढ़ा लिया है कि कांग्रेस 80 लोकसभा में 1और विधानसभा के 404 सीट में सिर्फ 2 सीट जीत सकी है। रामपुर विधानसभा क्षेत्र से आराधना मिश्रा और फरेंदा से वीरेंद्र चौधरी ही कांग्रेस का खाता खुलवा सके। 404विधानसभा सीट में राष्ट्रीय स्तर की पार्टी के 387प्रत्याशियों की जमानत जब्त होना ये सिद्ध कर रहा है कि कांग्रेस में कार्यकर्ताओं का ही अकाल पड़ चुका है।
चलिए, रायबरेली चलते है। इस बार इस लोकसभा सीट में कभी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी ने कल नामांकन पत्र जमा किया है। वर्तमान में राहुल गांधी वायनाड लोकसभा का नेतृत्व कर रहे है और इस बार भी प्रत्याशी है। कांग्रेस से राहुल गांधी इकलौते प्रत्याशी है जो दो लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे है। जहां तक मुझे याद है बहुत कम प्रत्याशी एक से अधिक लोकसभा सीट से चुनाव अब लडा करते है। नरेंद्र मोदी 2014लोकसभा चुनाव में बड़ौदा और वाराणसी से चुनाव लडे और जीते थे। राहुल गांधी 2019में अमेठी और वायनाड से चुनाव लडे।अमेठी में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी, जो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे उनको 55हजार मतों से हरा कर देश को ये संदेश दिया था कि स्मृति बने रहे।
इस बार स्मृति आई तो अमेठी में डटी रही। कांग्रेस जिसे गठबंधन के चलते 17लोकसभा सीट मिली उसमे अमेठी और रायबरेली भी है। इन दोनो सीट के लिए नामांकन के अंतिम दिन तक रोमांच बनाए रखा कि कौन बनेगा प्रयाशी, तीन गांधियों राहुल,प्रियंका और वरुण गांधी की चर्चा थी।एक बारगी लगा कि सोशल मीडिया राहुल गांधी को अमेठी से खड़ा करा कर ही मानेंगे लेकिन न तो प्रियंका और न ही वरुण फाइनल हुए। संभवतः परिवारवाद के आरोप के डर से भाई बहन में से एक का नाम तय किया गया।राहुल गांधी अमेठी से पराजय के डर से भाग गए या पलायन कर गए,इसका आंकलन 4जून को होगा।
रायबरेली का अतीत को झांके। 2019 कांग्रेस की नाक उत्तर प्रदेश में बचाने का काम सोनिया गांधी ने किया था। वे इकलौती कांग्रेस प्रत्याशी थी जिन्हे जीत मिली थी। इस बार पांचवे गांधी, फिरोज,इंदिरा,राजीव और सोनिया के बाद राहुल राय बरेली से उम्मीदवार है। सोनिया गांधी 2019का लोकसभा चुनाव भाजपा के वर्तमान प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह से 1.67लाख मतों के अंतर से जीती थी। इस बार दिनेश प्रताप सिंह के सामने राहुल गांधी है।
राय बरेली पांच विधानसभा क्षेत्र बहरवां,हरचंदपुर, राय बरेली, सरेनी और ऊंचाहार, का लोकसभा का क्षेत्र है। 2022के विधान सभा चुनाव में रायबरेली छोड़ चारो विधानसभा में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी विधायक बने है। रायबरेली से भाजपा की अदिति सिंह जीती है याने कांग्रेस शून्य है। पांचों विधानसभा क्षेत्र में कुल दस लाख मत पड़े थे जिसमे कांग्रेस को कुल जमा एक लाख चालीस हजार मत मिले है। बछरवां( 56757और सरेनी(42702)को छोड़ दे हरचंदपुर, रायबरेली और ऊंचाहार में मतों के लाले पड़ गए थे। तीनों विधान सभा में कांग्रेस के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।
प्रश्न ये उठ रहा है कि क्या समाजवादी पार्टी को मिले तीन लाख मत एक तरफा राहुल गांधी को मिलेंगे? दूसरी तरफ भाजपा को मिले तीन लाख तीस हजार मत दिनेश प्रताप सिंह को रिपीट होंगे?
राहुल गांधी का राय बरेली से जीतना साधारण बात होगी लेकिन खुदा न खास्ता हार गए तो उत्तरप्रदेश से कांग्रेस शून्य में खड़ी हो जायेगी
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