परशुराम के बहाने

लेखक- संजय दुबे

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 हर युग में सत्ता के दर्प में राज कर अपने को सारे शक्तिमान मानने वालो की परंपरा रही है। राम और कृष्ण को भी ऐसे ही अहंकार में डूबे लोगो का संहार करने के लिए मानव रूप में जन्म लेना पड़ा। जब भगवान को मानव रूप में जन्म लेकर अहंकारियो का नाश करना पड़ा तो अनेक ऋषि भी ऐसे हुए जिन्होंने मानव होकर अहंकारी मानवों का संहार किया।

 आज ऐसे ही ऋषि परशुराम का जन्मदिन है। उनका जन्म कितने पवित्र दिन को हुआ इसका उदाहरण ये है कि हिंदू धर्म में इस दिन को गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने के लिए सबसे शुभ मुहूर्त माना जाता है।

 ऐसा माना जाता था कि क्रोध क्षत्रियों का श्रंगार होता है। उन्हे सामयिक रूप से आवेश में आना सिखाया जाता है। युद्ध में शत्रुओ का नाश करने के लिये उन्हे घुट्टी के रूप में क्रोध करना भी सिखाया जाता था। कुछ ऐसे लोग भी हुए जिनके पास ज्ञान की कमी रही लेकिन खुद को सर्वज्ञाता समझ कर ऐसे कार्य किए जिनसे उनके ज्ञाता होने का काम मूर्खतापूर्ण कार्य का सार्वजनीकरण हुआ। ऐसे लोगो के वंशधारी थे हैह्य 

 कुल के राजा, इन लोगो को ऋषियों से एक प्रकार का मनभेद था। परशुराम के परिवारजनों को महज इस कारण परेशान करते क्योंकि अहंकार समा गया था। 

कहा जाता है कि दुनिया में सबसे खराब क्रोध ब्राह्मण का होता है। एक तो गुरु परंपरा का वाहक होने के कारण क्रोध को क्षत्रियों का गुण मानकर स्वीकार नहीं करता और अगर कर लिया तो समय के अनुसार परशुराम भी बनता है और चाणक्य भी।

 परशुराम ने भी ब्राह्मण होते हुए क्रोध को अपने में समाहित किया और हेह्य वंश का समूल नष्ट कर दिया। एक व्यक्ति का क्रोध कितना होता है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि परशुराम को भगवान शिव से मिलने के लिए गणेश ने रोका तो परशुराम ने गणेश का एक दांत तोड़ दिया।

  आदिकाल में क्षत्रियों को शस्त्र विद्या सिखाने वाले गुरुओं की परंपरा में परशुराम का नाम सर्व प्राथम्य है। भीष्म, द्रोण और कर्ण जैसे महारथी उनके शिष्य रहे। ऐसे परशुराम के प्रवर्तको के द्वारा आज भी अहंकारियों को समूल नष्ट करने का प्रण जारी है।


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