पुणे, पोर्शे कार और अब मां
लेखक- संजय दुबे
पुणे में घटित पोर्शे कार दुर्घटना की आज तेरहवीं है। हिंदू धर्म के अनुसार दो मृत आत्मा के घर में आज तेरहवीं भी होगी। दो घरों केएक युवक और एक युवती ,एक नशेबाज नाबालिग के सुनियोजित लापरवाही के चलते अपना जीवन को बैठे।
19मई 2024को पुणे में घटित दुर्घटना ह्रदय विदारक थी, इससे ह्रदय विदारक घटना रही, इस मामले को बहुत ही स्तरहीन ढंग से सुलझाने और उलझाने की प्रक्रिया। शुक्र है कि कलयुग में कुछ लोग भी है जो किसी अज्ञात के न्याय के लिए लड़ते है वह भी भ्रष्ट व्यवस्था से, जो पैसे के खातिर अपना जमीर और ईमान बेचने के लिए खुली हीरामंडी में बैठते है।
मैने पहले भी पुणे की जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड पर उंगली उठाई थी।ये आपत्ति भी किया था कि नियमित प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के रहते एक सदस्य द्वारा कैसे अवकाश के दिन निबंध लिखने,यातायात पुलिस को सहयोग और दुर्घटना करने के बाद आगे दिखने या होने वाली दुर्घटना में मददगार बनेगा और दारू छुड़वाने के लिए काउंसिलिंग की शर्त रखकर 15घंटे में जमानत दे देगा?
भला हो महाराष्ट्र सरकार का जो देर से सही जन मानस के पूर्णतः दबाव में आकर अनिच्छा से ही सही एसआईटी गठित की।एसआईटी भी जन मानस के उग्र व्यवहार को समझी और अब स्थिति ये है कि प्याज के परत के समान एक के बाद एक छिलके उतर रहे है।
एक परिवार अपने बालिग सदस्य के अपराध को छुपाने या अपराध से बचाने के लिए सारे वैध और अवैध तरीके अपनाता है यहां तो मामला नाबालिग का था। पुणे के बिल्डर परिवार को दो युवक युवती के गैर इरादतन हत्या के लिए नशे की स्थिति में दौ सौ किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से ढाई करोड़ की पोर्शे कार चलाने वाले सदस्य को बचाने के लिए न्यायिक तरीके से प्रयास करना था।
उनको इस दुर्घटना में मृत युवक युवती के परिवार से संपर्क करना था।संवेदना व्यक्त करना चाहिए था। सुना है कि छह सात हजार करोड़ रुपए की पार्टी है। प्रभावित परिवार को दो संभावनाओं के समय से पहले अंत का आर्थिक आंकलन कर मदद का प्रस्ताव रखना था लेकिन पैसे की दूसरे तरह की गर्मी ने पूरे परिवार का तेल निकाल कर रख दिया। सबसे पहले पुत्र की जमानत रद्द हुई, पंद्रह दिन के लिए किशोर सुधार गृह में भेज दिया गया। पुलिस स्टेशन में पिज्जा खिलाने वाले दो पुलिस कर्मी निपट गए। एस आई टी की जिम्मेवारी ये बात भी पता लगाने की है कि पुलिस स्टेशन में लाए गए पिज्जा का भुगतान किसने किया? संभावना है कि क्राइसिस मैनेजमेंट यही से शुरू हुआ था।फंडिंग भी यही पहले की गई होगी। थाने वालो को चौबीस घंटो के भीतर कोर्ट में पेश कर देते।कोर्ट किशोर सुधार गृह भेज देता। इस मामले में नाबालिग के पिता जी धरा गए।
अगला डेमेज कंट्रोल जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में किया जाना था। प्रथम श्रेणी के नियमित न्यायधीश की अनुपस्थिति में बिना कोरम (कम से कम तीन सदस्य) पूर्णता के एक मेंबर साहब डा दानवडे अवतरित हुए और एक ऐसा ऐतिहासिक निर्णय सुनाया कि सारा देश स्तब्ध रह गया। निर्णय के हर शब्द पैसे की स्याही में डूबे दिखे। उधर घर के ड्राइवर को अगवा कर उसे वाहन चलाने के लिए दोष सिर लेने के मामले में दादा जी जेल पहुंच गए।
इधर साक्ष्य मिटाने के लिए दृश्यम 2अलग दौड़ रही थी। नाबालिग नशे की हालत में न मिले इसके लिए ब्लड सैंपल महत्वपूर्ण साक्ष्य था। इसे नष्ट करने के लिए जिस अस्पताल में सैंपल भेजा गया था( एस आई टी ये भी जानकारी ले कि पुलिस विभाग द्वारा सेंपल जांच के लिए अस्पताल अधिकृत था या नहीं)। यहां दो परीक्षक जो डॉक्टर है तीन लाख रुपए के रिश्वत लेकर सेंपल नष्ट कर किसी महिला का ब्लड का नमूना परीक्षण कर रिपोर्ट दे दिए थे। दोनो डॉक्टर भी जेल पहुंच गए।
जांच में संभावित ब्लड सैंपल देने वाली महिला भी कल रात मिल गई। निश्चित रूप से आपकी आंखे फटी की फटी रह जायेगी।। ये नाबालिग की मां थी जिन्होंने अपने बच्चे को बचाने के लिए रिस्क लिया था। मानवीय संवेदना की दृष्टि से देखे तो गलत नहीं है लेकिन किसी अपराध के साक्ष्य को मिटाना गंभीर अपराध है।इस कारण परिवार का तीसरा सदस्य भी जेल पहुंच गया है। घर को आग घर के चिराग से लगी है।कितने घर जलेंगे और कितनो के घर के चिराग ऐसे बुझेंगे?
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