महिलाओ ने झूठे वादों पर भरोसा नहीं किया !
लेखक- संजय दुबे
जिस प्रकार सभी पूर्वानुमान लगाने वालो ने अपने नंबर दिए है उनके हिसाब से भाजपा तीसरी बार सरकार बनाने के लिए अग्रसर होते दिख रही है। इस बार का लोकसभा के चुनाव में सबसे बड़ा निर्णायक तत्व न तो बेरोजगारी थी, न तो धर्म था, न संप्रदाय था, न जाति थी बल्कि लैंगिक अभिव्यक्ति थी याने आधी आबादी का निर्णय ही सरकार बनाने में निर्णायक थी। इस बात को लिखने में किसी को भी गुरेज नहीं होना चाहिए कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय की महिलाओ ने न केवल मतदान में पुरुषो से ज्यादा उत्साह दिखाया बल्कि अपने द्वारा दिए गए जनमत से भाजपा को हैट्रिक लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आमतौर पर राजनैतिक दल चुनाव में मतदाता को लैंगिक रूप से अंतर नहीं करते हुए केवल सामान्य मतदाता मान लेते है लेकिन 2024के चुनाव में पुरुषो की तुलना में महिलाओ को रिझाने के लिए दो तरीके से जमीनी हकीकत और भविष्य के लिए वादों की बात हुई।
सबसे पहले भविष्य के लिए वादों की बात करे तो कांग्रेस ने महिलाओ (चुनाव के बाद कमजोर वर्ग ) को महीने में 8333रूपये देने की तारीख तक की घोषणा कर दी थी। इसके पलट भाजपा महिलाओ को महिलाओ 1000रूपये direct transfer policy के द्वारा दे रही है ।एक लाख की तुलना में बारह हजार महज डेढ़ महीने का भुगतान था।इस मायने से आधी आबादी के लगभग सत्तर फीसदी महिलाओ याने छियालिस करोड़ मतदाताओं में से बत्तीस करोड़ मत कांग्रेस को मिलना चाहिए थे। चार जून को इस बात का खुलासा हो जाएगा कि कांग्रेस को कितने मत मिले। एक अजीब बात ये भी थी कि कांग्रेस देश की देश की 223सीट पर चुनाव नही लड़ी।सीधा प्रश्न ये उठता रहा कि इन लोकसभा सीट की कमजोर वर्ग की महिला एक लाख रुपए नही पाएंगी। भले ही देश के अंग्रेजी (गुलामी) नाम पर इंडिया गठबंधन बना था लेकिन विचित्र किन्तु सत्य वाली बात थी कि दिल्ली में आप के साथ लड़ने वाली कांग्रेस पंजाब में विरोध में खड़ी थी। ये एक प्रकार का बेमेल विवाह था जिसमे दो लोगो को आपस में भरोसा नहीं था तो परिवार और समाज कैसे भरोसा करता वह भी महिलाए! आर्थिक रूप से की गई घोषणा और यथार्थ में फर्क दिख रहा है।
दूसरी बात थी महिला की घरेलू और बाहरी सुरक्षा की, इस बात को भाजपा ने महिलाओ को आवास,गैस सिलेंडर और शौचालय देकर घरेलू सुरक्षा का कवच पहना ही दिया था। बाहरी सुरक्षा के मामले में भी कानून व्यवस्था सुधरते दिखी। कानूनी अव्यवस्था के लिए कुख्यात उत्तर प्रदेश और बिहार में कमोबेश बेहतरीन व्यवस्था बनी। नीतीश कुमार बीच में तेजस्वी यादव के साथ गए तो बिहार में कानून व्यवस्था पर एक परिवार की दबंगई दिखने लगी सो पलट कर वापस आ गए। उत्तर प्रदेश में तो गुंडे भगोड़े हो गए है। योगी की सरकार की तरह उम्मीद हर राज्य में की जा रही है। इंडिया गठबंधन के इस मामले में कमजोर साबित हुई और इस विषय पर मौन ने महिलाओ के मन में अविश्वास भर दिया।
पुरुषो की तुलना में महिलाए ज्यादा धार्मिक होती है।घर में पूजा पाठ, धार्मिक आयोजन की जिम्मेदारी उन्ही की होती है। देश में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और राम लला की स्थापना ने देश में सनातन और हिंदुत्व को पुख्ता किया। कांग्रेस सहित दीगर पार्टियों के आमंत्रित लोगो का स्थापना में न जाना आम महिलाओ को खला। ये बात तो पुरुषो की खराब लगी कि देश के राजनैतिक दलों ने भगवान को भी पार्टी का बता कर बहिष्कार कर दिया।
ये देश 1947से विभाजन की त्रासदी से गुजर रहा है। महाराष्ट्र में बाल ठाकरे के शिव सेना के अम्युदय और बावरी मस्जिद विध्वंस के बाद देश में उग्र हिंदुत्व का प्रसार ने राजनैतिक समीकरण को बदलना शुरू किया। नरेंद्र मोदी का जालीदार टोपी न पहनने की सार्वजनिक इंकार ने उनको गुजरात राज्य से निकाल कर देश में प्रतिष्ठित कर दिया।एक बार नहीं दो बार नहीं तीसरी बार भी। केवल हिंदू महिलाओ ने ही नहीं बल्कि मुस्लिम महिलाओ ने भीअपने को बेहतर बनाने की मंशा में हिम्मत तो की है। जिस मुश्लिम परिवार में मां, पत्नी, बेटी तीन तलाक की त्रासदी से गुजर रही है उस परिवार का पुरुष सदस्य भी छुपे तौर पर भाजपा के साथ खड़े है।
यदि सभी एग्जिट पोल के अनुमान सच में बदलते है तो विपक्ष में आगामी पांच साल काटने वाली राजनैतिक पार्टियों को चिंतन करने की सख्त जरूरत है कि वे गंभीर मनन करे कि जाति से ऊपर की ऐसी बाते जो देश की जनता के लिए केवल आर्थिक स्वालंबन ही नही स्वाभिमान का भी बोध कराए तभी 2029में बात बनेगी।
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