सपने को सच करते स्वप्निल
लेखक - संजय दुबे
सतारा और कोल्हापुर महाराष्ट्र के दो शहर है जिनकी आपस में दूरी 122 किलोमीटर है। ये दूरी दो खिलाड़ियों के बीच की भी है जिन्होंने 1952 और 2024ओलंपिक खेलों में देश का नाम रोशन किया है। पहले है के डी जाधव जिन्होंने 1952के हेलेंस्की ओलंपिक खेलों मे आजाद भारत की तरफ से पहला व्यक्तिगत मेडल दिलाया था। 72साल गुजर गए और पेरिस ओलंपिक में एक बार फिर अवसर आया जब महाराष्ट्र के स्वप्निल ने सपना सच करते हुए देश को तीसरा मेडल दिलवाया।। मेडल का रंग कैसा है ये सारगत बात नही है क्योंकि विश्व के मंच पर एक एक शूट के आगे पीछे होने से मेडल हाथ से छिटक जाता है। सेकंड के सौवें हिस्से से भारतीय ओलंपिक संघ की वर्तमान अध्यक्ष पी टी उषा मेडल नही जीत पाई थी। I कारण ब्रॉन्ज मेडल भी गोल्ड मेडल के बराबर ही हैसियत रखता है।
भारत के प्रतिभावान खिलाड़ियों से बहुत उम्मीद थी कि वे मेडल की संख्या खेल के शुरु होते ही बढ़ाना शुरू कर देंगे लेकिन सिंधु, निखत जरीन जैसे खिलाड़ियों से निराशा हाथ लगी।ऐसे में भारत के तीन शूटर्स ने वही पर निशाना लगाया जहां पर देश की निगाहे थी। मनु भाकर और सरबजोत p 2022 एशियाड खेलो में 50मीटर थ्री पोजीशन राइफल में टीम स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता था। वे विश्व शूटिंग चैंपियनशिप में भी ब्रॉन्ज मेडल जीत चुके है। 2015के नेशनल चैंपियनशिप में गगन नारंग और चैन सिंह जैसे स्थापित शूटर्स को पीछे कर गोल्ड मेडल जीता था। कॉमन वेल्थ खेलो में भी स्वप्निल के हिस्से में ब्रॉन्ज मेडल है। इतनी उपलब्धियों के बाद ओलंपिक खेलों में पदक जीतकर देश का नाम रोशन करने वालो में स्वप्निल का नाम जुड़ गया है। भारत के बहुत कम खिलाड़ी व्यक्तिगत उपलब्धि से ओलंपिक खेलों में देश का नाम रोशन कर पाए है। 142करोड़ देश वासी स्वप्निल की जीत से गदगद है।
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