स्कूलों के लिए पाठ्यपुस्तक लेखन उन्मुखीकरण कार्यशाला प्रारंभ
- मुख्यमंत्री की पहल पर नई शिक्षा नीति के अनुरूप स्कूली पाठ्यक्रम में किया जा रहा है बदलाव
- कक्षा पहली से तीसरी एवं छठवीं के पाठ्यपुस्तक लेखन की तैयारी शुरू
- छत्तीसगढ़ पहला राज्य जो राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के अनुसार राज्य के लिए तैयार कर रहा है पाठ्यपुस्तक
- एनसीईआरटी और एससीईआरटी के विशेषज्ञ पाठ्य पुस्तक लेखन का दे रहे प्रशिक्षण
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की पहल पर छत्तीसगढ़ के स्कूलों में नई शिक्षा नीति के अनुरूप पाठ्यपुस्तकों में आवश्यक बदलाव लाने के लिए राज्य स्तरीय पाठ्य पुस्तक लेखन उन्मुखीकरण कार्यशाला आयोजित की जा रही है। कार्यशाला में अगले वर्ष से राज्य की कक्षा पहली से तीसरी और छठवीं की पाठ्य पुस्तकें बदलने की योजना है। राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद द्वारा स्थानीय न्यू सर्किट हाउस में दो दिवसीय कार्यशाला प्रारंभ हुई।
पुस्तक लेखन उन्मुखीकरण कार्यशाला में स्कूल शिक्षा सचिव श्री सिद्धार्थ कोमल सिंह परदेशी ने कहा कि फाउंडेशनल स्टेज के विद्यार्थियों को उनकी स्थानीय भाषा में पढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पाठ्य पुस्तकों में प्रैक्टिकल अप्रोच का समावेश होना चाहिए। उन्होंने कहा कि एनसीईआरटी के मार्गदर्शन का उपयोग कर इन्हें और बेहतर बनाने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए। परदेशी ने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य वर्तमान में 20 भाषाओं में काम कर रहा है और पाठ्य पुस्तकों को स्थानीयता को ध्यान में रखते हुए रचनात्मक और आकर्षक बनाया जाए।
एनसीईआरटी नई दिल्ली की पाठ्यचर्या के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रंजना अरोरा ने वर्चुअल संबोधन में कहा कि छत्तीसगढ़ पहला राज्य है जिसने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए एनसीईआरटी के साथ मिलकर राज्य के स्कूलों के लिए पाठ्यपुस्तक निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ की है। एनसीईआरटी व एससीईआरटी आपसी समन्वय से बहुत बड़ा और अच्छा कार्य करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम को बनाते समय एससीईआरटी के विशेषज्ञ राज्य के स्थानीय भाषा और विशेषताओं को शामिल करेंगे।
एससीईआरटी के डायरेक्टर श्री राजेंद्र कुमार कटारा ने कहा कि पाठ्य पुस्तकों को इस प्रकार बनाया जाना चाहिए कि वे लंबे समय तक प्रासंगिक रहें। कार्यक्रम को पद्मश्री जागेश्वर यादव सम्बोधित करते हुए कहा कि पाठ्यपुस्तक लेखन में मातृभाषा को विशेष स्थान देना चाहिए, प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होने से बच्चे इसे आसानी से समझ व सीख सकेंगे। प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होने से अपने मातृभाषा से जुड़े रहेंगे। आरआईई अजमेर की प्राध्यापक डॉ. के. वी. श्रीदेवी, एनसीईआरटी नई दिल्ली की भाषा शिक्षा विभाग की प्रोफेसर कीर्ति कपूर एवं डॉ. नीलकंठ कुमार, कला और सौंदर्य विभाग की प्राध्यापक डॉ. शर्बरी बनर्जी ने विभिन्न सत्रों में अपने विचार व्यक्त करते हुए आवश्यक सुझाव दिए। एससीईआरटी के अतिरिक्त संचालक जे.पी. रथ अपने स्वागत उद्बोधन में छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक ऐतिहासिक परिचय देते हुए अपनी बात रखी। कार्यशाला में एनसीईआरटी एवं एससीईआरटी के विषय विशेषज्ञ सहित राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से आए शिक्षाविद् शामिल थे।
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