आज की रात हुस्न का मजा आंखों से लीजिए
लेखक- संजय दुबे
एक लेखक होने के नाते मैं ये स्वीकार करता हूं कि कलम का सिपाही अज्ञात हुआ करता है। उसका लिखा सबको याद रहता है, ये मुगालता है। बहुत कम लेखक होते है जो सर्वकालीन हुआ करते है। लेखन गद्य और पद्य शैली में स्वीकृत है। पद्य में तुकबंदी होने के कारण याद करने में आसानी होती है। इसी कारण गाए जा सकने वाले गीतों का सृजन हुआ। अशिक्षा के बावजूद गीतों ने अनपढ़ो को भी गाने का अवसर दिया।
गीत को मधुर बनाने के संग+गीत का आविष्कार हुआ। अनगिनत वाद्य यंत्र का निर्माण ये बताता है कि अन्वेषण की दुनियां कितना विस्तार लिए हुए है।
गीतों के मधुर गायन के लिए ऐसे पुरुष स्त्री खोजे गए जिनकी आवाज ही सुरीली हो।अब के दौर में ये बात मायने नहीं रखती।जो गा ले वो गायक है। भारतीय फिल्मों में गीत संगीत, कथानक के बराबर या कभी कभी कथानक से अधिक महत्वपूर्ण हुए है। अनेक फिल्मे कर्णप्रिय गीत संगीत के कारण अविस्मरणीय है। इसके अलावा नृत्य और प्रस्तुतिकरण भी मायने रखता है। गीत, संगीत के साथ गाने में भाव लाने का काम अभिनेता अभिनेत्री का होता है। पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री के नृत्य और गायन को पुरुषों ने शौक तो स्त्रियों ने हिराकत से देखा है। फिल्मों को चलाने, दौड़ाने के लिए नायिका ,नायक से ज्यादा वजनदार इसी कारण है।आकर्षक नायिका न होने से फिल्म को सार्थक या समांतर सिनेमा का दर्जा देकर, राष्ट्रीय पुरस्कार की श्रेणी में डाल दिया जाता है।
हाल ही में एक फिल्म आई है।स्त्री-2। इस फिल्म में एक आइटम गीत(song) है। जिसके शब्द,गायन और संगीत के साथ नायिका के प्रस्तुतिकरण ने समां बांध दिया है। मै गीतकार को कच्चे मिट्टी का कारोबारी मानता हूं। जब तक गीत में संगीत का पानी न मिले गायन का शिल्प न लगे और भाव भंगिमा की परत न चढ़े साथ ही साज सज्जा आकर्षक न हो तो बात अधूरी ही रहती है।
अभिषेक बनर्जी का गीत "आज की रात मजा हुस्न का लीजिए"को पहले पूरा पढ़ लेते है:-
आज की रात मज़ा हुस्न का
आँखों से लीजिए
वक्त बर्बाद ना बिन बात की
बातों में कीजिए
आज की रात मज़ा हुस्न का
आँखों से लीजिए
जान की कुर्बानी
ले ले दिलबर जानी
तबाही पक्की है
आग तू मैं पानी
जान की कुर्बानी
मेरे महबूब समझिए ज़रा
मौके की नज़ाकत
के खरीदी नहीं जा सकती
हसीनों की इजाज़त
नाज़ इतना मेरी जान
नाज़ इतना भी नहीं
खोखले वादों पे कीजिए
आज की रात मज़ा हुस्न का
आँखों से लीजिए
जान की कुर्बानी
ले ले दिलबर जानी
तबाही पक्की है
आग तू मैं पानी
जान की कुर्बानी
ले ले दिलबर जानी
तबाही पक्की है
आग तू मैं पानी
मधुवंती(जैसा नाम उसके विपरीत गायकी)बागची की खनकती आवाज की जादू में गाना आगे बढ़ता है। मुझे लगता है मधुवंती को इस गीत गायन के लिए आज तो याद रखा ही जा रहा है।वे सालो बाद भी इस गीत को जानदार बनाए रखने के लिए याद की जाएंगी। सचिन जिगर ने संग+ गीत के लिए जिन वाद्य यंत्रों का चयन किया है, उनके चयन में सार्थक मेहनत दिखती है। कोरियोग्राफर विजय गांगुली की मेहनत को तमन्ना भाटिया के पैर की थिरकन में देखा जा सकता है, जब वे पैर पीछे कर स्टेप अप करती है। तमन्ना भाटिया की देह यष्टि और भाव प्रदर्शन में बीस साबित हुई है। अगर स्त्री- 2, पांच सौ करोड़ कमाने जा रही है तो 250करोड़ की कमाई का जिम्मा तमन्ना भाटिया को जाता है।
आज की रात हुस्न का मजा आंखों से लीजिए।
संजय दुबे
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