एक तो राही फिर मासूम और उस पर रज़ा

लेखक - संजय दुबे

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  मनोरंजन की दुनियां में हमारे पास दूरदर्शन के आने से पहले केवल सिनेमा हॉल हुआ करते थे।दूरदर्शन आया तो घर के ड्राइंग रूम टेलीविजन हाल में बदल गया। ब्लैक एंड व्हाइट स्क्रीन का दौर खत्म हुआ और कलर्ड स्क्रीन आया तो दो कालजई धारावाहिक का प्रसारण हुआ था।रामायण और महाभारत। रामायण मर्यादित था, देखते हर कोई थे लेकिन कोई भी राम सीता बनना नहीं चाहते थे। महाभारत,पसंदीदा धारावाहिक बना क्योंकि कलयुग का शुभारंभ करने वाला द्वापर यही से विदा हुआ था। 

महाभारत का चित्रण, उस जमाने के हिसाब से बेहतर था लेकिन संवाद! उफ्फ, इतने नायाब की दृश्य भले याद न रहे संवाद आज भी जेहन में है।

इन संवादों के रयचिता अनोखे राही मासूम रज़ा थे, जिनका आज जन्मदिन है। प्रतिभा को कभी जाति,धर्म, संप्रदाय लिंग में सीमित करना सही नहीं है। यदि उन्हें सीमित करने का प्रयास भी हो तो उन्ही को सामने आने का सामर्थ्य दिखाना चाहिए ।इस बात के जीते जागते उदाहरण राही मासूम रजा है। वे खुद को कभी भी जाति या संप्रदाय तक सीमित नही रखे बल्कि उनका विरोध हुआ तो उन्होंने सामने आकर सामना भी किया।

 माजरा ये हुआ कि महाभारत निर्माण की बात चली तो संवाद कौन लिखे?इस बात पर अंतिम निर्णय के रूप में राही मासूम रज़ा का नाम तय हुआ। राही मासूम रज़ा ने व्यक्तिगत कारणों से इंकार कर दिया था।ये बात सार्वजनिक नहीं हुई थी।महाभारत का संवाद लेखन राही मासूम रज़ा लिखे, ढेर सारी चिट्ठियां पहुंच गई बी आर चोपड़ा के पास। उन्होंने सारी चिट्ठियां राही मासूम रज़ा के पास भिजवा दी। राही मासूम रज़ा ने फोन लगाकर चोपड़ा को सूचना दे दी कि अब वे ही महाभारत का संवाद लेखन करेंगे।

क्या शब्द,संवाद भी जातिगत या सांप्रदायिक हो सकते है। किसी भी भाषा पर अधिकार रखना विद्वता मानी जाती है। सोसल मीडिया प्लेटफार्म में आप कभी भी पुराने महाभारत का संवाद सुन लीजिए आनंद आ जायेगा।

राही मासूम रज़ा ने आधा गांव,दिल एक सादा कागज, ओस की बूंद,हिम्मत जौनपुरी,उपन्यास का लेखन किया। कैप्टन हमीद पर छोटे आदमी को बड़ी कहानी लिखा ।टोपी शुक्ला और सीन75 कहानी लिखी। उनके लेखन में स्मृति का जबदस्त योगदान था वे एक साथ तीन तीन विषयो पर एक साथ लेखन किया करते थे।

 राही अक्सर कहते कि उनका नाम मुसलमानों जैसा है।उनकी एक मां नफीसा बेगम है,दूसरी अलीगढ़ यूनिवर्सिटी है और तीसरी गंगा नदी है। राही मासूम रज़ा की लिखी एक कविता जेहन में आती है

मुझे के जाकर गाजीपुर की गंगा में सुला देना

अगर वतन से दूर मौत आए

तो ये मेरी वसीयत है

अगर उस शहर में कोई छोटी सी नदी बहती हो

तो मुझको

उसकी गोद में सुलाकर 

उससे कह देना कि 

गंगा का बेटा आज से तेरे हवाले है


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